पलायन का नया रूप: पिछले कुछ दशकों से पलायन में क्लाइमेट चेंज और इसके कारण आपदाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है।Photo: Medium.com

जलवायु संकट: पिछले छह महीने में हुए 1 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित

जलवायु संकट की बड़ी मार विस्थापन के रूप में दिख रही है। पिछले 6 महीने में पूरी दुनिया में कुल 1.03 करोड़ लोग बाढ़, तूफान और चक्रवाती तूफान जैसी आपदाओं से विस्थापित हुए। यह बात इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट (आईएफआरसी) की ताज़ा रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट इंटरनेशनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक विस्थापितों में 60% एशिया में हैं। आईडीएमसी के मुताबिक हर साल करीब 2.27 करोड़ लोग मौसमी कारकों या आपदाओं के कारण पलायन कर रहे हैं। 

विशेषज्ञ रिपोर्ट बताती हैं कि धीमी गति से होने वाले प्रभावों (स्लो ऑनसेट) के कारण विस्थापन की मार बढ़ रही है हालांकि इसके सटीक आंकड़े जुटाना कठिन काम है। विश्व बैंक का अनुमान है कि सदी के अंत तक करीब 9 करोड़ लोग समुद्र जल स्तर के बढ़ने से ही विस्थापित हो जायेंगे। 

तटीय इलाकों पर समुद्र जल स्तर में ग्लोबल औसत की तुलना में चार गुना तेज़ वृद्धि: शोध 

हाल में किये गये एक अध्ययन से पता चला है कि समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को जल स्तर में बढ़ोतरी का अधिक ख़तरा है क्योंकि वैश्विक औसत के मुकाबले तटों पर जल स्तर चार गुना तेज़ी से हो रहा है। साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि जहां दुनिया भर में समुद्र जल स्तर में औसत बढ़ोतरी 2.5 मिमी प्रति वर्ष है वहीं तटों पर यह बढ़ोतरी 7.8-9.9 मिमी प्रति वर्ष है। इस अध्ययन में सरकारों से कहा गया है कि वह समुद्र तटों पर जलवायु परिवर्तन के अधिक तीव्र प्रभावों को ध्यान में रखे और यहां रह रहे लोगों के एडाप्टेशन (अनुकूलन) के लिये उसी प्रकार नीति बनाये। भूजल के उपयोग और निकासी पर ध्यान देकर तटीय इलाकों में बाढ़ के बढ़ते खतरों से लड़ा जा सकता है। 

मनरेगा: जल संरक्षण योजना के फायदे 

पिछले करीब डेढ़ दशक में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत जल संरक्षण कार्यों का असर देश के कई गांवों में अलग-अलग तरह से दिखा है। जल दिवस के मौके पर डाउन-टु-अर्थ पत्रिका ने अपनी विशेष रिपोर्ट में  अनुसार देश के 15 राज्यों के 16 गांवों से इस योजना के तहत हुए काम का ब्यौरा पेश किया है। पत्रिका ने इन गांवों में मनरेगा का कामयाबियों की रिपोर्ट्स छापी हैं जिन्हें यहां पढ़ा जा सकता है। 

मिसाल के तौर पर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के लोग कहते हैं कि उनका गांव सूखे के अभिशाप से मुक्त हो चुका है। इत्तिफाक से यह पहला गांव था जहां मनरेगा की शुरुआत हुई।  इसी तरह मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में कुल 19,590 जल संबंधित कार्यों को पूरा किया गया। जल संरक्षण कार्यक्रमों से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक पिछले डेढ़ दशकों से हो रहे कार्यों से गांव में औसतन 10-12 फीट की गहराई पर पानी मिलने लगा है। यह ग्रामीण महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हुआ है क्योंकि पानी ढोने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है।इसी तरह तमिलनाडु में 2004 की सुनामी से तबाह नागापट्टिनम में इस योजना की कामयाबी और केरल के पलक्कड ज़िले में महिलाओं द्वारा सूख चुकी जलधाराओं को पुनर्जीवित करने की कहानी शामिल है। मनरेगा कार्यक्रम की शुरुआत 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुई थी और कोरोना महामारी के वक्त इसने लोगों को रोज़गार देने में अहम भूमिका निभायी।

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