अमेरिका के न्यूयॉर्क राज्य ने एक नया कानून बनाया है जिसके तहत जीवाश्म ईंधन कंपनियों पर जलवायु परिवर्तन में उनकी भूमिका के लिए आगामी 25 सालों में 75 बिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया जाएगा। यह कानून जलवायु परिवर्तन से होनेवाले नुकसान की लागत करदाताओं की बजाय तेल, गैस और कोयला कंपनियों से वसूलने के उद्देश्य से लाया गया है। इस फंड का उपयोग बुनियादी ढांचे को जलवायु प्रभावों के अनुकूल बनाने के लिए किया जाएगा।
साल 2000 से 2018 के बीच 1 बिलियन टन से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करने वाली कंपनियों को 2028 में शुरू होने वाले क्लाइमेट सुपरफंड में योगदान देना होगा। इस कानून के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जिससे दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन कंपनियों को जलवायु संकट के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
भारत में 2 प्रतिशत से अधिक बढ़ी जीवाश्म ईंधन की खपत
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 में भारत में जीवाश्म ईंधन मांग पिछले साल के मुकाबले 2.1 प्रतिशत बढ़कर 20.67 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गई। पेट्रोल की बिक्री 10.8 फीसदी बढ़कर 3.3 मिलियन टन हो गई, जबकि डीजल की खपत 6 फीसदी बढ़कर 8.1 मिलियन टन हो गई। रसोई गैस (एलपीजी) की बिक्री 5.8 प्रतिशत बढ़कर 2.78 मिलियन टन हो गई।
इसके अलावा, मौजूदा वित्तीय वर्ष में अप्रैल से नवंबर अवधि के दौरान भारत का कोयला आयात 2 प्रतिशत बढ़कर 182.02 मिलियन टन (एमटी) हो गया, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 178.17 मीट्रिक टन था।
रूसी तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंध, भारत को सप्लाई होगी बाधित
अमेरिका ने रूसी कंपनियों द्वारा भारत और चीन को की जा रही तेल की आपूर्ति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से रूसी तेल उत्पादकों गज़प्रोम नेफ्ट और सर्गुटनेफ्टेगास के साथ-साथ, 183 जहाजों और टैंकरों पर नए प्रतिबंध लगाए हैं जिनके द्वारा तेल सप्लाई किया जाता था। इस कदम के बाद भारत और चीन को मध्य पूर्व, अफ्रीका और अमेरिका में तेल के वैकल्पिक स्रोतों का रुख करना पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से वैश्विक तेल की कीमतें और माल ढुलाई की लागत बढ़ सकती है।
रूस से रियायती दरों पर मिल रहा कच्चा तेल भारत की आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत रहा है। यदि भारत महंगे विकल्पों का रुख करता है तो घरेलू तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं।
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