पिछले दो सालों के दौरान पर्यावरण मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम में महत्वपूर्ण बदलाव किए, एक जून 2022 में और दूसरा दिसंबर 2023 में। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इन बदलावों का भारी विरोध किया था। अब सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने भी इन संशोधनों पर ऐतराज़ जताया था लेकिन उनकी शंकाओं को दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि उन्होंने समय से पहले अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
हर्ष चौहान तब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष थे, जो कि एक संवैधानिक संस्था है। आरटीआई द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, सितंबर 2022 में उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को पत्र लिखकर नए वन संरक्षण नियमों के बारे में गंभीर चिंता जताई थी। उन्होंने इस बात पर भी ऐतराज़ जताया था कि इन संशोधनों को लेकर आयोग से कोई चर्चा नहीं की गई और उनपर रोक लगाने की मांग की।
हालांकि पर्यावरण मंत्री ने उनकी शंकाओं को निराधार बताते हुए उनके विरोध को दरकिनार कर दिया। इसके बाद जून 2023 में अपना कार्यकाल ख़त्म होने के आठ महीने पहले ही चौहान ने इस्तीफा दे दिया था।
आईपीसीसी रिपोर्ट की समयसीमा पर एकमत नहीं सरकारें, भारत ने भी जताया विरोध
संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा जलवायु परिवर्तन की स्थिति का आकलन करने वाली वैज्ञानिक रिपोर्ट जारी करने की एक समयसीमा पर विभिन्न देशों की सरकारें एकमत नहीं हो पाई हैं।
तुर्की के इस्तांबुल में आईपीसीसी वार्ता में मौजूद सूत्रों के अनुसार, भारत, चीन और सऊदी अरब ने इस बात का विरोध किया कि 2028 में अगले ग्लोबल स्टॉकटेक से पहले आईपीसीसी अपने मूल्यांकन जारी करे।
पिछले सप्ताह की बैठक में यूएनएफसीसीसी ने आधिकारिक तौर पर अनुरोध किया कि आईपीसीसी अपनी गतिविधियों को अगले ग्लोबल स्टॉकटेक की समयसीमा के अनुरूप संचालित करे। लेकिन इसका अर्थ होगा कि या तो आईपीसीसी का काम फास्ट-ट्रैक किया जाए या फिर उसके चक्र की अवधि सात साल से घटाकर पांच साल करनी होगी।
लेकिन भारत, चीन और सऊदी अरब के नेतृत्व में कुछ देशों ने तर्क दिया कि इससे वैज्ञानिक प्रक्रिया को ‘जल्दी में’ पूरा करना होगा और विकासशील देशों के पास उत्पादन की समीक्षा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं बचेगा।
समयसीमा पर अंतिम निर्णय अब गर्मियों में होने वाली अगली बैठक तक स्थगित कर दिया गया है।
स्थाई होती जा रही हैं मानसून के कारण बढ़ने वाली खाद्य कीमतें
खाद्य मुद्रास्फीति, यानि फ़ूड इन्फ्लेशन को आम तौर पर मौद्रिक नीति के दायरे से बाहर माना जाता है, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर मानसून की विफलता के कारण खाद्य कीमतों पर लगातार असर पड़ता रहा, तो ब्याज दरों में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है।
इकॉनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई के जनवरी बुलेटिन में केंद्रीय बैंक के अर्थशास्त्रियों ने लिखा है कि “यदि मौद्रिक नीति खाद्य कीमतों में होनेवाले बदलाव को नजरअंदाज करती है, तो मुद्रास्फीति अनियंत्रित हो सकती है”। हालांकि यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं।
जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन का खाद्यान्न की कीमतों पर असर पड़ा है, उससे पता चलता है कि भारत में मानसून के कारण होने वाली खाद्य मुद्रास्फीति स्थाई होती जा रही है। कुल मुद्रास्फीति में फ़ूड इन्फ्लेशन का योगदान अप्रैल 2022 में 48% था जो नवंबर 2023 में बढ़कर 67% हो गया।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार पिछले एक दशक में भारत में मानसून का पैटर्न तेजी से बदला है और अनियमित रहा है।
रिटायर हो रहे हैं अमेरिका, चीन के जलवायु दूत, क्लाइमेट वार्ता पर क्या होगा असर
जलवायु परिवर्तन वार्ता के सबसे बड़े मंच पर कई बरसों के साथी रहे दो शख्स एक साथ रिटायर हो रहे हैं। अमेरिका के जॉन कैरी और चीन के झी झेनहुआ। चीन और अमेरिका धुर विरोधी महाशक्तियां हैं लेकिन यही दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक भी हैं और दुनिया की दो सबसे बड़ी इकोनॉमी भी।
आज वर्ल्ड इकोनॉमी में एक तिहाई हिस्सा इन दो देशों का है और दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 40% से अधिक यही दो देश करते हैं। ऐसे में दोनों देशों के वार्ताकारों का एक साथ रिटायर होना क्लाइमेट वार्ता को खासा प्रभावित करेगा।
झी ने जहां भारत और अन्य लोकतांत्रिक देशों के वार्ताकारों के साथ बड़ा ही सहज रिश्ता बनाये रखा वहीं अमेरिका के साथ कूटनीतिक रिश्तों में नोंकझोंक के बाद भी कैरी के साथ पुल बांधे रखा। हाल में दुबई जलवायु परिवर्तन वार्ता में झी अपने नाती-पोतों को भी साथ लाए और उन्होंने कैरी के लिए ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाया।
जहां चीन ने झी की जगह नये वार्ताकार की घोषणा कर दी है वहीं कैरी से कमान कौन संभालेगा यह अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर निर्भर करता है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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