सोनम वांगचुक लद्दाख को बचाने के लिए पांच दिन का उपवास कर रहे हैं। Photo: Bhoomi College/Flickr

सोनम वांगचुक के समर्थन में कई लोग जुड़े

मैग्सेस पुरस्कार विजेता और शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने गणतंत्र दिवस के मौके पर लद्दाख को बचाने के लिए पांच दिन का उपवास शुरू किया। वांगचुक यह उपवास 18,000 फुट की ऊंचाई पर खारडुंगला दर्रे पर कर रहे हैं जहां इन दिनों रात के वक्त तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे पहुंच जाता है।  वांगचुक लद्दाख में अंधाधुंध टूरिज्म और विकास की योजनाओं के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं। उन्होंने सोलर पावर के महत्व को स्वीकारने और सौर ऊर्जा की दोहन की वकालत की है। 

वांगचुक के उपवास को पूरे देश में कई जगह से समर्थन मिला है। लद्दाख में टूरिज़्म के लिये साल के 5 महीनों के दौरान ही 6 लाख लोग आ रहे हैं जो कि वहां की आबादी की दोगुना संख्या है। अगर यह सैलानियों की संख्या पर्यावरण की परवाह किये बिना बढ़ती रही तो यहां के संवेदनशील इकोसिस्टम के लिये भारी नुकसान हो सकता है। 

धनौरी वेटलैंड: केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस 

ग्रेटर नोएडा स्थित धनौरी वेटलैंड को रामसर स्थल का दर्जा मिलने में “असामान्य देरी” के लिए एक पक्षीप्रेमी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और यूपी सरकार को क़ानूनी नोटिस भेजा है। 

पक्षीप्रेमी आनंद आर्या ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी अपील की है। वेटलैंड्स को रामसर स्थल का दर्जा एक अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के तहत दिया जाता है ताकि उनके संसाधनों का ज़िम्मेदारी से उपयोग हो और पक्षियों का संरक्षण किया जा सके।

आर्या ने अपनी नोटिस में धनौरी और अन्य वेटलैंड्स को अधिसूचित नहीं करने को “वैधानिक कर्तव्य का गंभीर उल्लंघन” और “संबंधित अधिकारियों द्वारा आपराधिक विश्वासघात” बताया है।

हालांकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुए पत्राचार से पता चलता है कि केंद्र ने 2019 के बाद से कई बार उत्तर प्रदेश वन विभाग और उत्तर प्रदेश वेटलैंड प्राधिकरण को धनौरी को रामसर साइट के रूप में नामित करने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने के संबंध में लिखा है, लेकिन यूपी सरकार ने अभीतक ऐसा प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया है।

धनौरी वेटलैंड सारस क्रेन की काफी बड़ी आबादी के साथ-साथ कम से कम 20,000 जलपक्षीयों और अन्य प्रजातियों का पोषण करते हैं। सारस क्रेन को वेटलैंड के ह्रास और घटाव से खतरा है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि रामसर का दर्जा मिलने मात्र से वेटलैंड को बचाने में मदद नहीं मिलेगी, और उन्हें वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत एक अधिसूचना के माध्यम से पूरी तरह से कानूनी सुरक्षा की जरूरत है।

हरित परियोजनाओं की पहचान के लिए नई नीति पर काम कर रहा है भारत: रिपोर्ट

भारत सरकार एक नई नीति पर नीति पर काम कर रही है जिसके तहत आर्थिक गतिविधियों और प्रौद्योगिकियों को सस्टेनेबल और नॉन-सस्टेनेबल श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाएगा

रायटर्स की एक रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि ऐसा हरित परियोजनाओं की वरीयता देने वाले निवेशकों की सुविधा के लिए किया जा रहा है।

इस प्रस्ताव के तहत, यूरोपीय संघ की ग्रीन टैक्सोनॉमी की तर्ज पर, भारत सरकार सतत गतिविधियों को प्रमाणित करेगी। सरकार को उम्मीद है कि ऐसा करने से इन योजनाओं की में निवेश बढ़ेगा और निवेशकों को भी सहूलियत होगी।

इस नीति के मसौदे पर नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी इस बारे में कोई भी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।  

रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सतत परियोजनाओं की पहचान करने और अन्य परियोजनाओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की लंबी प्रक्रिया में के ओर यह पहला कदम है।

सरकारी अनुमान के अनुसार देश को 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए 10 से 15 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।

बाढ़ से बेहाल कराची में एडाप्टेशन फंड का उपयोग करने में विफल रहा विश्व बैंक

माना जा रहा था कि विश्व बैंक का सॉलिड वेस्ट इमरजेंसी एंड एफिशिएंसी प्रोजेक्ट (स्वीप) पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची को बाढ़ की सालाना समस्या से मुक्त करेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

2017 के बाद से कराची में बाढ़ की समस्या साल दर साल बढ़ती ही गई, और पिछले साल तो शहर को ‘एक्सट्रीम फ्लड’ का सामना करना पड़ा।

कराची को बाढ़ से मुक्त करने में एक बड़ी समस्या है नालों में से कचरा हटाना, जिसके कारण बारिश का पानी ओवरफ्लो हो जाता है। उम्मीद थी कि स्वीप परियोजना से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार होगा, लेकिन इस पंचवर्षीय परियोजना के शुरुआती दो सालों में प्रगति के कोई आसार नहीं है। 100 मिलियन डॉलर के बजट का 3% से भी कम खर्च हुआ है, और बुनियादी ढांचे पर कोई भी खर्च नहीं किया गया है।

प्रोजेक्ट की पिछले दो सालों की प्रगति रिपोर्ट देखें तो ऐसा लगता है कि विश्व बैंक भी यह मानता है इस परियोजना में कोई खास काम नहीं हुआ है।

2020 में आई गंभीर बाढ़ के बाद सिंध की सरकार ने नालों की सफाई में तेजी लाने के लिए विश्व बैंक से संपर्क किया था। विश्व बैंक ने दिसंबर 2020 में इन प्रयासों को वित्तीय सहायता देने की घोषणा की, और कहा कि इससे “कराची में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं में सुधार” होगा, जिससे बाढ़ को कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन जमीनी हकीकत में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ।

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