नाकाफी कोशिश: वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया में अडाप्टेशन के लिये किये जा रहे उपाय पर्याप्त नहीं है। फोटो: AP

दुनिया के 360 करोड़ लोग जलवायु परिवर्तन से पैदा हुये ख़तरे में: आईपीसीसी रिपोर्ट

धरती के बढ़ते तापमान और मानव जनित जलवायु परिवर्तन का असर इंसान के  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में यह बात कही गई है। आईपीसीसी के वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट में क्लाइमेट के “व्यापक विपरीत प्रभावों और इस कारण संभावित विनाशलीला” की चेतावनी दी है। गैरबराबरी और “उपनिवेशवाद” के प्रभाव को रेखांकित करती यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे इस वजह से विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन प्रभावों से लड़ने की क्षमता बाधित हुई। 

आईपीसीसी रिपोर्ट – जिसे दुनिया के 195 देशों ने रविवार को औपचारिक रूप से अनुमोदित किया – का अनुमान है कि दुनिया के 330 से 360 करोड़ लोग क्लाइमेट चेंज के अत्यधिक प्रभाव क्षेत्र में हैं। ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों, तटीय इलाकों और शहरों पर  जलवायु परिवर्तन प्रभाव का सबसे अधिक खतरा है। इस रिपोर्ट की भारत के लिये काफी अहमियत है क्योंकि यहां हिमालयी क्षेत्र में करीब 10,000 छोटे बड़े ग्लेशियर हैं, कई एग्रो-क्लाइमेटिक ज़ोन हैं और 7500 किलोमीटर लम्बी समुद्र तट रेखा है जिस पर 20 करोड़ से अधिक लोग रोज़गार के लिये प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निर्भर हैं। 

आईपीसीसी रिपोर्ट:  मानव जनित जलवायु परिवर्तन से ‘ख़तरनाक गड़बड़ियां’  

सोमवार को जारी हुई आईपीसीसी रिपोर्ट के दूसरे हिस्से में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन के कारण “बड़ी ख़तरनाक और व्यापक गड़बड़ियां” हो रही हैं। यह आईपीसीसी की छठी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा है जो क्लाइमेट चेंज के प्रभावों, इससे बचने के उपायों और संकट पर केंद्रित है। जल्दी ही इसका तीसरा और अंतिम भाग रिलीज़ होगा जिसके बाद इस साल आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट जारी की जायेगी। 

रिपोर्ट के इस भाग में क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिये किये जा रहे उपायों को अपर्याप्त बताया गया है। साल 2050 तक जिन 20 तटीय शहरों को बाढ़ से सर्वाधिक ख़तरा है उनमें से 13 एशिया में हैं। इनमें भारत के मुंबई, कोलकाता और चेन्नई शामिल हैं। 

ऑस्ट्रेलिया में अचानक बाढ़ से 9 मरे, 1,500 सुरक्षित निकाले गये 

फरवरी के अंत में उत्तर-पूर्व ऑस्ट्रेलिया में आई एक अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) में कम से कम 9 लोग मारे गये हैं। क्वींसलैंड में सबसे अधिक नुकसान की ख़बर है। यहां ब्रिसबेन नदी का पानी रिहायशी इलाकों में फैल गया। सड़कों को नुकसान पहुंचा और 18,000 घरों को क्षति हुई है। अधिकारियों का कहना है कि 1,500 लोगों को निकाल कर सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया है। 

बड़े स्तर पर ज़ीरो बजट फार्मिंग से उत्पादकता घटेगी: आईसीएआर 

इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च या भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) की एक नई रिपोर्ट बताती है कि बड़े स्तर पर ज़ीरो-बजट नेचुरल फार्मिंग (ज़ेडबीएनएफ) – जिसे भारत सरकार बढ़ावा दे रही है – से उत्पादकता में कमी हो सकती है। भारत पहले ही खाद्य सुरक्षा को लेकर संकट में है और यह तरीका समस्या को बढ़ायेगा। परिषद का कहना है कि इस  तरीके का प्रयोग पहले उन इलाकों में किया जाना चाहिये जहां कृषि वर्षा जल पर निर्भर है और जहां सिंचाई की सुविधा नहीं है और जहां सिंचिंत इलाकों के मुकाबले कम फसल उत्पादन हो पाता है। 

यह तकनीक पद्म पुरस्कार से सम्मानित महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर ने सुझाई। इसका मकसद रसायनों के बिना प्राकृतिक पोषण पर आधारित कृषि को बढ़ावा देना था। खेती के जानकारों का कहना है कि रसायन बनाने वाली कंपनियों के हित ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से प्रभावित होते हैं। इसलिय वह इसके खिलाफ दुष्प्रचार करती हैं। जानकारों के मुताबिक इस तरीके से खेती में शुरू के कुछ सालों में किसानों की उत्पादकता पर असर पड़ सकता है लेकिन उसके बाद उन्हें महंगी खाद और हानिकारक और खर्चीले रसायनों से मुक्ति मिल जाती है और वह लगभग बिना किसी खर्च के सेहतमंद फसल उगा सकते हैं।   

नये अध्ययन में 1 लाख यूरोपीय शहरों का CO2 इमीशन डाटाबेस 

अर्थ सिस्टम साइंस डाटा नाम के विज्ञान पत्र  में प्रकाशित एक नये अध्ययन में   यूरोप के 1 लाख से अधिक शहरों से हो रहे कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन का डाटा बेस है। इस अध्ययन में बड़े समुद्री कारोबार और गतिविधियों वाले तटीय नीदरलैंड में भारी मात्रा में उत्सर्जन पाया गया है। एक ऐसा ही अन्य क्षेत्र है बाल्टिक सागर का गॉटलैंड द्वीप जहां पर सीमेंट निर्माण का काम चलता है। फ्रांस के ज़्यादातर उत्सर्जन कुछ तटीय शहरों के आसपास ही केंद्रित हैं।

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