महंगा सिलिंडर, घर में प्रदूषण: एक नया सर्वे बताता है कि महंगाई ने एलपीजी का इस्तेमाल मुश्किल कर दिया है और इससे इनडोर पॉल्यूशन बढ़ रहा है। Photo: Livelaw

घर के भीतर प्रदूषण: ‘केवल 50% कर रहे रसोई गैस का इस्तेमाल’

रसोई गैस का सिलिंडर महीने भर में 125 रुपये महंगा हो गया है और शहरी झुग्गियों में वह किनारे पड़ा है। जी हां, यहां लोग प्रदूषण करने वाला ईंधन ही जला रहे हैं और इससे इनडोर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। यह बात एक नये सर्वे में सामने आई है जो बताता है कि 6 राज्यों में 86% शहरी झुग्गियों में एलपीजी सिलिंडर है लेकिन केवल 50% परिवार ही उसे इस्तेमाल कर रहे हैं। इन राज्यों में 16% झुग्गियों में लकड़ी, उपले, कोलतार और मिट्टी का तेल ही खाना बनाने के लिये ईंधन के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। यह सर्वे दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, इन्वारेंमेंट एंड वॉटर (CEEW) ने कराया। जिन 6 राज्यों में यह सर्वे किया गया वह हैं उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान। देश की कुल झुग्गियों का करीब एक चौथाई इन राज्यों में ही है। 

उधर सरकार ने संसद में यह जानकारी दी है कि पिछले 7 साल में एलपीजी सिलिंडर की कीमत दोगुनी हो गई है और सब्सिडी हटा ली गई है। इस दौरान पेट्रोल-डीज़ल से टैक्स वसूली भी साढ़े चार गुना बढ़ गई है।  1 मार्च 2014 को दिल्ली में एलपीजी सिलिंडर ₹ 410.50 का था जो बढ़कर अब ₹ 819 का हो गया है।  

दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने 100 से अधिक निर्माण इकाइयों पर लगाया जुर्माना 

दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पिछले दिनों निर्माण और पुराने भवनों को तोड़ने में लगी 447 साइट्स का निरीक्षण किया और इनमें से 106 साइट डस्ट कंट्रोल यानी धूल नियंत्रण के नियमों  का पालन नहीं कर रही हैं। इन सभी साइट्स पर कुल 52 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इनका निरीक्षण 24 दिसंबर और 21 जनवरी की बीच किया गया था। इनमें 44 साइट्स को डस्ट कंट्रोल के पूरे इंतजाम करने तक काम रोकने को भी कहा गया। 

छोटे और बड़े निर्माण क्षेत्रों के लिये दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (डीपीसीसी) की गाइडलाइंस हैं ताकि वायु प्रदूषण न हो। इसमें निर्माण साइट को कवर करने, वाहनों की आवाजाही के लिये ट्रैक बनाने और धूल उड़ने से रोकने के लिये जल छिड़काव जैसे कदम शामिल हैं। 

दिल्ली-एनसीआर में जेनरेटरों पर पाबंदी हटी

आने वाले दिनों में बेहतर एयर क्वॉलिटी के पूर्वानुमान को देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों (गुड़गांव, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद और नोयडा आदि) में डीज़ल जनरेटर के इस्तेमाल पर पाबंदी हटा दी है। हालांकि सीपीसीबी ने दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से यह कहा है वह ख़तरनाक प्रदूषण वाले संभावित स्थानों (हॉट-स्पॉट्स) पर नियमों की कड़ी पालना सुनिश्चित करे।  

दिल्ली में दो स्मॉग टावरों पर काम शुरू 

वायु प्रदूषण पर काबू करने के लिये देश की राजधानी दिल्ली में लगने वाले दो स्मॉग टावरों पर काम तेज़ हो गया है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक इन दोनों ही टावरों के डिज़ाइन तैयार हैं और उन जगहों पर निर्माण भी शुरू हो गया है जहां इन्हें लगाया जाना है। एक टावर दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाबा खड्ग सिंह मार्ग पर तो दूसरा दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर सबसे प्रदूषित रहने वाले स्थानों में से एक आनन्द विहार में लग रहा है। 

इनका डिज़ाइन आईआईटी दिल्ली ने तैयार किया है और नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (एनबीसीसी) इन्हें बनाने का काम कर रहा है।  दोनों ही टावरों की ऊंचाई 25 मीटर होगी। हालांकि जानकार यह सुझाते रहे हैं कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका स्रोत पर प्रदूषण को रोकना है और स्मोग टावर अप्रभावी और खर्चीले शोपीस ही साबित होंगे। 

छोटे शहरों में एयर क्वॉलिटी डाटा की कमी: संसदीय समिति 

संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी हवा को साफ करने के लिये बनाये गये नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम यानी एनसीएपी को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिये नगर निगम स्तर पर क्षमता बढ़ाया जाना ज़रूरी है। पैनल ने यह बात भी कही है कि छोटे शहरों और कस्बों में एयर क्वॉलिटी के समुचित और भरोसेमंद डाटा की कमी है। 

संसदीय पैनल ने कहा है कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत  एयर क्वॉलिटी के मॉनिटरिंग के लिये उपकरण लगाने हेतु जो पैसा दिया जाना है उसे प्राथमिकता के आधार पर आवंटित किया जाये।  मिसाल के तौर पर गुवाहाटी को एनसीएपी के तहत 2019-20 में केवल 20 लाख रुपया दिया  जबकि एक एयर क्वॉलिटी मॉनिटर लगाने में 1.2 करोड़ रुपया लगता है। पैनल ने इस मामले में पारदर्शिता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। 

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