सुस्त रफ्तार: संसदीय समिति ने कहा है कि सरकार साफ ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने में बहुत पीछे है और इसके बजट में भी लगातार कमी हो रही है | Photo: Council on Foreign Relations

साफ ऊर्जा लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही सरकार: संसदीय समिति

संसदीय समिति ने “साफ ऊर्जा लक्ष्य हासिल कर पाने में लगातार असफल रहने के लिये” केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है। समिति ने कहा है कि वित्त वर्ष 2020-21 में (जनवरी 2021 तक)  साफ ऊर्जा क्षमता केवल 5.47 गीगावॉट बढ़ाई गई जबकि इस साल के लिये लक्ष्य 12.38 गीगावॉट का है। जहां इस साल 9 गीगावॉट के सौर ऊर्जा पैनल लगाये जाने थे जबकि केवल 4.16 गीगावॉट के  ही पैनल लगा पाये। पवन ऊर्जा क्षमता 3 गीगावॉट बढ़ाने का लक्ष्य था लेकिन उसमें 1 गीगावॉट से भी कम की बढ़ोतरी हुई। 

समिति का कहना है कि साल 2019-20 में बजट में 26% की कमी हुई वहीं 2020-21 में 38% की कमी हुई है। संसदीय समिति ने रूफ टॉप सोलर कार्यक्रम (छतों पर सोलर पैनल लगाने) में नाकामी को लेकर सवाल खड़े किये हैं और कहा कि सरकार को सिंगल विन्डो सिस्टम अपनाना चाहिये ताकि इस कार्यक्रम के तहत मिलने वाली सब्सिडी में कम समय लगे और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो। सरकार ने 2022 तक पूरे देश में कुल 40 गीगावॉट रूफ टॉप सोलर का लक्ष्य रखा है लेकिन अभी तक यह क्षमता 4 गीगावॉट से भी कम है। 

अगले 10 साल में सौर ऊर्जा का लक्ष्य 280 गीगावॉट, सोलर मॉड्यूल पर लगेगी 40% कस्टम ड्यूटी 

भारत ने तय किया है कि वह अगले साल (अप्रैल, 2022) से सोलर मॉड्यूल्स (सौर उपकरणों) के आयात पर 40% कस्टम ड्यूटी लगायेगा। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक साफ ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने इस पर मेमो जारी किया है। सोलर उपकरणों पर अभी कोई कस्टम ड्यूटी नहीं है लेकिन घरेलू उत्पादन बाज़ार को बढ़ाने के लिये एक सेफगार्ड कर (टैक्स) लगाया जाता है जो जुलाई में खत्म हो रहा है। 

भारत की सौर ऊर्जा क्षमता अभी 39 गीगावॉट (39,000 मेगावॉट) है।  सरकार ने जो आदेश जारी किया है उसके मुताबिक साल 2030 तक भारत इसे बढ़ाकर 280 गीगावॉट (2,80,000 मेगावॉट) करना चाहता। भारत का लक्ष्य है कि 2022 तक देश की कुल रिन्यूएबिल पावर क्षमता 175 गीगावॉट हो जाये जो कि अभी केवल 93 गीगावॉट है। पेरिस समझौते के तहत साल 2030 तक भारत की कुल रिन्यूएबिल पावर क्षमता को 450 गीगावॉट किया जाना है।  

नई पवन चक्कियों को हरी झंडी में रिकॉर्ड बना: BNEF शोध 

कोरोना महामारी के बावजूद पूरी दुनिया में बहुत सारे नये विन्ड टर्बाइन यानी पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिली है। ब्लूमबर्ग एनईएफ का अध्ययन कहता है कि पिछले साल ऐसे नये प्रोजेक्ट – जिन्हें स्थापित करने के लिये पैसा दिया गया-  में 59% का उछाल हुआ। इनकी कुल क्षमता 96 गीगावॉट है। 

रिपोर्ट कहती है कि साल 2020 में जो नये प्रोजेक्ट मंज़ूर हुये उनकी कुछ क्षमता 96.3 गीगावॉट है जबकि 2019 में 60.7 गीगावॉट के प्रोजेक्ट मंज़ूर हुये। जिन प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिली है उनमें से अधिकतर समुद्र तट पर हैं। समुद्र के भीतर (ऑफ शोर) पवन चक्कियों के नये प्रोजेक्ट्स में 19% कमी आई है। रिपोर्ट कहती है कि 2020 में दुनिया के सभी देशों में पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स की संख्या बढ़ी है लेकिन चीन में सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई। चीन ने 2020 में कुल  57.8 गीगावॉट के प्रोजेक्ट मंज़ूर किये। 

यूरोप में पवन ऊर्जा की रफ्तार सुस्त 

उधर यूरोप में पवन ऊर्जा यानी विन्ड एनर्जी उस रफ्तार से नहीं बढ़ रही जो कि यूरोपीय यूनियन द्वारा तय किये गये क्लाइमेट और एनर्जी लक्ष्य हासिल करने के लिये ज़रूरी है। यह बात विन्ड यूरोप नाम एक इंडस्ट्री ग्रुप की रिपोर्ट में कही गई है। यूरोप की 400 कंपनियां विन्ड यूरोप की सदस्य हैं। रिपोर्ट में इस सुस्त रफ्तार के पीछे संयंत्र लगाने के जटिल नियमों को वजह बताया गया है।  

यूरोप की कुल पवन ऊर्जा क्षमता 220 गीगावॉट है। पिछले साल यूरोपीय देशों ने विन्ड एनर्जी की क्षमता में कुल 14.7 गीगावॉट की बढ़ोतरी की। यह कोरोना महामारी से पहले किये गये अनुमान से 19% कम है। समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक यूरोपीय यूनियन के 27 देशों ने 2021 से 2025 के बीच सालाना 15 गीगावॉट पवन ऊर्जा के संयत्र लगाने का लक्ष्य रखा है लेकिन अगर 2030 तक 40% कार्बन इमीशन कट के लक्ष्य को पाना है तो ईयू को अगले 10 सालों में (2021-30) सालाना 18 गीगावॉट विन्ड एनर्जी बढ़ानी होगी। अगर कार्बन इमीशन में 55% कट के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करना है तो फिर सालाना 27 गीगावॉट की पवन चक्कियां लगानी होंगी।  

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