साल 2016-17 में साफ ऊर्जा क्षेत्र में भारत की सब्सिडी 16312 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। उसके बाद अब अब 59% गिरावट के साथ यह 6767 करोड़ पर है। यह बात दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, इन्वॉयरेंमेंट एंड वॉटर यानी सीईईडब्लू और इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) के अध्ययन में सामने आई है। इसके पीछे कोरोना महामारी से हुई मन्दी (डेवलपमेंटल स्लोडाउन) ज़िम्मेदार है। इस दौरान सौर और पवन ऊर्जा की कीमतें भी पास आईं।
साफ ऊर्जा के मुकाबले जीवाश्म ईंधन में (2014 से 2021 के बीच) सब्सिडी 72% गिरकर 68,226 करोड़ हो गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार ने एनर्जी सेक्टर को कुल 5,40,00 करोड़ की मदद दी जिसमें 2,18,000 करोड़ की मदद सब्सिडी के तौर पर दी गई। इस बीच वित्त वर्ष 2016-17 से अब तक विद्युत वाहनों पर सब्सिडी बढ़कर तीन गुना हो गई है।
भारत 2026 तक 81 ताप बिजलीघरों को कोयले से साफ ऊर्जा आधारित बनायेगा
भारत के बिजली मंत्रालय ने 81 ऐसी थर्मल पावर यूनिट्स की पहचान की है जहां अभी कोयले से बिजली बनाई जा रही है लेकिन 2026 तक यही संयंत्र साफ ऊर्जा पर चलने लगेंगे। इनमें सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी के बिजलीघरों के अलावा निजी कंपनियों टाटा पावर, अडानी और हिन्दुस्तान पावर आदि के संयंत्र शामिल हैं। अंग्रेज़ी अख़बार बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक केंद्र, राज्य और निजी बिजलीघरों में 58,000 मिलियन यूनिट पावर उत्पादन क्षमता को कोयले से साफ ऊर्जा पर लाया जायेगा। इसके लिये 30 हज़ार मेगावॉट साफ बिजली उत्पादन क्षमता की ज़रूरत पड़ेगी। मंत्रालय का अनुमान है कि इस कदम से 34 मिलियन टन कोयला बचेगा और 60.2 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन इमीशन कम होगा।
भारत में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा की औसत लागत में 19% की वृद्धि हुई, 2022 की पहली तिमाही में सौर आयात 374% बढ़ा
मेरकॉम के एक विश्लेषण के अनुसार, बड़े पैमाने पर सौर परियोजनाओं को स्थापित करने की औसत लागत 2022 की पहली तिमाही में 19% बढ़कर 56,0512 डॉलर प्रति मेगावाट हो गई, जो पिछले साल इसी अवधि में 47,1603 डॉलर थी। भारत ने 2021 की पहली तिमाही में 2.7 गीगावॉट बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा स्थापित की। चीन-आयातित पॉलीक्रिस्टलाइन मॉड्यूल का औसत बिक्री मूल्य (एएसपी) पिछले साल की तुलना में 25% बढ़ गया। इसी तरह, चीनी मोनो पीईआरसी मॉड्यूल के औसत बिक्री मूल्य में 2021 की पहली तिमाही की तुलना में 20% वृद्धि हुई। भारतीय पॉलीक्रिस्टलाइन मॉड्यूल के औसत बिक्री मूल्य में पिछले वर्ष की तुलना में 26% की वृद्धि हुई, और भारतीय मोनो पीईआरसी मॉड्यूल के औसत बिक्री मूल्य में भी 2021 की पहली तिमाही की तुलना में 20% की वृद्धि हुई, मेरकॉम ने बताया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि कुल परियोजना लागत में वृद्धि होगी क्योंकि भारतीय मॉड्यूल निर्माता मुख्य रूप से अपने मॉड्यूल के लिए चीनी सेल पर निर्भर हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2022 की पहली तिमाही में 1.23 बिलियन डॉलर के सोलर सेल और मॉड्यूल का आयात किया, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 374% अधिक है। आयात मुख्य रूप से भारतीय सौर डेवलपर्स के बड़ी मात्रा में मॉड्यूल के संग्रहण के कारण बढ़ा। 1 अप्रैल को सौर सेल और मॉड्यूल पर मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) प्रभावी होने के पहले लगभग 10 गीगावॉट मॉड्यूल का संग्रहण किया गया। बीसीडी के प्रभावी होने के बाद मॉड्यूल की लागतों में 40% की वृद्धि हुई, जिससे बचने के लिए संग्रहण किया गया था, मेरकॉम ने बताया।
ऊर्जा संक्रमण पैनल स्थापित करें: बिजली मंत्री ने राज्यों से कहा
भारत के बिजली मंत्री आर के सिंह ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कहा है कि ऊर्जा संक्रमण के लिए संचालन समितियों का गठन करें और ऊर्जा उत्पादन मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा का भाग बढ़ाने के लिए मिलकर काम करें।
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि ऊर्जा दक्षता को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए और बायोमास और हरित हाइड्रोजन का उपयोग बढ़ाना चाहिए। सिंह ने कहा कि राज्यों को वित्तीय सहायता सीमित करके 2024 तक कृषि में डीजल के उपयोग को समाप्त करना चाहिए, और पीएम-कुसुम कार्यक्रम के तहत कृषि फीडरों के लिए सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना का लाभ लिया जा सकता है।
आंध्र प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पहले से ही ऐसी समितियां हैं। विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग, परिवहन उद्योग, आवास एवं शहरी मामले, कृषि, ग्रामीण विकास एवं लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव प्रस्तावित समितियों के सदस्य होंगे।
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