इस साल जुलाई में भारत के कच्चे तेल का आयात पिछले साल जुलाई की तुलना में 35 प्रतिशत बढ़ गया। इस साल जून के मुकाबले इस आयात में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हेतल गांधी और क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद लगी पाबंदियां हटने से मोबिलिटी बढ़ी और आर्थिक गतिविधियां तोज़ हुई जिस वजह से कच्चे तेल की खपत बढ़ी है। मार्च के बाद पहली बार जुलाई में भारत ने रुस से भी तेल का आयात शुरु किया और सऊदी अरब से यह आयात पिछले 5 महीनों में पहली बार बढ़ा है।
उधर भारत सरकार साल 2024-25 तक कच्चे तेल पर निर्भरता कम करने के लिये रोड मैप को अंतिम रूप दे रही है। समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक इससे पहले पेट्रोलियम मंत्रालय ने आयातित कच्चे तेल और गैस पर निर्भरता कम करने के अलग अलग विभागों और मंत्रालयों को सौंपे गये काम की मॉनिटरिंग के लिये कई वर्किंग ग्रुप भी बनाये थे।
रूस के ‘कार्बन बम’ के पीछे अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के वित्तीय संस्थान
जीवाश्म ईंधन यानी तेल और गैसे आदि के उत्पादन को बढ़ाने वाले रूस के ‘कार्बन बम’ प्रोजेक्ट के पीछे अमेरिका और यूके के वित्तीय संस्थान प्रमुख निवेशक हैं। यह बात हाल के आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आयी है। यूक्रेन में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि अमेरिका और यूके के इन वित्तीय संस्थानों को तुरंत ऐसे निवेश रोक देने चाहिये। आंकड़े बताते हैं कि रूस के ऐसे प्रोजेक्ट में करीब आधा निवेश अमेरिकी कंपनियों का है।
शोधकर्ताओं ने उन जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट्स की ‘कार्बन बम’ के तौर पर पहचान की है जिनसे एक बिलियन (100 करोड़) टन CO2 उत्सर्जित होती है जो कि यूके के सालाना इमीशन का 3 गुना है। रूस में ऐसे 40 कार्बन बम हैं जिनमें से 19 को विदेशी निवेश की मदद से रूसी कंपनियां चला रही हैं। शोध बताता है कि ऐसे तेल और गैस प्रोजेक्ट्स के लिये करीब 400 विदेशी वित्त संस्थानों ने रूसी कंपनियों को करीब 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर मदद की है जिनमें 84 बिलियन डॉलन उधार के रूप में और बाकी निवेश है। रूस-यूक्रेन युद्ध के 6 महीने बाद यूक्रेन के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यह डाटा रिलीज़ किये गये हैं।
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