देश में छोटे वाहनों जैसे टू व्हीलर, थ्री व्हीलर, इकॉनमी फोर व्हीलर और छोटे माल वाहनों की बड़ी संख्या को देखते हुए भारत के पास छोटे वाहनों के विद्युतीकरण में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने का मौका है। Photo: Pixabay

वर्ष 2030 के लिये निर्धारित इलेक्ट्रिक वाहन लक्ष्‍य से पीछे रह सकता है भारत

भारत में राष्ट्रीय लक्ष्य से 40% कम वर्ष 2030 तक सिर्फ 5 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन ही इस्तेमाल हो सकेंगे 

इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर   भारत ने  वर्ष 2030 तक एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके तहत तय अवधि तक बेचे जाने वाले वाहनों में 70% वाणिज्यिक कारें, 30% निजी कारें, 40% बसें और 80% दो पहिया तथा तीन पहिया वाहन इलेक्ट्रिक होंगे। मोटे तौर पर संख्या के लिहाज से देखें तो वर्ष 2030 तक सड़कों पर 8 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन दौड़ेंगे। 

इस बारे में क्लाइमेट ट्रेंड्स और जेएमके रिसर्च द्वारा जारी एक ताजा विश्लेषण के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहन संबंधी नीतियों (फेम 2, राज्य सरकार की नीतियां) की मौजूदा लहर और यहां तक कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान बैटरी के दामों में गिरावट और स्थानीय स्तर पर निर्माण संबंधी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में तेजी आने के बावजूद भारत में वर्ष 2030 तक सिर्फ 5 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन ही इस्तेमाल हो सकेंगे जोकि राष्ट्रीय लक्ष्य से 40% कम है।   

इस अध्ययन में छह सुझाव दिए गए हैं जिनसे भारत वर्ष 2020 तक के लिए निर्धारित अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की संभावनाओं को बेहतर बना सकता है। ये सुझाव विभिन्न राज्य नीतियों तथा संबंधित सरकारी विभागों के बीच समन्वित प्रयासों और राष्ट्रीय लक्ष्यों के प्रति बेहतर संरेखण पर केंद्रित हैं। ये सुझाव सरकारी वाहनों तथा एग्रीगेटर बेड़ों के शत-प्रतिशत विद्युतीकरण, खास तौर पर कुछ चुनिंदा शहरों में सरकारी वाहनों तथा तिपहिया वाहनों के लिए अधिदेश जारी करने, ओईएम, बैटरी निर्माताओं तथा उपभोक्ताओं को वित्तीय समाधान पेश करने और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए स्पष्ट लक्ष्य
निर्धारित करने पर केंद्रित हैं। 

इन बातों को लागू करने से भारत अपने आईसीई वाहनों को इलेक्ट्रिक गाड़ियों में तब्दील करने की बेहतर स्थिति में पहुंच जाएगा। देश में छोटे वाहनों जैसे टू व्हीलर, थ्री व्हीलर, इकॉनमी फोर  व्हीलर और छोटे माल वाहनों की बड़ी संख्या को देखते हुए भारत के पास छोटे वाहनों के विद्युतीकरण में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने का मौका है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, -“इलेक्ट्रिक वाहन मौजूदा समय में वित्तीय रूप से व्यावहारिक हो गए हैं। भारत के नेट जीरो उत्सर्जन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति में इलेक्ट्रिक वाहनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी। स्वच्छ ऊर्जा- जैसे कि अक्षय ऊर्जा संबंधी लक्ष्यों की पूर्ति राज्य की नीतियों की वजह से होती है। इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के मामले में भी देश को राज्यों के बीच और अधिक तालमेल की जरूरत है। भारत ने ई-मोबिलिटी के क्षेत्र में सही दिशा में कदम आगे बढ़ाना शुरू किया है। कुछ सक्षम कारी नीतियों के कारण वाहनों के कुछ वर्गों में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। हालांकि हमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच और भी ज्यादा समन्वित प्रयासों की जरूरत है। खासतौर पर ऐसे लक्ष्यों और प्रोत्साहनों को परिभाषित करने के मामले में, जो राष्ट्रीय लक्ष्यों और नीतियों के अनुरूप हैं। इसके अलावा चार्जिंग ढांचे तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के वित्तपोषण के लिए वित्तीय समाधान उपलब्ध कराने पर और अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है।”

रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारत को 8 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहनों के सुचारू संचालन के लिए 2022 से 2030 के बीच कम से कम 39 लाख (प्रति चार्जिंग स्टेशन 8 इलेक्ट्रिक वाहनों के अनुपात के आधार पर) सार्वजनिक अथवा अर्द्ध-सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की जरूरत
होगी। यह संख्या इस अवधि के लिए बनाई जा रही योजना के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इस अध्ययन का शीर्षक मीटिंग इंडियास नेशनल टारगेट फॉर ट्रांसपोर्ट इलेक्ट्रिफिकेशन; (परिवहन विद्युतीकरण केलिए भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य की पूर्ति) है और इसे जेएमके रिसर्च द्वारा नई दिल्ली में आयोजित #39 ईवी मार्केट कॉन्क्लेव में जारी किया गया। 

इस अध्ययन में सभी अनुमोदित राज्य ईवी नीतियों का विश्लेषण किया गया है और इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य की पूर्ति के लिए
राज्य के स्तर पर और बेहतर तथा अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने की बात मजबूती से रखी गई है। जहां कुछ राज्यों ने इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित लक्ष्य को संख्यात्मक स्वरूप में रखा है, वहीं कुछ राज्यों ने इसे कुल वाहनों के प्रतिशत के तौर पर निर्धारित किया है जबकि कुछ राज्य ऐसे
हैं जिन्होंने इस बारे में कोई भी लक्ष्य तय नहीं किया है। ऐसी गिनी-चुनी नीतियां ही हैं जिनमें चार्जिंग ढांचे से संबंधित लक्ष्य या सरकारी वाहनों के बेड़े को इलेक्ट्रिक वाहनों में तब्दील करने के बारे में चीजों को परिभाषित किया गया है। इसके अलावा ज्यादातर नीतियों में वर्ष 2030 तक की
समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है। उनमें सिर्फ वर्ष 2022 से 2026 तक के लिए ही सहयोग प्रदान करने की बात की गई है। 

जेएमके रिसर्च एंड एनालिसिस की संस्थापक और सीईओ ज्योति गुलिया ने कहा, कि “अगर मौजूदा ढर्रा बना रहा तो भारत वर्ष 2030 तक के लिए निर्धारित अपने लक्ष्य से 40% पीछे रह जाएगा। इस अंतर को पाटने के लिए भारत सामान्य मगर प्रभावी पद्धतियां लागू कर सकता है। सिर्फ प्रोत्साहन से काम नहीं चलेगा। सभी राज्यों को अपने अपने यहां चार्जिंग ढांचे को उन्नत बनाने से संबंधित स्पष्ट लक्ष्य बताने होंगे। यह पहली जरूरत है, जिससे भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने का रुख तय होगा। वैश्विक स्तर पर उभर रहे उदाहरण को अपनाते हुए भारत को सरकारी वाहनों के बेड़े के शत- प्रतिशत विद्युतीकरण का आदेश जारी करने पर विचार करना चाहिए और वाहन एग्रीगेटर बेड़े के कुछ प्रतिशत हिस्से का भी इलेक्ट्रिक होना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

 इसके अलावा भारत के 3.99 करोड़ दो पहिया वाहनों के इलेक्ट्रिक गाड़ियों में तब्दील होने से विदेश से हर साल भारी मात्रा में तेल के आयात पर होने वाला बहुत बड़ा खर्च भी बचेगा। एक आत्मनिर्भर ईवी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए उद्योग और केंद्र तथा राज्य सरकारों को प्रमुख संसाधनों, प्रौद्योगिकी वित्त पोषण और प्रोत्साहनों को एक साथ लाने की जरूरत है।

+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.