भारत जैसे देश विशेष रूप से इस सम्मेलन के उन एजेंडा मदों में रुचि रखते हैं जो अनुकूलन, हानि और क्षति, और जलवायु वित्त पर चर्चा करते हैं। Photo: Rishika Pardikar

COP27 की ज़मीन तैयार कर रहा है इन दिनों चल रहा 56वां बॉन सम्मेलन

जहाँ  एक तरफ पाकिस्तान , भारत , नेपाल  , बांग्लादेश सरीखे दक्षिण एशियाई निवासी कभी तूफान तो कभी भारी बरसात, बाढ़, भूस्खलन कभी उमस भरी गर्मी , 50 डिग्री को छूता पारा , आग उगल रहे सूरज जैसे नित नये  आने वाले जलवायु संकट में झुलस रहे  है  वहीं दूसरी तरफ इन दिनों ( 6 से 16 जून 2022) जर्मनी के बॉन शहर में दुनिया भर के तमाम देश देश एक बेहतर कल के लिए एकजुट हुए हैं। जो नवम्बर में  मिस्र के शर्म अल-शेख में होने वाले आगामी COP27 में सफलता की नींव रखने के लिए एक ज़रूरी कदम है ।  इसका मकसद है कि दुनिया के सभी देश एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन के मंडरा रहे संकट से राहत के लिए ठोस काम करें और इसके असर को कम करने यानी मिटीगेशन । मिटीगेशन का मतलब है किसी बुरे असर का कम होना या  हानिकारक प्रभावों में कमी है । ग्लासगो में COP26 के सात महीने बाद, दुनिया भर के देशों ने जलवायु परिवर्तन वार्ता के एक और सेट के लिए जर्मनी के बॉन में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं।

इस चर्चा से नवंबर में COP27 से पहले जलवायु परिवर्तन रोकने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने में सभी देशों के सामने आने वाली चुनौतियों को एक  प्रमुख चर्चा के केंद्र में लाना है। जिससे उनका हल निकल सके और बात आगे बढे। जहां एक ओर जलवायु परिवर्तन के वैश्विक मुद्दे के समाधान के लिए अंतर-सरकारी स्तर पर तत्काल कार्रवाई करना समय की मांग है, वहीं फिलहाल इस बैठक में विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हुए विनाश पर चर्चा करने के लिए अधिक समय की मांग की है। इसका नेतृत्व COP के दो सहायक निकाय कर रहे हैं।

बॉन सम्मेलन में चर्चा का केंद्र है कि सबसे ज्यादा जलवायु परिवर्तन के वार का शिकार विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति एडाप्ट या अनुकूलन  और इसके बुरे  असर को कम करने के मिटीगेशन के मध्यम से मदद पहुंचाई जाए।

क्या है एजेंडे में?

दूरगामी अनुकूलन की आवश्यकता है यह सुनिश्चित करने के लिए कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा से अधिक न हो। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बॉन में 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के कार्य कार्यक्रम पर बातचीत हो रही है। एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा जलवायु से संबंधित नुकसान और क्षति पर बातचीत है।  साथ ही, पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ वैश्विक वित्तीय प्रवाह को संरेखित करने पर बातचीत भी एजेंडे में है। इतना ही नहीं, इस सम्मेनल में शामिल प्रतिनिधिमंडल एक ग्लोबल स्टॉकटेक की तैयारी भी कर रहे हैं, जिसके अंतर्गत 2023 के बाद से, हर पांच साल में एक समीक्षा होगी इस बात  का आंकलन करने के लिए कि जलवायु परिवर्तन शमन के संबंध में दुनिया कहां खड़ी है।

भारत की है विशेष रुचि

भारत जैसे देश विशेष रूप से इस सम्मेलन के उन एजेंडा मदों में रुचि रखते हैं जो अनुकूलन, हानि और क्षति, और जलवायु वित्त पर चर्चा करते हैं। विकसित देशों को 2020 तक जलवायु वित्त में 100 बिलियन डॉलर जुटाना था – एक ऐसा लक्ष्य जिसे हासिल नहीं किया गया है, और 2023 से पहले पूरा होने की संभावना नहीं है। जलवायु वित्त में से केवल 20 प्रतिशत जलवायु अनुकूलन की ओर गया है जबकि 50 प्रतिशत जलवायु न्यूनीकरण की ओर है। संयुक्त राष्ट्र के एक समूह के अनुमान के अनुसार, जलवायु वित्त की आवश्यकता तब से बढ़कर 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। जलवायु परिवर्तन शमन के लिए एक निर्धारित लक्ष्य है – ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करना। लेकिन जलवायु अनुकूलन के लिए कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं है, और इस पर चर्चा करने की आवश्यकता है। हमें एक नए वित्त लक्ष्य की भी आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान प्रतिज्ञाएं पूरी तरह से अपर्याप्त हैं।

प्रयास ज़रूरी हैं

पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे बनाए रखना है। इस सदी में तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियस तक नियंत्रित करने वाले उपायों का समर्थन करने के उद्देश्य से इस पर हस्ताक्षर किए गए हैं। साथ ही, पेरिस जलवायु समझौते के मुख्य उद्देश्य को जीवित रखने के लिए, कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक 50% तक कम करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के लिए सरकारों द्वारा तत्काल कार्रवाई की उम्मीद करते हुए, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यकारी सचिव पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने बॉन सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अपने भावनात्मक संबोधन में कहा: “हम सब को देखना चाहिए कि पिछले छह वर्षों में हमने क्या हासिल किया है। देखिये कि हमने पिछले 30 में क्या हासिल किया है। भले ही हम कार्यवाही के नाम पर बहुत पीछे हों मगर यूएनएफसीसीसी के कारण, क्योटो प्रोटोकॉल के कारण, पेरिस समझौते के कारण दुनिया एक बेहतर स्थिति में है। साथ ही, सहयोग के कारण, बहुपक्षवाद के कारण, और आपके कारण हम बेहतर स्थिति में हैं। लेकिन हम बेहतर कर सकते हैं और हमें करना चाहिए। प्रयास ज़रूरी है।”

बॉन में जलवायु परिवर्तन वार्ता

नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP26 के बाद पहली बार बॉन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने विभिन्न सरकारों को एक मंच पर लाने का काम किया है। इस कार्यक्रम को दरअसल संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP27, जो इस साल के अंत में मिस्र के शर्म अल-शेख में नवंबर में होने वाला है, की तैयारी के क्रम मे आयोजित किया गया है।

जहां सम्मेलन में विकासशील देशों ने जलवायु वित्त से संबंधित विकसित देशों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और क्षति से संबंधित चिंताओं को उठाया वहीं विकसित देशों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बैठक का एजेंडा बातचीत के लिए दायरा सीमित से एक बार फिर यह उम्मीद लगाये बातें हैं कि शायद  – कभी तूफान तो कभी भारी बरसात, बाढ़, भूस्खलन कभी उमस भरी गर्मी , 50 डिग्री को छूता पारा , आग उगल रहे सूरज जैसे नित नये  आने वाले जलवायु संकट से बचने का उन्हें कोई रास्ता निकल सके। आखिरकार, जो लोग जलवायु संकट से सबसे अधिक पीड़ित हैं, वे वे हैं जिन्होंने इसमें सबसे कम योगदान दिया है। जी हाँ आप मतलब समझ ही गए होंगे यह लोग हैं गरीब और विकासशील देशों के निवासी जिनका इस काम में हाथ नहीं के बराबर है मगर इसकी मार सबसे ज्यादा उन पर ही पड़ रही है।

संयुक्त राष्ट्र ने सख्त चेतावनी दी है कि प्रकृति का ऐसा दोहन जारी रहा तो दस साल के अंदर जलवायु परिवर्तन को रोकना और पलटना संभव नहीं रहेगा। धरती इतनी गर्म हो जायेगी कि एक बड़ा भू भाग अफ्रीका के सहारा सरीखे रेगिस्तान में बदल जायेगा , बढ़ते समुद्र स्तर के चलते तटीय इलाके जलमग्न और मौसम उत्पाती हो जायेगा ।भारत 2015 में बॉन चैलेंज में शामिल हो गया था, जिसमें 21 मिलियन हेक्टेयर खराब और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने का संकल्प लिया गया था। सितंबर 2019 में दिल्ली में आयोजित मरुस्थलीकरण सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान 2030 तक इसे 26 mha के लक्ष्य तक बढ़ाया गया था।

दूरगामी एडाप्टेशन की ज़रूरत  

इसका उद्देश्य विकासशील देशों के लिए तकनीकी समाधान निकालना है ताकि वे जलवायु से संबंधित नुकसान और क्षति से बेहतर तरीके से निपट सकें और संबंधित जरूरतों की पहचान कर सकें। ग्लासगो डायलॉग में, देशों, नागरिक समाज और विशेषज्ञों के बीच नुकसान और क्षति के संबंध में समर्थन उपायों के वित्तपोषण के बारे में प्रश्नों पर चर्चा की जाती है।

पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ वैश्विक वित्तीय प्रवाह को संरेखित करने पर बातचीत भी एजेंडे में है। विकास बैंकों को विशेष रूप से, बल्कि निजी निवेश को भी समाजों के स्थायी परिवर्तन में योगदान देना चाहिए। इतना ही नहीं, प्रतिनिधिमंडल ग्लोबल स्टॉकटेक तैयार कर रहे हैं। 2023 के बाद से, हर पांच साल में एक समीक्षा होगी कि जलवायु परिवर्तन शमन( mitigation) के संबंध में दुनिया कहां खड़ी है।

बॉन 1995 से संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी-UNFCC) के सचिवालय की सीट रहे हैं। इसका कार्य पार्टियों को सीओपी और जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों के लिए प्रशासनिक और रसद सहायता प्रदान करना है।

साझा लक्ष्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को इस हद तक सीमित करना है कि ग्लोबल वार्मिंग एक सहनीय स्तर पर बनी रहे। इसके लिए, एक नया क्लाइमेट टॉवर – जर्मन सरकार द्वारा वित्तपोषित – बॉन में संयुक्त राष्ट्र परिसर में बनाया गया था जहाँ UNFCCC सचिवालय के कर्मचारी जलवायु संकट से निपटने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।

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