एक नए अध्ययन में पाया गया है कि इस साल मई में भारत में चलने वाली हीटवेव का तापमान, देश में पहले देखी गई सबसे गर्म हीटवेव की तुलना में लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जलवायु वैज्ञानिकों के एक स्वतंत्र ग्रुप ‘क्लाइमामीटर’ द्वारा किए इस अध्ययन में 26 मई से 29 मई के बीच मध्य और उत्तरी भारत के प्रमुख हिस्सों में चलने वाली भीषण हीटवेव की जांच की गई।
इस दौरान देश के 37 से अधिक शहरों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया। भारत और दक्षिणी पाकिस्तान में लू के कारण रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया, जो नई दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में 45.2 डिग्री सेल्सियस से 49.1 डिग्री सेल्सियस तक रहा।
रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया है कि 2001 से 2023 के बीच मई की हीटवेव के दौरान भारत में उच्च तापमान से जुड़ी घटनाओं में क्या बदलाव आया है, और यदि यही घटनाएं 1979 से 2001 के बीच हुई होतीं तो वे कैसी दिखतीं।
रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में बदलाव से पता चला है कि पहले की तुलना में वर्तमान जलवायु में इसी तरह की घटनाओं ने तापमान को कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ाया है। तापमान के आंकड़ों से पता चला कि उत्तर पश्चिम भारत और पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्सों के कुछ क्षेत्रों में पहले की तुलना में 5 डिग्री सेल्सियस तक अधिक गर्मी देखी गई।
फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के डेविड फरांडा ने कहा, “क्लाइमामीटर के निष्कर्ष से पता चलता है कि जीवाश्म ईंधन के कारण भारत में हीटवेव असहनीय तापमान तक पहुंच रही हैं।”
शहरी क्षेत्रों में बदलावों से पता चला है कि नई दिल्ली, जालंधर और लरकाना (पाकिस्तान) पहले की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा 53.2 डिग्री सेल्सियस की गलत रीडिंग में संशोधन करने के बाद आंकड़े रिपोर्ट के इस विश्लेषण से मेल खाते हैं।
हालांकि वर्षा में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं दिखा, लेकिन हवा की गति में बदलाव के संकेत मिले, जिससे दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्रों में हवा की गति 4 किमी/घंटा तक बढ़ सकती है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि पहले इसी तरह की घटनाएं मुख्य रूप से नवंबर और दिसंबर में होती थीं, जबकि वर्तमान जलवायु में ये ज्यादातर फरवरी और मई में हो रही हैं।
रिपोर्ट में हीटवेव को काफी हद तक एक अनोखी घटना के रूप में देखा गया, जिसके लिए ज्यादातर मानव जनित जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया कि तेजी से बढ़ते ग्रीनहॉउस गैस उत्सर्जन के साथ-साथ, प्राकृतक रूप से होने वाली अल नीनो घटना का भी हीटवेव पर प्रभाव पड़ा।
पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) असेसमेंट रिपोर्ट 6 (एआर6) में भारत में हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के बीच स्पष्ट संबंध बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हीटवेव को बढ़ाने में जलवायु परिवर्तन विभिन्न तरीकों से योगदान दे रहा है।
आईपीसीसी की रिपोर्टों से पता चला है कि कैसे जलवायु परिवर्तन से भूमि की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे तापमान और वर्षा प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप आर्कटिक क्षेत्रों में बर्फ के आवरण में कमी होती है और सर्दियों में तापमान बढ़ता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उपजाऊ मौसम के दौरान गर्मी कम होने के साथ-साथ वर्षा में वृद्धि देखी जा सकती है।
बढ़ते शहरीकरण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण शहर और आसपास के इलाकों में गर्मी बढ़ सकती है, खासकर हीटवेव के दौरान, जिससे दिन के तापमान की तुलना में रात के तापमान पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एशिया में 20वीं सदी के बाद से सतही हवा का तापमान बढ़ रहा है, जिससे पूरे क्षेत्र में हीटवेव का खतरा बढ़ गया है। विशेष रूप से भारत में, हिंद महासागर के बेसिन के गर्म हो जाने और बार-बार होने वाली अल-नीनो की घटना के कारण हीटवेव के दिनों की संख्या और अवधि में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप कृषि और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। भारत जैसे क्षेत्रों में पहले से ही गर्म शहरों में ग्लोबल वार्मिंग और जनसंख्या वृद्धि के संयोजन से गर्मी का जोखिम बढ़ रहा है, जिससे इन शहरों के आसपास के इलाकों के तापमान में भी वृद्धि हो रही है।
हीटवेव से गईं दर्जनों जानें
यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के अनुसार, मई 2024 अब तक का सबसे गर्म मई का महीना था। पिछले 12 महीनों — जून 2023 से मई 2024 — में से हर ने उस महीने का तापमान रिकॉर्ड तोड़ा है। उत्तर पश्चिम भारत और मध्य क्षेत्र के कुछ हिस्से मई में प्रचंड गर्मी की चपेट में रहे, कई राज्यों में गर्मी से होनेवाली मौतों की सूचना मिली।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया था कि भारत में मार्च से मई तक लगभग 25,000 हीटस्ट्रोक के मामले रिपोर्ट हुए और गर्मी से संबंधित बीमारियों के कारण 56 मौतें दर्ज की गईं। इन आंकड़ों में मतदान के दौरान भीषण गर्मी से होनेवाली चुनाव कर्मियों की मौतें शामिल नहीं हैं। आंकड़ों के अनुसार केवल अंतिम चरण के दर्जन ही लगभग 33 चुनाव कर्मियों की मौत हुई।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
भारत के 85% जिलों पर एक्सट्रीम क्लाइमेट का खतरा, उपयुक्त बुनियादी ढांचे की कमी
-
भारत के ‘चमत्कारिक वृक्षों’ की कहानी बताती पुस्तक
-
किसान आत्महत्याओं से घिरे मराठवाड़ा में जलवायु संकट की मार
-
कई राज्यों में बाढ़ से दर्जनों मौतें, हज़ारों हुए विस्थापित; शहरीकरण पर उठे सवाल
-
क्लाइमेट फाइनेंस: अमीरों पर टैक्स लगाकर हर साल जुटाए जा सकते हैं 2 लाख करोड़ डॉलर