अत्यधिक गर्मी झेलने के बात हो तो महिलाओं पर हीटवेव की मार पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है। सिग्निफिकेंस पत्रिका में प्रकाशित एक विश्लेषण में यह बात सामने आई है। द रॉयल स्टेटेस्टिकल सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित हुए इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने करीब 30 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया और पाया कि 2005 से हीटवेव के कारण हुई मौतों में जहां पुरुषों की संख्या में कुछ गिरावट है वहीं महिलाओं का ग्राफ बढ़ रहा है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर और अकादमिक निदेशक रामित देबनाथ ने डाउन टु अर्थ मैग्जीन को बताया, “हमने वर्णनात्मक सांख्यिकीय विश्लेषण के माध्यम से पाया कि भारत में उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अत्यधिक तापमान की स्थिति (विशेष रूप से गर्मी) के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।”
इन शोधकर्ताओं यह जानने के लिए विश्लेषण शुरू किया कि क्या भारत में महिलाओं को अत्यधिक तापमान से मृत्यु दर का अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। लेकिन भारत में तापमान संबंधी हेल्थ और हेल्थ केयर को लेकर बारीक और और उच्च गुणवत्ता वाले राष्ट्रीय डाटा का अभाव है। इसलिये इस रिसर्च को प्राथमिक रुझान ही समझा जाना चाहिये।
इससे पहले मार्च में वन अर्थ नाम की विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य शोध में कहा गया कि बाहर काम करने वाले श्रमिकों पर हीटवेव के बड़े दुष्प्रभाव होते हैं और इस कारण जागरूकता बढ़ाने और इस मौसम में काम के घंटे कम करने की ज़रूरत है। अमेरिका स्थित पॉल जी एलन फैमली फाउंडेशन के सहयोग से किये गये शोध में बताया गया कि बढ़ती उमस भरी गर्मी से अफ्रीका और एशिया में बाहर काम करने वाले श्रमिकों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि आने वाले दशकों में यहां के देशों में कामकाजी आबादी की उम्र अधिक होगी और यहां कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन पर उच्च निर्भरता भी है।
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