पर्यावरणविदों द्वारा तमाम आलोचना के बावजूद नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (एनबीडब्लूएल) ने वन क्षेत्र में इको-टूरिज्म के लिये बने दिशानिर्देशों को मंज़ूरी दे दी है। पिछली 11 जून को हुई बैठक में बोर्ड ने संरक्षित इलाकों की एक लिस्ट भी जारी की जहां ये इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट हो सकते हैं। इससे पहले 8 मार्च को हुई बैठक में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ से कहा था कि ये गाइड लाइन लोगों में वन और वन्य जीवों के संरक्षण की समझ विकसित करने के लिये हैं और इससे वन क्षेत्र और इसके आसपास रहने वाले समुदायों को रोज़गार मिलेगा और उनकी आमदनी होगी। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्रोजेक्ट्स के कारण संरक्षित इलाकों में जो अस्थायी या स्थायी ढांचे बनेंगे उनसे जंगल विभाजित होगा। इस कारण वन्यजीवन और जंगल पर बुरा असर पड़ेगा।
अरुणांचल प्रदेश ने विवादित प्रोजेक्ट पर सूचना देने से किया इनकार
अरुणांचल प्रदेश की दिबांग घाटी में विवादित एटलिन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट फिर चर्चा में है। राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट की कीमत और उससे होने वाले फायदे का विश्लेषण (कॉस्ट-बेनेफिट रेश्यो एनालिसिस) क्या है यह जानकारी देने से इनकार कर दिया है। यह सूचना आरटीआई कानून के तहत मांगी गई थी। राज्य सरकार ने कहा है कि संबंधित कंपनी की अनुमति न होने के कारण वह यह जानकारी नहीं दे सकती। विशेषज्ञों ने 3907 मेगावॉट की इस जलविद्युत परियोजना पर सवाल खड़े किये थे क्योंकि यह सदाबहार सब-ट्रॉपिकल और वर्षावनों वाले इलाके में है जहां बाघ भी पाये जाते हैं।
जम्मू-कश्मीर हाइवे: नियमों की अवहेलना पर एनजीटी की फटकार
केंद्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने जम्मू-कश्मीर में बानिहाल-उधमपुर हाइवे के चौड़ीकरण के दौरान पर्यावरण नियमों की अनदेखी के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई को फटकार लगाई है। इस हाइवे को एन एच – 44 के नाम से जाना जाता है। एनजीटी का कहना है कि पिछले 4 साल से इस प्रोजेक्ट में अवैज्ञानिक और गैरकानूनी तरीके से हो रहे मलबा निस्तारण को रोकने के लिये कोई उपाय नहीं किये गये हैं। यह मलबा सीधे चिनाब नदी में डाला जा रहा है जिससे वह इसके पानी और आसपास की वॉटर बॉडीज़ को नुकसान पहुंचा रहा है। कोर्ट ने एनएचएआई को चेतावनी दी है कि अगर आवश्यक कदम नहीं उठाये गये तो प्रोजेक्ट को रोका भी जा सकता है।
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