बीमारियों का ख़तरा: ग्लोबल वॉर्मिंग की बढ़ती मार से मलेरिया और डेंगू जैसे रोगों का ख़तरा बढ़ेगा जो नई चुनौती है। फोटो - Pixabay

सदी के अंत तक 840 करोड़ लोगों पर मलेरिया-डेंगू का ख़तरा

ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर के कारण इस सदी के अंत तक दुनिया के 800 करोड़ से अधिक लोग मलेरिया और डेंगू की चपेट में होंगे। ये दोनों ही बीमारियां मच्छरों के काटने से होती हैं और धरती के बढ़ते तापमान का कारण सन 2100 तक उन बहुत सारी जगहों पर भी मच्छरों का प्रकोप होगा जहां वे अभी नहीं होते। यह बात द लैंसेट प्लैनटरी हेल्थ में प्रकाशित एक नये अध्ययन से पता चली है। इसके मुताबिक सदी के अंत तक धरती के तापमान में बढ़ोतरी 3.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जायेगी और 1970-99 के मुकाबले 470 करोड़ अधिक लोग इन दो बीमारियों का शिकार होंगे। यह अध्ययन लंदन स्कूल ऑफ लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के विशेषज्ञों की अगुवाई में हुआ है। 

धरती के बढ़ते तापमान के लिये कार्बन उत्सर्जन ज़िम्मेदार है जो कोयला, पेट्रोल, डीज़ल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ ) के मुताबिक अभी हर साल 4 लाख लोग मलेरिया से मर रहे हैं जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं। भारत और अफ्रीकी देशों में तापमान वृद्धि के कारण इन बीमारियों के प्रसार के अधिक आशंका है। 

देहरादून में बना देश का पहला क्रिप्टोगैमिक उद्यान 

उत्तराखंड के चकराता में देश का पहला ‘क्रिप्टोगैमिक उद्यान’ बनाया गया है। देहरादून ज़िले में कोई 9000 फुट की ऊंचाई पर देवबंद नामक जगह पर यह बगीचा बना है। जो आदिम वनस्पतियां बिना बीज के फैलती हैं उन्हें क्रिप्टोग्रैम कहा जाता है। शैवाल, मॉस, लाइकेन, फर्न और कवक जैसे ‘क्रिप्टोगैम’ को उगने के लिए नम दशाओं की जरूरत होती है। इस उद्यान में अभी क्रिप्टोग्रैम की 76 प्रजातियां हैं। देवबन में देवदार और हबलूत वृक्षों के घने जंगल हैं जो ‘क्रिप्टोगैमिक’ या पुष्पहीन प्रजातियों के उगने के लिए प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराते हैं। उत्तराखंड वन विभाग में रिसर्च विंग के प्रमुख चीफ कंज़रवेटर ऑफ फॉरेस्ट संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि, ‘‘हमने उद्यान के लिए देवबन में तीन एकड़ से ज्यादा भूमि को प्रदूषण स्तर कम होने तथा नम दशाओं के कारण चुना जो इन प्रजातियों के पौधों के उगने में सहायक हैं।’’ 

अमेरिका के पर्मियन बेसिन में हैं सबसे बड़े मीथेन के उत्सर्जक संयंत्र 

एक नये अध्ययन में पता चला है कि अमेरिका के पर्मियन बेसिन में स्थित तेल और गैस के संयंत्र दुनिया में मीथेन गैस के सबसे बड़े उत्सर्जकों में हैं। जहां एक ओर यह पता है कि तेल और गैस के मामले में यह बेसिन पूरे अमेरिका के कुल मीथेन उत्सर्जन के आधे से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है वहीं  इस बात की जानकारी नहीं है कि हर संयंत्र का अपना उत्सर्जन कितना है। इस स्टडी का मकसद उपग्रह की तस्वीरों का इस्तेमाल कर प्रत्येक संयंत्र का उत्सर्जन पता लगाना है। अध्ययन में पाया गया कि नये संयंत्र फ्लेरिंग ऑपरेशन में कुशल न होने के कारण सबसे बड़े उत्सर्जक है। 

जलवायु परिवर्तन से तबाह हो जायेगा उत्तरी ध्रुव का ‘आखिरी बर्फीला हिस्सा’

उत्तरी ध्रुव में “बर्फ से ढके आखिरी हिस्से” को पिछले कुछ सालों तक जलवायु परिवर्तन से जितना खतरा  बताया जा रहा था, असली खतरा उससे कहीं ज़्यादा है। यह बात एक नये शोध में सामने आयी है। साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित अध्ययन में यह बात इस क्षेत्र के वेंडल समुद्र के डाटा के आधार पर कही गई। उत्तरी ध्रुव के इस हिस्से में इस समुद्र की 50% बर्फ 2020 की गर्मियों में पिघल गई। वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसमी कारणों से यह बर्फ पिछली है लेकिन क्लाइमेट चेंज यहां आइस की सतह को हर साल पतला कर रहा है।

Website | + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.