सरकार ने संसद में कहा कि उसका हीटवेव को एक अधिसूचित आपदा के रूप में वर्गीकृत करने का कोई इरादा नहीं है। यदि हीटवेव को आपदा घोषित कर दिया जाता है तो आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इससे प्रभावित लोगों को वित्तीय सहायता दी जा सकती है। गौरतलब है कि देश में इस साल अभूतपूर्व हीटवेव देखी गई, जिसने सैकड़ों लोगों की जान ले ली।
सरकार ने कहा कि 15वें वित्त आयोग ने मौजूदा अधिसूचित सूची में और अधिक आपदाओं को शामिल करने पर विचार किया, लेकिन हीटवेव को सूची में शामिल करने से मना कर दिया। सरकार ने कहा कि “आयोग ने अपनी रिपोर्ट के अनुच्छेद 8.143 में कहा है कि आपदाओं की मौजूदा सूची राज्य आपदा शमन कोष और राष्ट्रीय आपदा शमन कोष से फंडिंग के लिए काफी हद तक राज्यों की जरूरतों को कवर करती है और इसलिए सूची का दायरा बढ़ाने का अनुरोध बहुत महत्वपूर्ण नहीं है।”
वर्तमान सूची के अनुसार 12 आपदाओं के लिए राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि/राज्य आपदा मोचन निधि (एसडीआरएफ) से सहायता दी जा सकती है: चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीटों का हमला, पाला और शीतलहर।
निकोबार में 72,000 करोड़ का प्रोजेक्ट प्रतिबंधित क्षेत्र में नहीं: विशेषज्ञ पैनल
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)द्वारा गठित विशेषज्ञ पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निकोबार द्वीप में प्रस्तावित 72,000 करोड़ का प्रोजेक्ट संरक्षित तटीय क्षेत्र (आईसीआरज़े-आईए) में नहीं है। यह सरकार द्वारा दी गई पिछली जानकारी से भिन्न है कि बंदरगाह, हवाई अड्डा, टाउनशिप का 7 वर्ग किमी हिस्सा संरक्षित तटीय क्षेत्र में आता था।
ग्रेट निकोबार ‘समग्र विकास’ परियोजना की कल्पना नीति आयोग द्वारा की गई थी और मुख्य योजना में अन्य सुविधाओं के साथ एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल का निर्माण भी शामिल है। एनजीटी ने प्रोजेक्ट को मिली फॉरेस्ट क्लीयरेंस के फैसले पर दखल देने से इनकार कर दिया था लेकिन पर्यावरण संबंधी अनुमति की समीक्षा करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में विशेषज्ञ पैनल का गठन पिछले वर्ष किया था। अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के निष्कर्ष पहली बार सार्वजनिक हुए हैं। पैनल के निष्कर्ष अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) द्वारा शुक्रवार को एनजीटी की कोलकाता पीठ को दिए एक हलफनामे में प्रस्तुत किए गए। महत्वपूर्ण रूप से, एनजीटी ने कहा कि परियोजना क्षेत्र को सीआरजेड आईए में दिखाया गया था जहां बंदरगाह की अनुमति नहीं है।
कोस्टल रेग्युलेशन ज़ोन (सीआरजेड) मानदंडों के कथित उल्लंघन और एचपीसी के निष्कर्षों का विवरण मांगने पर दायर दो याचिकाओं के जवाब में एनजीटी के समक्ष हलफनामा दायर किया गया था। आरटीआई अधिनियम के तहत यह जानकारी मांगे जाने पर अस्वीकार कर दिया गया था। निगम ने रक्षा उद्देश्यों के कारण गोपनीयता की दलील देकर पैनल की बैठक के मिनट्स (विवरण) साझा नहीं किए।
भारत के जंगलों में एक साल में 2 लाख से अधिक आग की घटनायें, पूरी धरती में सदी के अंत तक इन घटनाओं में होगी 50% वृद्धि
बीते साल 2023-24 के फायर सीज़न में भारत में दो लाख से अधिक फॉरेस्ट फायर की घटनायें हुईं। सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के आंकड़ों के हवाले से कहा कि नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच देश में 2,03,544 घटनायें हुईं जबकि 2022-23 में इसी दौरान 2,12,249 घटनायें हुईं थी। महत्वपूर्ण है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों और जाड़ों में कम बरसात के कारण जंगलों में आग की संख्या और भयावहता बढ़ रही हैं।
उधर संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का कहना है कि हर साल धरती पर 34 से 37 करोड़ हेक्टेयर जंगल जल जाता है और सदी के अंत तक फॉरेस्ट फायर की भीषण घटनाओं में 50 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है। करीब 20 साल बाद जंगलों की आग को नियंत्रित करने के लिए अपडेटेड दिशानिर्देशों को जारी करते हुए एफएओ ने यह बात कही। जलवायु परिवर्तन से जुड़े पर्यावरणीय बदलाव, जैसे कि सूखा, हवा का उच्च तापमान और तेज़ हवाओं के परिणामस्वरूप फायर सीज़न अधिक लंबा और गर्म, शुष्क मौसम वाला होने की संभावना है।
खनन गतिविधियों पर कर लगाने की शक्ति राज्यों के पास: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि खनन गतिविधियों पर कर लगाने की शक्ति राज्यों के पास है और खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी टैक्स नहीं है। इस फैसले से खनिज समृद्ध राज्यों को राजस्व में भारी वृद्धि मिलने की उम्मीद है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि खनन पट्टाधारकों से “रॉयल्टी” लेना कर लगाने की शक्ति से पूरी तरह से अलग है और दोनों का संबंध नहीं है।
डाउन टू अर्थ के अनुसार, इस फैसले से केंद्र और राज्यों के बीच खनिजों पर कर लगाने के मुद्दे पर बहस प्रभावी रूप से समाप्त हो गई है। इससे पहले केंद्र ने कहा था कि संविधान की सूची 1 की प्रविष्टि 54 के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने का विधायी अधिकार उसके पास है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति सूची 2 की प्रविष्टि 50 में दी गई है, इसलिए संसद संबंधित राज्यों में खनन पर कर लगाने के लिए अपनी विधायी शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकता है।
भोज वेटलैंड से छिन सकता है रामसर साइट का दर्जा
भोपाल के भोज वेटलैंड को रामसर कन्वेंशन की सूची से हटाए जाने से बचाने के लिए भारत को एक कठिन लड़ाई लड़नी पड़ रही है। रामसर साइट्स ‘अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स’ की एक वैश्विक सूची है।
गौरतलब है कि भोज वेटलैंड के कैचमेंट एरिया से एक सड़क का निर्माण होना है, जिसकी खबर कुछ लोगों ने रामसर कन्वेंशन को दी। इसके बाद रामसर कन्वेंशन सचिवालय ने वेटलैंड की इकोलॉजी को होनेवाले संभावित नुकसान पर भारत से स्पष्टीकरण मांगा है। जवाब में अब भारत सरकार को सड़क परियोजना को ‘अत्यावश्यक राष्ट्रीय हित’ बताना पड़ेगा। फिर कन्वेंशन द्वारा जमीन पर भारत के दावे की समीक्षा की जाएगी।
भोज वेटलैंड को रामसर साइट का दर्जा अगस्त 2002 में मिला था।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़
-
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
-
बाकू वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर नहीं बन पाई सहमति