सुप्रीम कोर्ट ने बिना अनुमति के हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास 100 एकड़ जमीन पर पेड़ों को काटने के लिए तेलंगाना सरकार की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह काटे गए जंगल को बहाल करने के लिए एक स्पष्ट योजना प्रस्तुत करे, और शीर्ष अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि वह ऐसा करने में विफल रहते हैं उनके खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि जंगलों को काटने की क्या जल्दी थी, विशेष रूप से छुट्टियों के दौरान। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अब एक भी और पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए। अदालत ने वन्यजीवों को हुए नुकसान पर चिंता जताई और राज्य को निर्देश दिया कि वनों की कटाई से प्रभावित जानवरों की रक्षा करे।
कोर्ट ने कहा कि बुलडोज़रों ने उक्त क्षेत्र को पूरी तरह नष्ट कर दिया है और बताया कि इस भूमि को एक निजी पक्ष के पास गिरवी रखा गया था। कोर्ट ने ग्रीन कवर और सस्टेनेबल डेवलपमेंट की आवश्यकता पर जोर देते हुई तेलंगाना सरकार को इस मामले पर रिपोर्ट देने के लिए चार हफ़्तों का समय दिया।
इसी बीच कोर्ट ने सभी तरह की पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है।
तेल-गैस पाइपलाइन, हाइवे के लिए मिट्टी के खनन पर नहीं लेनी होगी पर्यावरणीय मंजूरी
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने घोषणा की है कि कुछ प्रकार की परियोजनाओं के लिए आर्डिनरी अर्थ (जैसे निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली मृदा या मिट्टी) का खनन या उपयोग करने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा रिपोर्ट किए गए एक कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, कुछ पर्यावरण सुरक्षा नियमों का पालन जरूरी होगा।
लीनियर प्रोजेक्ट जैसे तेल, गैस या स्लरी पाइपलाइन, हाईवे या रेलवे लाइन, जिनमें अक्सर 20,000 क्यूबिक मीटर से अधिक मिट्टी के खनन की आवश्यकता होती है, उन्हें इस नए नियम के अनुसार विशेष पर्यावरणीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी, यदि वे निर्दिष्ट सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करें।
यदि किसी परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता होती है, तो एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति यह सुनिश्चित करेगी कि पर्यावरण सुरक्षा नियमों का पालन किया जाए। इसके अलावा, जिला प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन विभाग, भूवैज्ञानिकों, आदि के अधिकारियों को लेकर बनी एक स्थानीय समिति यह तय करेगी कि विभिन्न कारकों के आधार पर प्रत्येक परियोजना के लिए कितनी मिट्टी हटाई जा सकती है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में लाए गए एक ऐसे ही नियम को अस्पष्ट और अनुचित बताकर रद्द कर दिया था।
भारत समेत 63 देशों ने वैश्विक शिपिंग टैक्स के पक्ष में दिया वोट
भारत और 62 अन्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र की शिपिंग एजेंसी द्वारा शिपिंग उद्योग पर दुनिया का पहला वैश्विक कार्बन टैक्स लगाने के ऐतिहासिक निर्णय का समर्थन किया है। उत्सर्जन में कटौती करने के उद्देश्य से लाया गया तह टैक्स साल 2028 से लागू होगा, जिसके बाद जहाजों को या तो साफ ईंधन का उपयोग करना होगा या इस शुल्क का भुगतान करना होगा।
इस टैक्स से 2030 तक 40 बिलियन डॉलर जमा किए जा सकते हैं। हालांकि आलोचकों का कहना है कि इस कदम से 2030 तक उत्सर्जन में 10% की कमी अपेक्षित है, जो कि 20% कटौती के लक्ष्य से कम है।
इसके अलावा, इस टैक्स से गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में कोई मदद नहीं मिलेगी – जो तुवालु और वानुअतु जैसे कमजोर देशों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। सऊदी अरब और अमेरिका जैसे कुछ देशों ने या तो वोटिंग में भाग नहीं लिया या इसका विरोध किया।
अधिक प्रदूषण करने वाले जहाजों को अधिक टैक्स देना होगा, जो 100 से 380 डॉलर प्रति टन उत्सर्जन से शुरू होगा। हालांकि इसे एक अच्छी पहल माना जा रहा है, फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि और कड़े कदमों की जरूरत है।
2026 तक 250 मिलियन डॉलर खर्च करेगा लॉस एंड डैमेज फंड
संयुक्त राष्ट्र का लॉस एंड डैमेज फंड 2026 तक विकासशील देशों को जलवायु आपदाओं के प्रभावों से निपटने में मदद करने के लिए 250 मिलियन डॉलर खर्च करने को तैयार है। क्लाइमेट होम न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, फंड विकासशील देशों द्वारा प्रस्तावित परियोजना को 5 मिलियन से लेकर 20 मिलियन डॉलर तक का अनुदान देगा।
आपदा की स्थिति में विस्थापित लोगों के लिए अस्थायी आवास जैसी आपातकालीन जरूरतों के लिए सरकारें फंड से सीधा बजट समर्थन भी ले सकती हैं। यह तय किया गया है कि लघुद्वीपीय विकासशील देशों (सिड्स) और अल्पविकसित देशों (एलडीसी) को शुरुआती अवधि के दौरान फंड के कम से कम 50% संसाधन प्राप्त होंगे।
प्रारंभिक चरण में परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बोर्ड अन्य अंतर्राष्ट्रीय फंडों, जैसे आईएमएफ और ग्रीन क्लाइमेट फंड, द्वारा भी सहायता दिए जाने की अनुमति दे सकता है। इसे पिछले नियमों को कमजोर करने की तरह देखा जा रहा है। बोर्ड ने लॉस एंड डैमेज फंड के सचिवालय से इसके लिए एक प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहा है।
फंड से पैसे केवल अनुदान के रूप में दिए जाएंगे। हालांकि, अनुदान प्राप्त करने वाले देश चाहें तो उन्हें अन्य प्रकार की सार्वजनिक या निजी फंडिंग के साथ मिलाने के लिए स्वतंत्र हैं।
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