जोशीमठ भूधंसाव के मामले में सरकार से संसद में सवाल पूछा गया, लेकिन सरकार की ओर से केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पुरानी बातें दोहरा दीं। उन्होंने बताया कि भूधंसाव के बाद तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना और हेलंंग मारवाड़ी बाइपास का काम रोक दिया गया था। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि हेलंग बाइपास का काम बाद में शुरू कर दिया गया था।
राज्यसभा में दिए गए एक लिखित जवाब में उन्होंने बताया कि साल 1976 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित मिश्रा समिति ने जोशीमठ में भूस्खलन और स्थानीय धंसाव की चेतावनी दी थी। उस समय 18-सदस्यीय समिति के सदस्य संगठनों के पास उपलब्ध विशेषज्ञता और संसाधनों के अनुसार विभिन्न दीर्घकालिक और अल्पकालिक उपाय सुझाए थे।
उनके मुताबिक, मिश्रा समिति की सिफारिशों पर उत्तराखंड सरकार द्वारा कार्रवाई की जानी बाकी है।
अपने जवाब में उन्होंने आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति का हवाला देते हुए कहा कि राहत वितरण और आपदा के कारण प्रभावित लोगों के पुनर्वास सहित आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की है। केंद्र सरकार स्थापित प्रक्रिया के अनुसार आवश्यक वित्तीय और रसद सहायता प्रदान करती है।
यहां यह खास बात है कि छह माह से अधिक समय बीतने के बाद भी उत्तराखंड सरकार कोई स्थायी सहायता प्रदान नहीं कर पाई है।
वन एवं पर्यावरण मंत्री के जवाब में कहा गया है कि राज्य और केंद्र सरकार के विभिन्न स्तरों पर स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। इसके अलावा, केंद्र सरकार और राज्य सरकार जोशीमठ क्षेत्र में भूमि धंसाव के प्रभाव को कम करने के लिए सभी संबंधित एजेंसियों के साथ निकट समन्वय में काम कर रही है।
यहां यह भी बता दें कि इन एजेंसियों की रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
जवाब में कहा गया कि केंद्र सरकार ने विकासात्मक परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के आकलन के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया भी तैयार की है और इसे समय-समय पर संशोधित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 में निर्धारित किया गया है।
अधिसूचना अन्य बातों के साथ-साथ विचार प्रक्रिया के चार चरणों यानी स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, सार्वजनिक परामर्श और विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) द्वारा मूल्यांकन प्रदान करती है।
अधिसूचना की अनुसूची में सूचीबद्ध विकासात्मक परियोजनाओं के विस्तृत अध्ययन और विश्लेषण के बाद और आवश्यक पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के अनुपालन के अधीन ही पर्यावरणीय मंजूरी जारी की जाती है।
सुरक्षा उपायों से संबंधित परियोजना विशिष्ट शर्तें जैसे प्रारंभिक चेतावनी टेलीमीट्रिक प्रणाली की स्थापना, आपातकालीन तैयारी योजना का कार्यान्वयन, आपदा प्रबंधन योजना, बांध टूटने का विश्लेषण, जलग्रहण क्षेत्र उपचार योजना, मलबा निपटान स्थलों का स्थिरीकरण, वृक्षारोपण, चारागाह विकास, नर्सरी विकास, आदि। पनबिजली परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी भी इसमें निर्धारित की गई है।
जवाब में कहा गया कि पिछले दशक में, मंत्रालय ने विष्णुगढ़ पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना (444 मेगावाट स्थापित क्षमता), घांघरिया से हेमकुंड साहिब (चरण- प्रथम) तक हवाई यात्री रोपवे और चमोली जिले के जोशीमठ तहसील में सेनेटरी लैंडफिल को पर्यावरणीय मंजूरी दी है। इन सभी के लिए उचित प्रक्रियाओं का पालन करके और अपेक्षित पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को शामिल किया गया है।
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