नया वैज्ञानिक शोध बताता है कि हिमनदों के लिये ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव से उबरना कहीं अधिक कठिन होगा। स्टॉकहोम विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में कहा है कि ग्रीनलैंड जैसे इलाकों में बर्फ की दीवार (आइस शेल्फ) अगर बढ़ते तापमान के कारण टूट जाती है तो वह फिर दोबारा खड़ी नहीं हो सकती चाहे ग्लोबल वार्मिंग रुक भी जाये।
अंतराष्ट्रीय विज्ञान जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक यह आइस शेल्फ, ध्रुवीय बर्फ की चादरों को होनी वाली क्षति को भी कम करती हैं। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लेशियरों की बर्फ अब पहले के मुकाबले 30% अधिक पिघल रही है। भारत के लिये यह शोध विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां के हिमालयी क्षेत्र में 10 हज़ार से अधिक छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इस ख़बर को यहां विस्तार से पढ़ा जा सकता है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
मार्च में ही चलने लगी है हीटवेव, मौसम विभाग की चेतावनी
-
लॉस एंड डैमेज फंड से बाहर हुआ अमेरिका: इस हफ्ते की पांच बड़ी खबरें
-
चमोली हिमस्खलन में बीआरओ के 8 श्रमिकों की मौत; 46 बचाए गए
-
उत्तराखंड के चमोली में हिमस्खलन के बाद 25 मजदूर लापता
-
आईपीसीसी की बैठक से अमेरिका नदारद, गहन वैज्ञानिक रिपोर्टों पर होगा असर