केंद्र सरकार ने बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम्स के लिए वायाबिलिटी गैप फंडिंग के तौर पर 3,760 करोड़ रुपए का आवंटन किया था, जिसके ज़रिए पावर ग्रिड से नवीकरणीय ऊर्जा के इंटीग्रेशन को बढ़ावा दिया जाना है। इस प्रक्रिया में नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा को पावर ग्रिड से जोड़ा जाता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे माल की बढ़ती लागत और नई तकनीकें आने वाले सालों में इस क्षेत्र के लिए चुनौतियां उत्पन्न करती रहेंगी।
भारत को 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हाइब्रिड पवन और सौर परियोजनाओं के साथ बैटरी भंडारण की भी काफी जरूरत है। बैटरी स्टोरेज सिस्टम नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में रुकावट को दूर करने में मदद करता है।
इस क्षेत्र से जुड़े जानकारों और निर्माताओं का कहना है कि वायाबिलिटी गैप फंडिंग से बैटरी स्टोरेज सिस्टम आर्थिक रूप से व्यवहार्य तो हो जाएगा, लेकिन फिर भी इसकी लागत बहुत अधिक है जिसके कारण डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों के लिए इनको अपने नेटवर्क से जोड़ना संभव नहीं होगा। साथ ही, आयातित कच्चे माल की बढ़ती कीमतों का भी इसपर प्रभाव पड़ेगा।
दिल्ली की ईवी नीति 2.0 कर सकती है रेट्रो-फिटिंग का समर्थन
दिल्ली सरकार की ईवी नीति 2.0 में स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिए रेट्रो-फिटमेंट पर जोर दिया जा सकता है। नई नीति के कुछ महीनों में लागू होने की उम्मीद है। रेट्रो-फिटमेंट के द्वारा पेट्रोल या डीजल वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहन में परिवर्तित किया जाता है।
इस प्रक्रिया में मूल इंजन और दूसरे घटकों को बदल कर एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत लगाया जाता है। इसके द्वारा पुराने वाहनों को कबाड़ में बेचने के बजाय उनका उपयोग जारी रखा जा सकता है।
दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा कि इलेक्ट्रिक वाहन रेट्रो-फिटमेंट महंगा है, लेकिन अगर कीमतें कम कर दी जाएं तो इसका भविष्य अच्छा हो सकता है, क्योंकि यह स्वच्छ हवा को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि सरकार अगली ईवी नीति में इस कांसेप्ट को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है।
2030 तक दुनिया भर में बिकने वाली कारों में दो तिहाई होंगी ईवी
एक नए शोध ने दावा किया है कि बैटरी की गिरती लागत के कारण यूरोप में 2024 और अमेरिकी बाजार में 2026 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें जीवाश्म-ईंधन मॉडलों के बराबर हो जाएंगी, और 2030 तक वैश्विक कार बिक्री का दो-तिहाई हिस्सा ईवी का होने की उम्मीद है।
रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट (आरएमआई) की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस दशक में बैटरी की लागत आधी हो जानी चाहिए, जो 2022 में 151 डॉलर प्रति किलोवाट ऑवर (केडब्ल्यूएच) से घटकर 60 से 90 डॉलर प्रति किलोवाट ऑवर के बीच हो जाएगी। इससे 2030 तक ‘पहली बार ईवी की कीमतें पेट्रोल कारों जितनी होगी और साथ ही संचालन भी सस्ता होगा’।
ईवी के मूल्य का लगभग 40% हिस्सा बैटरी का होता है, जिसकी अधिक लागत के कारण इलेक्ट्रिक वाहन अभी भी कई उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हैं।
चीन द्वारा ईवी निर्माताओं को दी गई सब्सिडी की जांच करेगा यूरोपीय संघ
यूरोपीय संघ (ईयू) चीन द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को दी जाने वाली सब्सिडी की जांच शुरू करेगा। ईयू में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि इस सब्सिडी से यूरोपीय कंपनियों को नुकसान पहुंच रहा है।
‘वैश्विक बाजार अब सस्ती चीनी इलेक्ट्रिक कारों से भर गए हैं, और उनकी कीमत भारी सब्सिडी द्वारा कृत्रिम रूप से कम रखी गई है। यह हमारे बाजार को बिगाड़ रहा है,’ यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने यूरोपीय संघ के सांसदों से कहा।
वॉन डेर लेयेन ने कहा की ‘जब हम अपने बाजार में अंदर से होने वाली गड़बड़ी को स्वीकार नहीं करते हैं, तो बाहर से भी स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए, मैं आज घोषणा कर सकती हूं कि आयोग चीन से आने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी विरोधी जांच शुरू कर रहा है।’
चीन ने सब्सिडी में अरबों डॉलर का निवेश करके देश को इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सबसे बड़ा बाजार बनाने में मदद की है। वैश्विक वाहन निर्माता अपने घरेलू क्षेत्रों में चीनी ब्रांडों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं, जो बाजार की अधिकांश हिस्सेदारी ले ले रहे हैं।
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