सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की शुरुआत के चार साल बाद, वित्त वर्ष 21-22 में 131 शहरों में से केवल 49 में पिछले वर्ष की तुलना में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी), शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) और केंद्र के बीच समझौतों के तहत जिन 131 शहरों को वार्षिक प्रदूषण में कमी का लक्ष्य दिया गया था, उनमें से केवल 38 ही साल 21-22 के लक्ष्यों को पूरा करने में कामयाब रहे।
एनसीएपी में भारत के 132 सबसे प्रदूषित या तथाकथित ‘गैर-प्राप्ति शहरों’ को शामिल किया गया है। ‘गैर-प्राप्ति शहर’ उन्हें कहा जाता है जिनकी वायु गुणवत्ता 2011 से 2015 के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरती है।
एनसीएपी का लक्ष्य है देश में 2017 के प्रदूषण स्तर को आधार बनाते हुए 2024 तक पीएम2.5 और पीएम10 कणों से होने वाले प्रदूषण के स्तर में 20% -30% की कमी लाना।
वायु प्रदूषण के मामले में नवी मुंबई ने दिल्ली को पछाड़ा
नवी मुंबई ने खराब वायु गुणवत्ता के मामले में दिल्ली को पीछे छोड़ दिया है। बीते रविवार को नवी मुंबई का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 350 था, जबकि दिल्ली का 345। हालांकि दोनों ही शहरों में वायु गुणवत्ता ‘बेहद ख़राब’ श्रेणी में रही।
मुंबई, नवी मुंबई और आस-पास के इलाकों की बिगड़ी हुई आबो-हवा नए साल की शुरुआत से ही लोगों के स्वास्थ्य पर खराब असर डाल रही है। वायु गुणवत्ता की मॉनिटरिंग करने वाली संस्था ‘सफर’ ने अंदेशा जताया है कि शहर की हवा पूरे महीने खराब रहेगी।
सफर के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर मुंबई की वायु गुणवत्ता पर पड़ा है। हवा की गति कमजोर होने से वायु प्रदूषक कणों का प्रसार नहीं हो पा रहा है।
समुद्र से घिरे होने की वजह से मुंबई वायु प्रदूषण से बची रहती है, लेकिन अभी यहां की हवा भी प्रदूषित हो गई है।
2066 तक भर जाएगा ओजोन परत का छेद: यूएन
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पृथ्वी की सुरक्षात्मक ओजोन परत धीरे-धीरे ठीक हो रही है और लगभग 43 वर्षों में अंटार्कटिका के ऊपर हुआ छेद पूरी तरह से भर जाएगा।
एक चतुर्वर्षीय आकलन में पाया गया कि सभी देशों के ओज़ोन परत को को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों का उत्पादन बंद करने के साझा निर्णय के 35 साल बाद अब पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद इस परत में सुधार प्रगति पर है। ओज़ोन परत ऐसे हानिकारक विकिरण से पृथ्वी की रक्षा करती है जिसके कारण त्वचा के कैंसर और मोतियाबिंद जैसे रोगों के साथ-साथ फसल के नुकसान का भी खतरा उत्पन्न होता है।
वायुमंडल में लगभग 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद ओजोन की वैश्विक औसत मात्रा में 1980 के दशकों में गिरावट देखी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है 2040 से पहले यह मात्रा उस स्तर तक वापस नहीं पहुंचेगी। आर्कटिक में ओज़ोन परत सामान्य होने में 2045 तक का समय लगेगा। वहीं अंटार्कटिका में, जहां इसकी मात्रा इतनी कम है कि परत में एक विशाल छेद है, इसे पूरी तरह सामान्य होने में 2066 तक का वक्त लगेगा।
नए साल में सांस के रोगियों की संख्या में हुई 30% की वृद्धि
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया है कि नए साल में सांस के रोगियों की संख्या में कम से कम 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अत्यधिक प्रदूषण के कारण मरीजों को रक्त में ऑक्सीजन की कमी और सांस की तकलीफ हो रही है, और कुछ को तो आईसीयू में भर्ती करना पड़ा है।
सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए यह सर्दी वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि के कारण अत्यधिक हानिकारक साबित हो रही है। दिवाली के बाद से बिगड़ती वायु गुणवत्ता नए साल में प्रवेश करते ही और ख़राब हो गई है।
लोग खांसी, सांस लेने में तकलीफ, और सीने में दर्द जैसी समस्याओं के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं। सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषकों के वातावरण में स्थिर हो जाने के कारण सांस की बीमारियां बढ़ जाती हैं।
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