फोटो: Jyoti Pandalai/Pixabay

भारत के ‘चमत्कारिक वृक्षों’ की कहानी बताती पुस्तक

एक वनस्पतिशास्त्री की इस नई पुस्तक में भारत के विराट और प्राचीनतम पेड़ों के साथ इतिहास और संस्कृति की किस्सागोई है।

आज से कोई दो दशक पहले, प्रकृतिवादी प्रदीप कृष्ण ने एक किताब लिखी थी, जिसने राजधानी के महत्वपूर्ण पेड़ों के बारे में युवा प्रकृति प्रेमियों की रुचि जगाई। कृष्ण ने अपनी पुस्तक ‘ट्रीज़ ऑफ़ डेल्ही, ए फील्ड गाइड‘ में 250 से अधिक पेड़ों और उनकी कुछ उप-प्रजातियों के बारे में जानकारी दी, जिसने कई पर्यावरण प्रेमियों और शोधकर्ताओं को राजधानी में घूमने और शहर में उगने वाली हमारी वनस्पतियों की भूली-बिसरी हुई प्रजातियों को खोजने के लिए प्रोत्साहित किया।

उस पुस्तक के प्रकाशन के लगभग 20 साल बाद कृष्ण के साथी प्रकृतिवादी और वनस्पतिशास्त्री एस नतेश एक नई किताब लेकर आए हैं, जो आपका परिचय देश भर के नायाब पेड़ों से कराती है। नतेश की ‘आइकॉनिक ट्रीज़ ऑफ़ इंडिया” को हाल ही में कई विशेषज्ञों और प्रकृति प्रेमियों की उपस्थिति में दिल्ली की सुंदर नर्सरी में औपचारिक रूप से जारी किया गया था।  कोई ढाई सौ पन्नों की पुस्तक को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा गया है; पहला हिस्सा पुस्तक का संदर्भ बताता है। नतेश ने भारत के बीस से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 75 ‘नेचुरल वंडर्स’ को चुना है — उत्तर में जम्मू और कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में असम और नागालैंड तक।

फिर एक नई किताब क्यों? जबकि शोधकर्ताओं और सामान्य पाठकों के लिए पौधों और उनकी उप-प्रजातियों पर पहले से ही बहुत सारी पुस्तकें उपलब्ध हैं। प्रदीप सचदेवा और विद्या टोंगब्राम द्वारा लिखी गई ‘द ट्रीज़ एंड श्रब्स ऑफ़ इंडिया…‘ और पीटर वोहलेबेन की ‘द हिडन लाइफ ऑफ़ ट्रीज़…’ पिछले दशक के मध्य में प्रकाशित हुए थीं।

पहली किताब एक प्रकृतिवादी की गाइड है और दूसरी — लीक से थोड़ा हटकर — इस बारे में है कि पेड़ और पौधे कैसे महसूस करते हैं और संवाद करते हैं। इस शैली में एक और पुस्तक है, प्रदीप कृष्ण की ‘जंगल ट्रीज़ ऑफ़ सेंट्रल इंडिया‘ जो पहली बार एक दशक पहले 2014 में प्रकाशित हुई थी। पादप वर्गीकरण (प्लांट टेक्सोनॉमी) पर एक गंभीर वैज्ञानिक कार्य प्रोफेसर सीआर बाबू की लिखी फ्लोरा ऑफ़ देहरादून है। दुर्भाग्य से, यह पुस्तक बाज़ार में उपलब्ध नहीं है और केवल कुछ पुस्तकालयों में ही मिल पाती है। इसी तरह, डिट्रिच ब्रैंडिस की इंडियन ट्रीज़ और केसी साहनी की द बुक ऑन इंडियन ट्रीज़ में भी पेड़ों की वैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है और यह वानिकी के छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय है।

फिर भी ‘आइकॉनिक ट्रीज़ ऑफ़ इंडिया‘ दो कारणों से अलग है।

पहली बात, यह दिलचस्प तथ्यों, लोक कहावतों और एक विशेष पेड़ से जुड़े विशिष्ट सम्मान पर आधारित किताब है। लेखक शुरुआत में अपना उद्देश्य प्रकट करता है: “न तो वनस्पति विज्ञानी और न ही इतिहासकार असाधारण पेड़ों पर विशेष ध्यान देते हैं। वनस्पतिशास्त्री आम तौर पर समग्र रूप से प्रजातियों का अध्ययन करते हैं और शायद ही कभी व्यक्तिगत उल्लेखनीय पेड़ों पर ध्यान देते हैं। इसके अलावा, वह कहते हैं: “लोग हमेशा सबसे बड़े, पुराने, ऊंची प्रजातियों के बारे में सुनना जानना चाहते हैं…।” 

इसलिए, नतेश पाठक को देश के सबसे पुराने और सबसे बड़े पेड़ से परिचित कराते हैं – उदाहरण के लिए, दुनिया का सबसे ऊंचा बुरांश का पेड़ और भारत का सबसे अकेला पेड़। लेकिन पेड़ों को लेकर किये जाने वाले ऐसे दावे तभी तक टिक पाते हैं जब कि वैज्ञानिक रूप से की गई पड़ताल सामने न आ जाये। नतेश को इसका भान है कि लोग ‘अतिश्योक्तिपूर्ण दावे’ करते हैं जो अमूमन सच नहीं होते, विशेषकर ‘पवित्र’ कहे जाने वाले पेड़ों को लेकर।

पुस्तक में एक जगह उन्होंने उत्तरप्रदेश के बाराबंकी ज़िले में पारिजात के रूप में पूजे जाने वाले पेड़ का ज़िक्र किया है और कहा है कि “… इसकी उम्र 5,000 वर्ष बताई जाती है। हालाँकि, रेडियोकार्बन डेटिंग से पता चला है कि यह लगभग 800 वर्ष ही पुराना है।”

लेकिन यह किताब पुरातन पेड़ों या असाधारण आकार वाले वृक्षों तक ही सीमित नहीं है। यह संस्कृति और इतिहास का मिश्रण प्रस्तुत करता है। शायद इस शैली की किसी भी अन्य पुस्तक में लोककथाओं, सामुदायिक ज्ञान और संस्कृति और सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियों को सदियों पुराने पेड़ों के अस्तित्व के साथ इस तरह से नहीं बुना गया है।

उदाहरण के लिए, नतेश भारत के “सबसे पुराने ज्ञात जीवित पेड़ों” की उनके नाम और स्थान के साथ एक सूची प्रदान करते हैं, वह जम्मू और कश्मीर में हिंदू और मुस्लिम दोनों द्वारा संरक्षित एक पवित्र पेड़ की कहानी भी बताते हैं। वह देहरादून में महात्मा गांधी द्वारा लगाए गए पीपल के पेड़, तेरहवें और आखिरी पेशवा पेशवा बाजीराव द्वारा लगभग 200 साल पहले पुणे में लगाए गए आम के पेड़ के बारे में लिखते हैं। वह पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में बोलने वाले अंजीर के पेड़ के बारे में भी लिखते हैं, जिसने अंग्रेजों द्वारा फांसी और यातना की कई डरावनी कहानियाँ देखीं। वह एक ऐसे पेड़ के बारे में लिखते हैं जिससे लटकाकर ठगों को फाँसी दी जाती थी, एक ऐसा पेड़ जिस पर लाखों मधुमक्खियाँ रहती हैं, और उसके साथ पेड़ जहां बुद्ध को आत्मज्ञान मिला।

लेखक ने पेड़ों के वैज्ञानिक नाम और उनकी फैमिली के साथ यह बताया है कि वे कहां पर हैं लेकिन पुस्तक में पेड़ों की वास्तविक तस्वीरें नहीं हैं, इसमें विज़ुअल आर्टिस्ट सागर भौमिक के बनाये चित्र हैं। दिल्ली में पुस्तक विमोचन के दौरान, पर्यावरणविद् फैयाज अहमद खुदसर, जो कभी नतेश के छात्र थे, ने पूछा कि उन्होंने पेड़ों की मूल तस्वीरों का उपयोग क्यों नहीं किया?

नतेश ने जवाब में मुस्कुराते हुए कहा, “मैं आपको सभी तस्वीरें उपलब्ध कराऊंगा, और आप खुशी-खुशी उनकी एक अच्छी वेबसाइट बना लीजिएगा।”

पुस्तक में पेड़ों के चित्र काफी सजीव और विचारोत्तेजक हैं। हालांकि यह पुस्तक ऐसे समय में आई है जब भारत – और पूरी दुनिया – पर्यावरण के लिए गंभीर खतरों का सामना कर रहे हैं। हिमालय से लेकर तटीय क्षेत्रों तक हमारे जंगलों पर हमला हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में मानव इतिहास के आठ सबसे गर्म वर्ष शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन संकेतक पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए। जंगलों की हमारी समृद्ध विरासत लुप्त हो रही है और सरकारें पेड़ों की कटाई को बढ़ावा देने और उचित ठहराने के लिए प्रत्यारोपण जैसे विचारों को आगे बढ़ा रही हैं। उनका नुकसान पक्षियों की प्रजातियों के घरों और आवासों, स्वस्थ मिट्टी और असंख्य कीट-पतंगों को खतरे में डालता है। हमारा चारों ओर एक समृद्ध जीवमंडल मर रहा है।

किसी भी विकास परियोजना में सबसे पहली चोट पेड़ों पर होती है और नतेश पाठकों को याद दिलाते हैं कि हमारे ग्रह पर “एक मिलियन जानवरों और पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा होने का मंडरा रहा है”। हमें अपने सदियों पुराने जंगलों और मोनोकल्चर वृक्षारोपण द्वारा प्रतिस्थापित किए जा रहे हमारे स्वस्थ जैव-विविध पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में चिंता करने की ज़रूरत है।

+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.