उत्तराखंड के कुमाऊं में स्थित बागेश्वर ज़िले में घरों की दीवारों में वैसी ही दरारें देखी गईं हैं जैसी 2022-23 में जोशीमठ में दिखी थीं। बागेश्वर के दो दर्जन से अधिक गांवों में लोगों ने ऐसी शिकायत की है। लोगों ने इस भूधंसाव के लिए भारी मशीनों द्वारा पिछले कई दशकों से हो रहे अंधाधुंध खड़िया खनन को ज़िम्मेदार बताया है । लोगों ने प्रशासन द्वारा होने वाले जनता दरबार में यह चिन्ता जताई। हालांकि कुछ भूविज्ञानियों और राजस्व अधिकारियों के साथ 3 सितंबर को कुछ प्रभावित गांवों का दौरा करने के बाद ज़िले की माइनिंग अधिकारी जिज्ञासा बिष्ट ने कहा कि जो साल पहले खनन रोके जाने के बाद भी कांडा गांव के आठ घरों की दीवारों और छतों पर दरारें दिख रही हैं।
बिष्ट ने कहा कि ले में जिन इलाकों में अभी भी खनन चल रहा है, उनसे सटे 25 से अधिक गांवों के घरों में भी दरारें आ गई हैं। उनके मुताबिक ये ज्यादातर ऐसे गांव हैं जिनके निवासियों ने खनन कार्य करने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिले के कुल 402 गांवों में से 100 से अधिक गांवों के धीरे-धीरे ढहने का खतरा है। इस ज़िले में खनन से गंभीर हो रही स्थिति पर पहले भी मीडिया में विस्तृत रिपोर्टिंग हुई पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थिति जोशीमठ, जिसे हाल ही में ज्योतिर्मठ नाम दिया गया है, में 2023 की शुरुआत में लगभग 1,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा, जब भूमि धंसने के कारण दीवारों और फर्श पर बड़ी दरारें दिखाई दीं।
भारत के 85 प्रतिशत से अधिक ज़िलों पर एक्स्ट्रीम क्लाइमेट घटनाओं का ख़तरा: अध्ययन
एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत में 85 प्रतिशत से अधिक जिलों पर बाढ़, सूखे और चक्रवात जैसी चरम जलवायु घटनाओं का ख़तरा है। आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया के अध्ययन में यह भी पाया गया कि 45 प्रतिशत जिले “स्वैपिंग” प्रवृत्ति का अनुभव कर रहे थे, जहां पारंपरिक रूप से जिन इलाकों में बाढ़ का खतरा रहता था वहां सूखा पड़ रहा है और इसका उल्टा भी हो रहा है। इस अध्ययन में 1973 से लेकर 2023 के बीच पिछले 50 साल में एक्सट्रीम क्लाइमेट घटनाओं का देखा गया।
पिछले एक दशक में ही चरम जलवायु घटनाओं में पांच गुने की वृद्धि देखी गई जिसमें बाढ़ की घटनाओं में चार गुना बढ़त थी। पूर्वी भारत के ज़िलों में बाढ़ का खतरा सबसे अधिक है जिसके बाद उत्तर-पूर्व और दक्षिण के हिस्से आते हैं। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि सूखे की घटनाओं में दो गुना वृद्धि हुई है, विशेष रूप से कृषि और मौसम संबंधी सूखे में, और चक्रवात की घटनाओं में चार गुना वृद्धि हुई है। इसमें पाया गया कि बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम के 60 प्रतिशत से अधिक जिले एक से अधिक चरम जलवायु घटनाओं का अनुभव कर रहे थे।
साल के अंत तक ला निना स्थितियां बन जायेंगी: डब्लूएमओ
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के ताज़ा अपडेट के मुताबिक इस बात की 60 प्रतिशत संभावना है कि इस साल के अंत तक ला निना स्थितियां पैदा हो जायेंगी जिस कारण उत्तर भारत के कई हिस्सों में सामान्य से अधिक ठंड के हालात होंगे। लंबी अवधि के पूर्वानुमान के मुताबिक इस बात की 55% संभावना है कि सितंबर-अक्टूबर तक मौजूदा न्यूट्रल हालात ( न तो अल निनो और न ही ला निना ) से ला निना की स्थितियां बन जायेंगी।
डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, “अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 तक यह संभावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और इस दौरान फिर से अल नीनो के बनने की संभावना नगण्य है।”
ला नीना का अभिप्राय मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के बड़े पैमाने पर ठंडा होने से है, जिससे उष्णकटिबंधीय वायुमंडलीय परिसंचरण, जैसे हवाओं, दबाव और वर्षा में परिवर्तन जैसी मौसमी बदलाव देखे जाते हैं। यह आम तौर पर भारत में मानसून के मौसम के दौरान तीव्र और लंबे समय तक बारिश और विशेष रूप से उत्तरी क्षेत्रों में सामान्य से अधिक ठंडी सर्दियों से जुड़ा होता है। हालांकि भारतीय मौसम विभाग ने अभी इस बात की पुष्टि नहीं की है कि ला निना स्थितियों के कारण सर्दियों में सामान्य से अधिक ठंड होगी।
अंधाधुंध शहरी निर्माण से गुजरात में बाढ़: आईआईटी गांधीनगर का अध्ययन
एक ताज़ा विश्लेषण से पता चलता है कि गुजरात में आई बाढ़ के पीछे चरम मौसमी घटना थी और अत्यधिक शहरी विकास के कारण हालात और अधिक खराब हो गए। आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने ताज़ा अध्ययन में कहा है कि शहर में अंधाधुंध निर्माण, ढलान में बदलाव और जल निकासी में नियमों का पर्याप्त पालन न होने से हालात बिगड़े। पिछले महीने 20 अगस्त से 29 अगस्त के बीच में भारी बारिश के कारण गुजरात के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ गई। इस दौरान राज्य के 33 में से 15 ज़िलों में 3 दिनों के भीतर इतनी बारिश हुई जो 10 साल का रिकॉर्ड टूट गया। जामनगर, द्वारका, मोरबी और राजकोट में 50 साल का रिकॉर्ड टूट गया।
रहस्यमयी सुनामी: ग्रीनलैंड ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा ढहा, 9 दिनों तक ‘धरती हिली’
ग्रीनलैंड में खड़ी चट्टानों के बीच समुद्री मार्ग में भूस्खलन के कारण भूकंपीय घटना हुई जिसने नौ दिनों तक “पृथ्वी को हिलाकर रख दिया”। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उपग्रह छवि में एक समुद्री मार्ग में धूल का बादल दिखाई दे रहा है। घटना से पहले और बाद की तस्वीरों की तुलना करने से पता चला कि एक पहाड़ ढह गया था और ग्लेशियर का एक हिस्सा पानी में बह गया था। रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ता यह पता लगाने में कामयाब रहे कि 25 मिलियन क्यूबिक मीटर चट्टान – यानी 25 एम्पायर स्टेट बिल्डिंग के बराबर मात्रा मलबा – पानी में गिरा, जिससे 200 मीटर ऊंची “मेगा-सुनामी” पैदा हुई।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, भूस्खलन के कारण 200 मीटर की लहर उठी जो एक संकरे समुद्री मार्ग में “फंस” गई, और उसके आगे-पीछे होते रहने से भारी कंपन पैदा हुए जिसे दुनिया भर के सेंसरों ने पकड़ लिया। समाचार वेबसाइट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीनलैंड के पहाड़ों को सहारा देने वाले ग्लेशियर पिघलने के कारण इस तरह के भूस्खलन अक्सर हो रहे हैं। डॉ. क्रिस्टियन स्वेनविग ने बीबीसी न्यूज़ को बताया: “हम विशेष रूप से ग्रीनलैंड में विशाल, सुनामी पैदा करने वाले भूस्खलन में वृद्धि देख रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवों की ओर जा रही हैं मछलियां, मत्स्य कारोबार पर असर
एक नए शोध में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र में मछली भंडार का पुनर्वितरण हो रहा है जो ध्रुवों की ओर अधिक खिसक रहा है। इससे वैश्विक मत्स्य उद्योग पर असर पड़ेगा। अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया भर में मछली पकड़ने के बेड़ों को वर्ष 2100 तक ध्रुवों पर जाना होगा क्योंकि जिन प्रजातियों का वो पीछा करते हैं करते हैं वो समुद्र के गर्म होने के कारण उच्च अक्षांशों की ओर जा रहे हैं। शोधकर्ताओं ने यह देखने के लिए 82 देशों में औद्योगिक मत्स्य पालन और 13 सामान्य प्रकार के मछली पकड़ने के गियर का मॉडल तैयार किया कि व्यक्तिगत मत्स्य पालन पर जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ेगा। उन्होंने पाया कि ध्रुवीय मछुआरे आर्कटिक में आगे बढ़ेंगे, जबकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मछली पकड़ने वालों का “उष्णकटिबंधीय और ध्रुवीय दोनों तरफ” विस्तार होगा।
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