महत्वपूर्ण कड़ी: चीन से आयात पर रोक के बाद बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत के घरेलू निर्माता इस चुनौती को किस तरह लेते हैं | Photo: Saur Energy

चीन से बिगड़े रिश्तों का असर पड़ेगा सोलर मिशन पर

पड़ोसी चीन के साथ भारत की खटपट पिछले 15 जून को अचानक बहुत नाज़ुक मोड़ पर पहुंच गई जब सरहद पर हुई झड़प में 20 भारतीय जवानों के मारे जाने की ख़बर आई। इसका सीधा असर दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों पर पड़ा है। पहले 29 जून को भारत ने 59  चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाया फिर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने ऐलान कर दिया कि भारत चीन से बिजली उपकरणों का आयात बन्द करेगा। यह आयात भारत के कुल आयात का बड़ा हिस्सा है। हफ्ता भर पहले ही मंत्रालय ने प्रस्ताव रखा था कि अगस्त से चीनी सौर उपकरणों के आयात पर बेसिक कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर 20% कर दी जाये।  संसदीय समिति की मंजूरी मिलने पर 2022 से यह बेसिक कस्टम ड्यूटी 40% तक बढ़ाई जा सकती है।

चीन को सही दिशा में लाने की कोशिश के साथ यह कदम “आत्मनिर्भरता” मिशन का हिस्सा भी माना जा रहा है। डायरेक्टर जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस यानी डीजीसीआई के आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2020 के बीच भारत के सारे आयात की करीब तिहाई कीमत  बिजली के उपकरण और मशीनें ही थी। अगर इसमें परमाणु भट्टियों से जुड़े उपकरण शामिल कर लिये जायें तो यह कीमत कुल आयात का 50% हो जाती है।

सवाल यह है कि चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों का कितना असर हमारे सोलर मिशन पर पड़ेगा। आयातित सोलर मॉड्यूल और सेल महंगे होने से बिजली दरों पर उसका असर दिखना तय है। दिल्ली स्थित काउंसिल फॉर एनर्जी, इन्वायरेंमेंट एंड वॉटर की कनिका चावला कहती हैं, “नीलामी तो इसके बाद भी होती रहेंगी लेकिन सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन के लिये इन दरों पर वितरण कंपनियों से सौदा करना आसान नहीं होगा। इसका असर भारत के क्लीन एनर्जी टार्गेट पर हो सकता है। जो प्रोजक्ट अभी निर्माणाधीन हैं उन पर भी असर हो सकता है।”

देश के भीतर सोलर सेल और मॉड्यूल बनाना पिछले कुछ वक्त से सरकार की प्राथमिकता रही है। सरकार ने दो साल पहले एक सेफगार्ड ड्यूटी लगाई थी ताकि घरेलू निर्माता चीन और मलेशिया के बाज़ार से टक्कर ले सकें। इस महीने सेफगार्ड ड्यूटी की अवधि खत्म हो रही है लेकिन अब तक भारतीय निर्माता सेफगार्ड के ज़रिये दिये गये प्रोत्साहन का फायदा नहीं उठा पाये हैं। साफ है कि सेफगार्ड ड्यूटी भी भारत की मेन्युफैक्चरिंग को नहीं बढ़ा पाई। 

भारत अभी केवल 3 गीगावॉट के सोलर सेल और 11 गीगावॉट के ही मॉड्यूल बनाता है और बाज़ार की 85%  मांग आयातित माल से पूरी होती है जिनमें से अधिकतर चीन से आता है।  महत्वपूर्ण है कि मौजूदा हाल में क्लीन एनर्जी की ओर भारत का झुकाव इस बात पर निर्भर करेगा कि घरेलू निर्माता चुनौती का सामना कैसे करते हैं। सरकार द्वारा आयात पर रोक और आयात ड्यूटी को बढ़ाना आत्मनिर्भरता की दिशा में एक छोटा सा कदम हो सकता है। लेकिन इसके बाद उन कदमों का इंतज़ार रहेगा जो असल मायने में इस सपने को हक़ीक़त में बदलते हैं। लेकिन अगर हम घरेलू निर्माण के ज़रिये एक सुदृढ़ सप्लाई चेन तैयार नहीं कर पाते तो यह भारत के क्लीन एनर्जी मिशन के लिये रास्ता भटकने जैसा होगा।

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