हर तरफ पानी: कोरोना मरीज़ों की बाढ़ झलने के बाद अब मायानगरी मुंबई का सामना असली बाढ़ से हो रहा है | Photo: Weather.com

बरसात से मुंबई फिर अस्त-व्यस्त

पिछले एक पखवाड़े लगातार बरसात ने मुंबई को पानी में डुबोये रखा। अब यही स्थिति गुजरात के साथ हो सकती है क्योंकि मौसम विभाग ने सौराष्ट्र में ‘अत्यधिक तेज़ बरसात’ की चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी के बाद राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये एनडीआरएफ की टीमें लगाई गई हैं। उधर उत्तर भारत में दिल्ली और आसपास के इलाकों में हल्की बरसात की संभावना है और आने वाले दिनों में यह तेज़ होगी।

हरियाणा और राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में मॉनसून एक हफ्ते पहले ही पहुंच गया था। लम्बी अवधि के औसत (LPA) के हिसाब से पिछले बुधवार तक 22% अधिक पानी बरसा है। भरपूर मॉनसून भले ही एक अच्छी ख़बर है लेकिन देश में मॉनसून का पैटर्न बदल रहा है। इस साल दक्षिण में बरसात कम हुई है जबकि मध्य भारत में कम। महत्वपूर्ण है कि इस साल जून में प्रकाशित हुई भारत की पहली जलवायु परिवर्तन आंकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि  बारिश का यह बदलता पैटर्न ग्लोबल वॉर्मिंग का संकेत हो सकता है। मॉनसून के समय बदलने के साथ देर तक टिकने से टिड्डियों के हमले एक विकट समस्या बन सकते हैं जिससे खाद्य सुरक्षा के लिये संकट पैदा होगा। 

जलवायु परिवर्तन: हिमाचल-लद्दाख के दो ग्लेशियर प्रभावित

ताज़ा अध्ययन बताते हैं कि पश्चिमी हिमालयी इलाके में ग्लेशियरों में जलवायु परिवर्तन का अच्छा खासा प्रभाव पड़ रहा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)  के ग्लेशियर विज्ञान विभाग के शोध के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमाचल प्रदेश के शिगरी ग्लेशियर और लद्दाख के स्टोक ग्लेशियर का मास लॉस(जमी बर्फ के क्षेत्रफल में कमी) हो रहा है। किसी भी ग्लेशियर के मास लॉस  का मतलब उसकी कुल बर्फ से है। इन दो ग्लेशियरों के मास लॉस को बढ़ते तापमान और कम बर्फबारी से जोड़कर देखा जा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस सदी के पहले दशक में इन हिमनदों का मास लॉस पिछली सदी के अंत में हुए मास लॉस के मुकाबले काफी अधिक है।

ग्लोबल वॉर्मिंग: मछलियों के प्रजनन को ख़तरा

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का बढ़ता तापमान समुद्री जीवों और मछलियों को परेशान कर रहा है। ‘साइंस’ पत्रिका में छपा शोध बताता है कि गर्म होता समुद्र सदी के अंत तक मछलियों की प्रजनन क्षमता को 40% कम कर देगा क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिग से नवजात मछलियों के अलावा भ्रूण पर भी असर पड़ेगा। यह शोध इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि जीव विज्ञानियों ने जलवायु परिवर्तन प्रभाव का आंकलन अब तक वयस्क मछलियों पर ही किया था। अब नया अध्ययन बता रहा है कि मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी या फिर वह प्रजनन व्यवहार में बदलाव करेंगी।

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