Newsletter - June 9, 2023
चक्रवाती हालात के कारण केरल में हफ्ते भर की देरी से पहुंचा मॉनसून
मौसम विभाग ने गुरुवार को अंततः मानसून के केरल के तट पर पहुंचने की घोषणा की।
इस साल मानसून एक हफ्ते की देरी से आया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून की शुरुआत में देरी चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि यह पहली बार नहीं हो रहा है और उम्मीद है कि अगले 2-3 सप्ताह में बारिश इस कमी की भरपाई कर देगी।
सामान्य तौर पर 1 जून तक मॉनसून केरल पहुंच जाता है और उत्तर की ओर बढ़ते हुए वह 15 जून तक लगभग पूरे देश में फैल जाता है। लेकिन अरब सागर में चक्रवाती तूफान ‘बिपारजॉय’ के कारण मंगलवार को एक दबाव का क्षेत्र बन गया जिसकी वजह से मॉनसून की शुरुआत के लिए ज़रूरी क्लाउड कवर (बादलों का जमाव) कम रहा। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि चक्रवात का मानसून की तीव्रता पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
हीटवेव से राहत देने के अलावा भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी मॉनसून बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में 51% क्षेत्रफल में लगी फसल (जो कि देश के कुल उत्पादन का 40% है) बारिश से सिंचित होती है। भले ही देश की जीडीपी में कृषि का योगदान करीब 16% ही हो लेकिन कुल आबादी का 47% अब भी खेती में ही लगा है।
डब्ल्यूएमओ के इतिहास में पहली बार एक महिला सेक्रेटरी जनरल, भारत के महापात्र को तीसरा उपाध्यक्ष चुना गया
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के 150 साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला को सेक्रेटरी जनरल चुना गया है। अर्जेंटीना के मौसम विभाग की निदेशक प्रोफेसर सेलेस्ते साउलो को पिछले हफ्ते जेनेवा में हुई बैठक में दो-तिहाई बहुमत से डब्ल्यूएमओ का सेक्रेटरी जनरल चुना गया। प्रोफेसर साउलो वर्तमान सेक्रेटरी जनरल फिनलैंड के पिटैरी टालस की जगह लेंगी और 1 जनवरी 2024 से कार्यभार संभालेंगी।
इसी बैठक में भारत के मौसम विभाग के निदेशक मृत्युंजय महापात्रा को भी 3 में से एक उपाध्यक्ष चुना गया। महापात्र को अगले 4 साल के लिये इस पद पर चुना गया है। इस पद के मतदान में शामिल कुछ 148 देशों में से 113 देशों ने उनके पक्ष में वोट दिया।
जलवायु संकट के कारण अंटार्कटिका में सबमरीन भूस्खलन की आशंका, बड़ी सुनामी का ख़तरा
जलवायु परिवर्तन अंटार्कटिका महाद्वीप में समुद्र के भीतर बड़े भूस्खलन (सबमरीन लैंडस्लाइड) का कारण बन सकता है जिस वजह से इस क्षेत्र में विध्वंसक सुनामी आने का ख़तरा है और इसके वैश्विक दुष्परिणाम हो सकते हैं। यह बात साइंस जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक रिसर्च में कही गई है। सबमरीन लैंडस्लाइड समुद्र के भीतर बड़ी मात्रा में तलछट (रेत, गाद और मिट्टी इत्यादि) के खिसकने की घटना को कहा जाता है और इनका व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव हो सकता है।
करीब 25 साल पहले 1998 में पापुआ न्यू गिनी के पास एक सबमरीन लैंडस्लाइड होने से ज़बरदस्त सुनामी आई थी और 2200 लोगों की मौत हो गई थी। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और रिकॉर्ड तोड़ तापमान की स्थिति में ऐसी घटनायें और बढ़ सकती हैं और अंटार्कटिका क्षेत्र में सुनामी आ सकती है।
धरती के अस्तित्व के लिए ज़रूरी 8 में 7 लक्ष्मण रेखाएं पार
अर्थ कमीशन (जो कि पर्यावरण विशेषज्ञों और समाज विज्ञानियों का समूह है और जिसके 5 अतिरिक्त विशेषज्ञ कार्य समूह हैं) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व के लिए और धरती के बचे रहने के लिए ज़रूरी 8 में 7 लक्ष्मण रेखाएं पार हो गईं हैं। अर्थ कमीशन की यह रिपोर्ट नेचर साइंस जर्नल में ऐसे वक़्त में प्रकाशित हुई है जब जर्मनी के बॉन शहर में दुनिया के सभी देश महत्वपूर्ण क्लाइमेट वार्ता के लिए इकट्ठा हुए हैं।
क्लाइमेट विज्ञान की भाषा में इन आठ लक्ष्मण रेखाओं को अर्थ सिस्टन बाउंड्री या ईएसबी कहा जाता है। इन सीमाओं में सुरक्षित और सामान्य जलवायु की तापमान सीमा, सर्फेस वॉटर (नदी, तालाब इत्यादि), भू-जल, नाइट्रोजन, फास्फोरस और एरोसॉल का स्तर और सुरक्षित लेकिन असामान्य जलवायु की तापमान सीमा शामिल हैं। सुरक्षित लेकिन सामान्य जलवायु के लिए अधिकतम तापमान वृद्धि 1 डिग्री है जबकि धरती की तापमान वृद्धि 1.2 डिग्री हो चुकी है और यह लक्ष्मण रेखा मानव तोड़ चुका है। इसी तरह बाकी पैमानों पर भी सुरक्षित स्तर का उल्लंघन हो चुका है केवल सुरक्षित लेकिन असामान्य जलवायु (जिसकी सीमा 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि है) ही एक पैरामीटर है जिसका उल्लंघन नहीं हुआ है।
भौगोलिक रूप से देखा जाए तो इनमें से कई लक्ष्मण रेखाओं का उल्लंघन बड़ा व्यापक है। वैज्ञानियों ने अपनी रिसर्च में कहा है कि इन आठ अर्थ सिस्टम बाउंड्री में से दो या तीन का उल्लंघन धरती के 52% हिस्से में हुआ है और दुनिया की कुल 86% आबादी पर उसका प्रभाव है। वैज्ञानिकों द्वारा उपलब्ध कराए गए नक्शे से पता चलता है कि भारत उन देशों में है जहां क्लाइमेट से जुड़ी इन रेड लाइंस का सबसे अधिक उल्लंघन हुआ है। संवेदनशील हिमालय के निचले क्षेत्र में 5 सीमाओं को तोड़ा गया है। इस बारे में विस्तार से जानने के लिये यह रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं।
दक्षिणी यूक्रेन की सीमा पर बांध नष्ट, हज़ारों लोगों के जीवन पर संकट
मंगलवार को दक्षिण यूक्रेन की सीमा पर हमले में एक महत्वपूर्ण बांध नष्ट हो गया और इससे निकले पानी के तेज़ बहाव के कारण हज़ारों लोगों की ज़िन्दगी ख़तरे में आ गई। रूस और यूक्रेन ने एक दूसरे पर यह बांध नष्ट करने का आरोप लगाया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो सका कि काखोवका बांध और जल विद्युत संयंत्र को नष्ट करने के लिये कौन ज़िम्मेदार है। बांध का सैलाब गाद, मिट्टी और पेड़ों के साथ आगे बढ़ा और इस कारण यूक्रेन और रूस के क़ब्ज़े वाले हिस्से में मिलाकर कुल 40,000 लोगों पर संकट खड़ा हो गया है। जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस घटना के बाद लंबे समय तक इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव देखे जाएंगे।
कवक सोखता है जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित कार्बन
पिछले कम से कम 45 करोड़ वर्षों से माइकोराइज़ल फंगी यानी कवक पौधों को ज़रूरी पोषण देकर धरती पर जीवन बनाये रखने में उपयोगी रहा है। पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि ज़मीन पर उगी तकरीबन सभी वनस्पतियों के साथ सहजीवी संबंध बनाने के अलावा कवक मृदा पारिस्थितिकी (मिट्टी) में कार्बन जमा करने में भी बड़ी भूमिका अदा करते हैं।
करंट बायोलॉजी नाम के साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस इत्यादि) से उत्सर्जित कुल कार्बन का 36% धरती पर उगे पौधों में जमा होता है और यह माइकोराइज़ल कवक के कारण संभव है। एकत्रित कार्बन की यह मात्रा सालाना 13.12 गीगाटन CO2 के बराबर होती है। धरती पर 70 से 90 प्रतिशत पौधों के माइकोराइज़ल फंगी के साथ सहजीवी रिश्ते होते हैं इसलिये यह माना गया है कि इस नेटवर्क द्वारा बड़ी मात्रा में कार्बन मिट्टी में जमा होता है।
सोमवार को इस साल का बॉन क्लाइमेट चेंज सम्मलेन (एसबी58) शुरू हुआ। इस साल के अंत में दुबई में आयोजित होनेवाले कॉप28 सम्मलेन से पहले यह बैठक एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। हर साल की तरह इस साल भी उम्मीद है कि इस सम्मलेन में पिछले जलवायु परिवर्तन सम्मलेन, यानि कॉप27 में किए गए निर्णयों की कार्य समीक्षा की जाएगी।
हालांकि एसबी58 की शुरुआत अच्छी नहीं रही, क्योंकि सम्मेलन के एजेंडे को लेकर विभिन्न देश आम सहमति बनाने में विफल रहे। इस संबंध में जिन मुद्दों को लेकर विवाद रहा उनमें ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी), यानि इस बात की समीक्षा कि पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में किस देश ने कितनी प्रगति की है, तथा शमन और अनुकूलन प्रमुख हैं।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कॉप27 की अन्य महत्वपूर्ण घोषणाओं जैसे लॉस एंड डैमेज (हानि और क्षति) फंड और क्लाइमेट फाइनेंस की प्रगति पर क्या चर्चा होती है।
कॉप27 में पेरिस समझौते के अनुच्छेद 2.1सी पर हुए ‘शर्म-अल शेख डायलाग’ पर अभी कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है। इसके अनुसार क्लाइमेट फाइनेंस का प्रवाह पेरिस समझौते के तहत निर्धारित ग्लोबल वार्मिंग की सीमा के अनुरूप होना चाहिए।
साथ ही, बॉन सम्मेलन के दौरान हानि और क्षति पर दूसरी ग्लासगो वार्ता भी की जाएगी। उम्मीद है कि इस वार्ता के दौरान कॉप28 में लॉस एंड डैमेज फंड प्रस्तुत किए जाने की दिशा में सुझाव दिए जाएंगे।
प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए पहले ड्राफ्ट पर सहमति के साथ पूरी हुई संधि वार्ता
दुनिया के करीब 170 देश इस बात पर सहमत हो गए हैं कि वे नवंबर तक एक वैश्विक संधि का पहला ड्राफ्ट तैयार कर लेंगे ताकि दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण रोका जा सके। इस वार्ता की राह में शुरुआत से अड़चनें रही हैं और देशों में इस बात को लेकर विवाद हुआ है कि वोटिंग के आधार पर फैसले लिए जाएं या सहमति के आधार पर। जब से साफ ऊर्जा के लिए तेल और गैस के प्रयोग को कम करने की दिशा में कोशिश हो रही है, जीवाश्म ईंधन का कारोबार करने वाले देश और बड़ी-बड़ी कंपनियां प्लास्टिक उत्पादन को बढ़ा रही हैं क्यों इसे बनाने में जीवाश्म ईंधन का भारी प्रयोग होता है।
प्लास्टिक प्रदूषण को कैसे रोका जाए वार्ता से पहले इस पर भी दुनिया दो खेमों में बंटी रही है। जहां यूरोप और अफ्रीकी देश प्लास्टिक उत्पादन को को कम करने के पक्ष में हैं वहीं अमेरिका और सऊदी अरब जैसे देशों का ज़ोर रिसाइकिलिंग पर रहा है। लेकिन अब पेरिस में हुई वार्ता में कम से कम इस बात पर सहमति हो गई है कि प्लास्टिक को लेकर कानूनी रूप से बाध्य करने वाली एक संधि हो। दुनिया में हर साल 40 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक पैदा होता है जिसका आधा लैंडफिल तक पहुंचता है और 15 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है। करीब 1.4 करोड़ टन प्लास्टिक हर साल समुद्र में जा रहा है।
6 मौतों के बाद चीतों को शिफ्ट करेगी सरकार
कूनो नेशनल पार्क में तीन अफ्रीकी चीतों और मार्च में जन्मे चार में तीन चीता शावकों की मौत के बाद सरकार ने बचे हुए चीतों को यहां से स्थानांतरित करने के फैसले पर मुहर लगा दी है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के विपरीत, चीतों को राजस्थान नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के ही गांधी सागर अभ्यारण भेजा जाएगा।
कूनो पार्क में लगभग दो महीनों में तीन वयस्क चीतों की मौत के बाद पिछले दिनों नामीबिया से लाई गई मादा चीता ‘ज्वाला’ के तीन शावकों ने दम तोड़ दिया। एक शावक की मौत 23 मई को और दो की 25 मई को हुई। ‘ज्वाला’ के चार शावक लगभग 75 सालों बाद भारत में जन्मे पहले चीता शावक थे।
वहीं सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि बड़े बाड़े में रखे गए सात और चीतों को इस महीने जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
महामारियों को रोकना है तो चमगादड़ों को अकेला छोड़ दें: शोध
एक नए अध्ययन के अनुसार भविष्य में किसी महामारी की रोकथाम के लिए मनुष्यों को चमगादड़ों को अकेला छोड़ देना चाहिए और उनके हैबिटैट को नष्ट नहीं करना चाहिए।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है कि बैट वायरस किस तरह फैलते हैं, यह पता लगाने के लिए हमें उनसे जुड़े सभी विवरणों को जानने की आवश्यकता नहीं है।
चमगादड़ों को रैबीज, मारबर्ग फिलोवायरस, हेंड्रा और निपा पैरामाइक्सोवायरस, कोरोनावायरस जैसे मर्स आदि के स्रोत के रूप में जाना जाता है, और फ्रूट बैट्स को इबोलावायरस का स्रोत माना जाता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि लोग चमगादड़ों को मारने, भागने या पीछा करने की कोशिश करते हैं जिससे वह उनके संपर्क में आते हैं और इस बात का खतरा बढ़ जाता है कि बैट वाइरस मनुष्यों को संक्रमित कर दें।
उन्होंने कहा कि इसके बजाय, चमगादड़ों से किसी भी प्रकार का संपर्क न रखने का प्रयास करना चाहिए, जो आनेवाले समय में किसी भी महामारी को रोकने का सबसे कारगर तरीका है।
ब्राजील के शहर बेलेम में आयोजित होगा कॉप30
ब्राजील सरकार के अनुसार, नवंबर 2025 में कॉप30 जलवायु वार्ता का आयोजन ब्राजील के शहर बेलेम में किया जाएगा।
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डिसिल्वा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने पुष्टि की है कि बेलेम शहर, जिसे आमतौर पर अमेज़ॅन नदी और वर्षावन के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है, कॉप30 की मेजबानी करेगा।
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन निकाय (यूएनएफसीसीसी) के एक प्रवक्ता ने बताया कि लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र ने उन्हें सूचित कर बेलेम के दावे का समर्थन किया है। अब इस प्रस्ताव पर केवल कॉप28 वार्ता में मुहर लगनी बाकी है। महत्वपूर्ण है कि पूर्व राष्ट्रपति जे बोल्सनारो की क्लाइमेट विरोधी नीतियों के कारण ब्राज़ील ने 2019 में क्लाइमेट काफ्रेंस की मेजबानी से इनकार कर दिया था।
सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले देशों की सूची में पिछले साल से बेहतर रैंकिंग के बावजूद, भारत ने 2022 में वायु प्रदूषण सूचकांक पर खराब प्रदर्शन किया। वैश्विक वायु गुणवत्ता पर आई क्यू एयर की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। 2022 में पांच सबसे प्रदूषित राष्ट्र चाड, इराक, पाकिस्तान, बहरीन और बांग्लादेश थे। भारत पिछले वर्ष की रैंकिंग से तीन स्थान गिरकर 8वें स्थान पर आ गया, जिसमें बुर्किना फासो और कुवैत क्रमशः छठवें और सातवें स्थान पर रहे। शीर्ष 10 में अन्य दो देश मिस्र और ताजिकिस्तान हैं।
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट विश्व स्तर पर वायु गुणवत्ता की स्थिति की जांच करती है। इसमें 131 विभिन्न देशों, क्षेत्रों और इलाकों के 7,323 शहरों का पीएम2.5 वायु गुणवत्ता डेटा शामिल है।
अरावली में हो रहा अवैध खनन और अतिक्रमण दिल्ली-राजस्थान में धूल भरी आंधियों को दे रहा है बढ़ावा
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किए एक अध्ययन के मुताबिक, अवैध खनन और अतिक्रमण के कारण अरावली की पहाड़ियां क्षीण हो रही हैं, और इससे राजस्थान में धूल भरे तूफानों में वृद्धि हुई है। इन तूफानों का असर दिल्ली-एनसीआर तक पड़ रहा है।
रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले दो दशकों में हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में मौजूद ऊपरी अरावली रेंज की कम से कम 31 पहाड़ियां लुप्त हो चुकी हैं। इन पहाड़ियों के विनाश से थार रेगिस्तान में चलने वाले रेतीले तूफानों के लिए दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ‘इन पहाड़ियों का लुप्त होना बढ़ते रेतीले तूफानों के कारणों में से एक है’।
उनके मुताबिक भरतपुर, ढोलपुर, जयपुर और चित्तौड़गढ़ जैसे क्षेत्रों में पहाड़ियों के लुप्त होने से सामान्य से ज्यादा सैंडस्टॉर्म आ रहे हैं।
देश में बड़े पैमाने पर धूल से होने वाले वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हाल ही में भारत के स्टोन क्रेशर सेक्टर के लिए दिशानिर्देश प्रकाशित किए थे। यह सेक्टर बड़े पैमाने पर व्यावसायिक धूल उत्सर्जन और गंभीर वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।
कश्मीर में कैंसर के मामलों में वृद्धि के पीछे वायु प्रदूषण
डॉक्टर्स एसोसिएशन कश्मीर (डीएके) ने कहा है कि घाटी में बढ़ते कैंसर के मामलों का कारण पर्यावरण प्रदूषण है, जो अब भारी मात्रा में बढ़ गया है।
वाहनों, निर्माण, ईंट भट्ठों की बढ़ती संख्या के कारण पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर में हवा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही है। सीमेंट और अन्य कारखाने जो प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं और हवा को काफी प्रदूषित करते हैं, वह घाटी में कैंसर के बढ़ते मामलों में योगदान दे रहे हैं। शोध से पता चला है कि प्रदूषित हवा से फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। कश्मीर में ज्यादातर कैंसर-पीड़ित पुरुषों को फेफडों का कैंसर है।
वहीं प्रतिबंध के बावजूद कश्मीर में पॉलीथिन और प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग जारी है। डॉक्टरों ने कहा कि प्लास्टिक एक रसायन बिस्फेनॉल ए (बीपीए) छोड़ता है जो स्तन कैंसर का खतरा बढ़ाता है। घाटी में कैंसर पीड़ित महिलाओं में स्तन कैंसर की प्रमुखता है।
वायु प्रदूषण मॉनिटर में मिल सकता है जैव विविधता के आंकड़ों का खज़ाना
एक नए शोध में पाया गया है कि वायु-गुणवत्ता-निगरानी प्रणाली संभावित रूप से पर्यावरणीय डीएनए, या ईडीएनए को कैप्चर और स्टोर करती हैं। पौधे, जानवर और अन्य जीव डीएनए को मिट्टी, पानी और हवा में छोड़ते हैं जिन्हें एकत्र करके विश्लेषण किया जा सकता है। यह डीएनए कई रूपों में पाया जाता है, जिसमें त्वचा कोशिकाएं, बाल, मल और शल्क शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने लंदन के कुछ क्षेत्रों में एकत्र किए गए वायु-गुणवत्ता-निगरानी प्रणाली नमूनों को देखा, तो उन्हें दो स्थानों पर फैले 180 पौधों, कवक, कीड़े, स्तनधारी, पक्षी, मछली, उभयचर और अन्य जीवों के प्रमाण मिले। यह परिणाम इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले जीवों के प्रकार पर उपलब्ध डेटा के अनुरूप हैं। यह निष्कर्ष धरती पर जैव-विविधता की मॉनिटरिंग के लिए हमारे दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने कहा है कि इस साल पहली बार, वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा में निवेश तेल उत्पादन में निवेश से अधिक हो सकता है।
आईईए ने अनुमान लगाया है कि 2023 में सौर ऊर्जा में $380 बिलियन (रु 31 हजार करोड़) का निवेश होगा, जबकि तेल की खोज और निष्कर्षण में $370 बिलियन (रु 30 हजार करोड़) का निवेश हो सकता है।
मोटे तौर पर, स्वच्छ ऊर्जा में वार्षिक निवेश 2023 में $1.7 ट्रिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2021 की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत अधिक होगा।
हरित ऊर्जा में निवेश का सबसे बड़ा हिस्सा फोटोवोल्टिक सौर पैनल में किया जाएगा।
आईईए ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा का विकास जितना दिख रहा है, उससे अधिक तेजी से हो रहा है, लेकिन जीवाश्म ईंधन में निवेश इतनी तेजी से कम नहीं हो रहा है कि 2050 तक उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्यों तक पहुंचा जा सके।
वहीं एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत में अगले दशक में हरित ऊर्जा में निवेश 800 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50% ऊर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य 2026 में ही हो सकता है पूरा
भारत 2030 तक अपनी स्थापित ऊर्जा क्षमता का 50 प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा देश की अनुमानित ऊर्जा जरूरतों का अनुमान बताता है कि यह लक्ष्य 2026-27 तक ही हासिल किया जा सकता है।
सीईए द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी) एक पंचवर्षीय योजना है जो भारत की वर्तमान ऊर्जा की जरूरतों, अनुमानित विकास, बिजली के स्रोतों और चुनौतियों का आकलन करती है। इसमें कहा गया है कि ‘…गैर-जीवाश्म आधारित क्षमता का हिस्सा 2026-27 के अंत तक बढ़कर 57.4% हो जाने की संभावना है और 2031-32 के अंत तक लगभग 68.4% होने की संभावना है। अप्रैल 2023 में यह हिस्सा 42.5% था’।
हालांकि, स्थापित क्षमता का मतलब यह नहीं है कि पूरी क्षमता पर उत्पादन संभव है, क्योंकि ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों की क्षमता अलग-अलग होती है। यदि इस बात को संज्ञान में लेकर गणना की जाए तो अक्षय ऊर्जा से उपलब्ध बिजली 2026-27 तक कुल उत्पादित बिजली का लगभग 35.04 फीसदी और 2031-32 तक 43.96 फीसदी होगी।
इस वर्ष होगी रिकॉर्ड अक्षय ऊर्जा स्थापना
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जीवाश्म ईंधन की बढ़ी कीमतों की वजह से सौर और पवन ऊर्जा प्रतिष्ठानों का रोलआउट बढ़ा है और इस साल रिकॉर्ड अक्षय ऊर्जा स्थापना होगी, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक सरकारें और उपभोक्ता सौर ऊर्जा में आए इस उछाल का लाभ उठाना चाहते हैं और 2023 में कुल सौर और पवन क्षमता 440 गीगावाट तक पहुंचने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के मुताबिक जहां यूरोप अक्षय ऊर्जा का विकास करके ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है, वहीं नए नीतिगत उपायों से अगले दो वर्षों में अमेरिका और भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि में मदद मिलेगी। इस बीच, चीन अपनी अग्रणी स्थिति को मजबूत कर रहा है और 2023-2024 में वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापना का लगभग 55% चीन द्वारा जोड़ा जाएगा।
इस साल की पहली तिमाही में रूफटॉप सौर क्षमता 6.35% बढ़ी: मेरकॉम
मेरकॉम इंडिया के मुताबिक, इस साल जनवरी-मार्च की तिमाही में भारत की रूफटॉप सौर क्षमता 6.35 प्रतिशत बढ़कर 485 मेगावाट हो गई।
पिछले साल की इसी अवधि में देश में रूफटॉप सौर की स्थापित क्षमता 456 मेगावाट थी।
लेकिन पिछली तिमाही, यानि 2022 की चौथी तिमाही के आधार पर देखा जाए तो रूफटॉप सौर क्षमता में केवल 0.4 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है।
सार्वजनिक परिवहन नीति में इलेक्ट्रिक वाहनों पर रहेगा सरकार का ध्यान
सरकार देश के ज्यादातर शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करने की तैयारी कर रही है। सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे के विस्तार की दिशा में इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग को सरकार से अतिरिक्त समर्थन मिलने की संभावना है।
प्रधानमंत्री के सलाहकार तरुण कपूर के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार देश में सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने की नीतियों पर काम कर रही है, और इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हमें लक्ष्य रखना चाहिए कि अगले 5-7 वर्षों में देश में 100 प्रतिशत दोपहिया वाहन इलेक्ट्रिक हों। उन्होंने ऑटोमोबाइल उद्योग से इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन की वैल्यू चेन के साथ-साथ बैटरी निर्माण में भी अधिक निवेश करने का आग्रह किया।
हालांकि सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण में अधिकांश राज्य परिवहन उपक्रमों (एसटीयू) की खराब वित्तीय स्थिति एक चुनौती है। खराब चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और महंगे इलेक्ट्रिक वाहन इस चुनौती को और बड़ा बनाते हैं।
मई में ईवी बिक्री 1.5 लाख पार, लेकिन गिर सकती है दोपहिया की मांग
मई 2023 में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की अब तक की सबसे अच्छी मासिक बिक्री देखी गई। इसके बहुत सारे कारण थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था फेम-2 सब्सिडी में संशोधन के कारण इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की कीमतों में संभावित वृद्धि, जिसके चलते बहुत सारे लोगों ने यह संशोधन लागू होने के पहले दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहन खरीदे।
अप्रैल में गिरावट के बाद मई में ईवी की बिक्री में तेजी से रिकवरी हुई। पिछले महीने देश में कुल 157,338 इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए। इनमें 104,829 दोपहिया, 44,609 तिपहिया, 7,443 चार-पहिया, 274 बसें, 160 एलसीवी और 23 अन्य सेगमेंट्स की इकाईयां शामिल हैं।
हालांकि सभी सेगमेंट्स में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग यथावत बनी रहने की उम्मीद है, लेकिन दोपहिया सेगमेंट में थोड़ी मंदी आ सकती है, खासकर उन मॉडलों की मांग में कमी आ सकती है जिनकी कीमतें फेम-2 सब्सिडी में संशोधन के बाद बढ़ी हैं।
ईवी चार्जर से हो सकता है हैकिंग का खतरा
एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में ईवी की बिक्री बढ़ने के साथ ही साइबर हमले का खतरा भी बढ़ गया है। साइबर सिक्योरिटी कंपनी चेक प्वाइंट रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘साइबर अटैकर्स ईवी चार्जिंग नेटवर्क, वाहनों और/या उससे कनेक्टेड पावर ग्रिड को निशाना बना सकते हैं’।
भारत में इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सर्ट-इन) को ईवी चार्जिंग स्टेशनों से संबंधित उत्पादों और अनुप्रयोगों में कमजोरियों की जानकारी भी मिली है।
इन कमजोरियों का फायदा उठाकर साइबर अपराधी ईवी चार्जर को दूर से बंद कर सकते हैं, या बिजली की चोरी कर सकते हैं। वह वोल्टेज में उतार-चढ़ाव और बिजली कटौती का कारण भी बन सकते हैं।
2022 में एक 19 वर्षीय तकनीकी सुरक्षा विशेषज्ञ ने वाहन डेटा और नियंत्रण तक पहुंचने के लिए एक सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके एक दर्जन देशों में 25 टेस्ला वाहनों को सफलतापूर्वक हैक कर लिया था। 2020 में बेल्जियम के एक शोधकर्ता ने टेस्ला मॉडल एक्स के की-फॉब्स के फ़र्मवेयर को ओवरराइट और हाईजैक करने का एक तरीका खोज निकाला था, जिससे इस वाहन की चोरी सुगम हो सकती है।
टेस्ला को विशेष इंसेंटिव नहीं देगी भारत सरकार
केंद्र सरकार फिलहाल इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला को किसी भी तरह के विशेष इंसेंटिव देने पर विचार नहीं कर रही है, हालांकि राज्य अपनी और से रियायतें देने के लिए स्वतंत्र हैं।
एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया कि टेस्ला भारत में गहरी दिलचस्पी दिखा रही है और वह यहां एक पूरी सप्लाई चेन बनाने की बात कर रहे हैं।
कंपनी के प्रतिनिधि पिछले महीने भारत आए थे और उन्होंने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय सहित सरकार के विभिन्न विभागों के साथ बैठक की।
टेस्ला ने 2021 में भारत सरकार से इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात पर शुल्क में कमी की मांग की थी।
बड़े उत्सर्जक देशों को भारत को देना चाहिए अरबों डॉलर का मुआवजा: शोध
कार्बन डाइऑक्साइड के जरुरत से ज्यादा उत्सर्जन का 90 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका और जर्मनी जैसे ग्लोबल नार्थ के देशों से आता है, और उन्हें कम उत्सर्जन वाले भारत जैसे देशों को मुआवजे के रूप में कुल 170 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, ताकि 2050 तक जलवायु परिवर्तन के जो लक्ष्य हैं वह पूरे हो सकें।
वैज्ञानिक पत्रिका नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत को 2050 तक प्रति व्यक्ति 1,446 अमरीकी डालर और 2018 में इसके सकल घरेलू उत्पाद के 66 प्रतिशत के बराबर वार्षिक मुआवजा दिया जाना चाहिए।
यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, यूके के शोधकर्ताओं ने 168 देशों का विश्लेषण किया और वैश्विक कार्बन बजट के आधार पर अतिरिक्त उत्सर्जन करने वाले देशों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी तय की।
यदि कुछ देश अपने कार्बन बजट से अधिक उत्सर्जन करते हैं, तो इसका मतलब है कि वह ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले नुकसान के लिए न केवल अधिक जिम्मेदार हैं, बल्कि वह एक तरह से अन्य देशों को उनके उचित हिस्से का उपयोग करने से रोकते हैं, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लक्ष्य के अनुरूप वैश्विक उत्सर्जन की सीमा निर्धारित है।
अमेरिका, जर्मनी, रूस, ब्रिटेन और जापान शीर्ष पांच अधिक उत्सर्जक देश हैं।
वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 8 लाख सालों में सबसे अधिक
ताजा आंकड़ों से पता चला है कि मई 2023 में वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर ने पिछले आठ लाख वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ) की मौना लोआ एटमॉस्फेरिक बेसलाइन ऑब्जर्वेटरी ने बताया कि मई 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 424 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) पर पहुंच गया था। गौरतलब है कि ऐसा पिछले लाखों वर्षों में नहीं देखा गया है।
वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पूरी मानवता के लिए खतरा है। यदि पिछले आंकड़ों को देखें तो यह स्तर औद्योगिक काल के शुरूआत की तुलना में अब 50 फीसदी तक बढ़ चुका है।
रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर उत्तरी गोलार्ध में अपने चरम पर पहुंच गया था।
इराक से तेल निकालने की होड़ से पैदा हुआ जलसंकट
यूक्रेन में रूस के हमले के बाद से तेल संकट बढ़ा है और इस स्थिति का भरपूर फायदा उठाने को कोशिश में पश्चिमी देशों की तेल कंपनियां कई जगह जल-संकट और प्रदूषण बढ़ा रही है। इराक इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है। इसके प्रचुर तेल भंडार वाले दक्षिणी हिस्से में पानी की भारी कमी है लेकिन कंपनियां तेल निकालने के लिये जिस तरह पानी का भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं उससे यहां के दलदली हिस्से और तालाब सूखते जा रहे हैं जिन पर समुदायों का जीवन टिका है। तेल कंपनियों द्वारा पानी के इस्तेमाल के कारण मछुआरों को मछलियां मिलना दुश्वार हो गया है। महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र ने अब इराक को जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में पांचवे नंबर पर रखा है।
यहां से तेल निकालने वाली अग्रणी कंपनियों में इटली की एनी, यूके की बीपी और अमेरिका की एक्सॉनमोबिल शामिल है। ताप बिजलीघरों की तरह ही तेल और गैस कंपनियों को अपने ऑपरेशन के लिये बहुत सारे पानी की ज़रूरत होती है। ओपेक देशों में सऊदी अरब के बाद इराक दूसरे नंबर का तेल उत्पादक देश है और यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद इसका उत्पादन बहुत तेज़ी से बढ़ा है। साल 2022 में यूरोप की 40% तेल सप्लाई इराक से ही हुई।