करो या मरो: ग्लोबल वॉर्मिंग का दानव दरवाज़े पर खड़ा है लेकिन विश्व नेताओं द्वारा कड़े फैसले न लिया जाना हैरान करने वाला है. न्यूयॉर्क सम्मेलन के दौरान कई विरोध प्रदर्शन होना तय हैं – Photo – Twitter

जलवायु परिवर्तन पर करो या मरो का वक़्त

कुछ दिन पहले समाचार एजेंसी AFP ने IPCC के लीक हुये ड्राफ्ट के आधार पर ख़बर छापी जिससे हड़कंप मच गया। इस रिपोर्ट में धरती के क्रायोस्फियर (जहां समंदर का जम जाता है) और महासागरों को लेकर जो जानकारी थी। ख़बर है कि IPCC की इस 900 पन्नों की रिपोर्ट में (जो अब तक छपी नहीं है) क्लाइमेट चेंज के कारण करोड़ों लोगों के विस्थापन की चेतावनी है।

ऐसे में सारी नज़रें  अगले हफ्ते की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की ओर से बुलाये गये न्यूयॉर्क सम्मेलन पर टिकी हैं। क्या विश्व के तमाम देश और नेता एंटोनियो गुट्रिस की अपील “पुख्ता कदम, सिर्फ भाषण नहीं” पर अमल करेंगे। सवाल है कि क्या लीक हुई IPCC की रिपोर्ट की वजह से अमीर देशों का ज़मीर जागेगा।  वैसे विश्व मौसम संगठन की क्लाइमेट पर रिपोर्ट भी जल्द प्रकाशित होने वाली है और उसमें भी क्लाइमेट चेंज के भयावह प्रभावों को दर्शाया गया है।

यह साफ है कि धरती की तापमान वृद्धि को अब 1.5 डिग्री की सीमा पर रोकना नामुमकिन है और 2040 तक तापमान इस सीमा को पार कर जायेगा। पेरिस सम्मेलन में किये गये वादे अगर तमाम देश पूरा कर भी देते हैं तो सदी के अंत तक तापमान में 3-4 डिग्री की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके बावजूद अमेरिका, कनाडा, रूस, चीन, सऊदी अरब, जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत तमाम देश कार्बन इमीशन कम करने की दिशा में कोई बड़ा कदम उठाते नहीं दिख रहे। दूसरी ओर ब्राज़ील जैसे देश हैं जो पेरिस समझौते को घृणा की नज़र से देखते हैं।

विकासशील देशों में भारत ने पहले ही कह दिया है कि वह फिलहाल जलवायु परिवर्तन पर अपने लक्ष्य को पेरिस सम्मेलन में किये वादे से और आगे नहीं ले जा सकता। दूसरी ओर चीन ने भले ही अपने देश के भीतर कार्बन इमीशन कम करने की दिशा में कड़े कदम उठाये हों और साफ ऊर्जा में निवेश किया हो लेकिन वह देश के बाहर तेल, कोयले और गैस से चलने वाले संयंत्रों में निवेश कर रहा है। ऐसे में न्यूयॉर्क सम्मेलन में सभी देशों के रुख को आखिरी उम्मीद के तौर पर देखा जायेगा।

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