भारत अभी अपनी ज़रूरत का 20% कोयला आयात करता है लेकिन पावर सेक्रेटरी एस सी गर्ग का कहना है कि भारत को जल्द ही कोयला निर्यातक बनना चाहिये। गर्ग ने कोयला खदानों के कामकाज की कड़ी आलोचना करते हुये कहा कि अंतरराष्ट्रीय माइनिंग (खनन)कंपनियों को खनन के लिये भारत में आना चाहिये और भारत की वर्तमान खनन क्षमता (जो पावर सेक्टर के लिये अभी 1 करोड़ टन सालाना से कम है) को बढ़ाकर 29 करोड़ टन तक ले जाना चाहिये। पावर सेक्रेटरी ने कहा कि कोयला सप्लाई में कमी के कारण करीब 5 लाख करोड़ रुपये का निवेश ख़तरे में है।
जर्मन कोल कंपनी का वादा, 2040 तक “ज़ीरो कार्बन” का लक्ष्य
जर्मनी की सबसे बड़ी कोयला खनन और पावर कंपनी RWE ने घोषणा की है कि उसका लक्ष्य साल 2040 तक “ज़ीरो कार्बन” कंपनी बनने का है। इसके लिये कंपनी का इरादा कोल-पावर उत्पादन पूरी तरह बन्द करने का है। कंपनी बॉन के पास हम्बख फॉरेस्ट में कोयला खनन के लिये चर्चा में रही जिसका व्यापक विरोध हो रहा है। अब ख़बर है कि कंपनी सौर और पवन ऊर्जा में 1600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी। अनुमान है कि इस कदम से RWE को 2030 तक 70% CO2 इमीशन कम करने का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।
गैस: मध्य एशिया, अफ्रीका में बढ़ा निवेश, भारत ने की 50 लाख टन की डील
तेल और कोयले के मुकाबले साफ ऊर्जा की बढ़ती मांग के चलते मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में 3,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है। इस क्षेत्र में ईंधन की मांग में 15% की बढ़ोतरी हुई है। अरब पेट्रोलियम इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन का अनुमान है कि मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में अगले 5 साल में 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश होगा। भारत की कंपनी पेट्रोनेट ने अमेरिका की गैस कंपनी टेलुरियन से सालाना 50 लाख टन नेचुरल गैस की डील की है। सरकार का कहना है कि भारत के ट्रांसपोर्ट सेक्टर की मांग को ध्यान में रखते हुये यह करार किया गया है। अनुमान है कि साल 2030 भारत में गैस की खपत 2.5 गुना बढ़ेगी।