मॉनसून और तूफान: मॉनसून दक्षिण पश्चिमी राज्यों में प्रवेश कर गया है और राजधानी में पिछले हफ्ते तेज़ हवाओं ने काफी तबाही की | फोटो - IndiaPost

केरल में मॉनसून 3 दिन पहले पहुंचा, दिल्ली में अंधड़

रविवार (30 मई) को मौसम विभाग ने घोषणा की कि केरल में मॉनसून पहुंच चुका है। मॉनसून की सामान्य तिथि 1 जून है पर मौसम विभाग ने कहा कि इस बार 3 दिन पहले ही केरल में मॉनसून की बारिश होने लगी है। मौसम विभाग के मुताबिक शुरुआत के कुछ दिनों में मॉनसून के आगे बढ़ने की रफ्तार कम हो सकती है। हालांकि  कुछ जानकारों का कहना है कि मौसम विभाग ने यह घोषणा करने में जल्दबाज़ी की है क्योंकि रविवार को मॉनसून की आमद की ज़रूरी शर्तें पूरी नहीं हुईं।  मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि इस साल जून-सितंबर मॉनसून 103% (दीर्घावधि अनुमान +/- 4% की त्रुटि के साथ) रहेगा। 

उधर दिल्ली में रविवार को तेज़ हवाओं के साथ बारिश होने से तापमान गिरा लेकिन शहर में कई जगह यातायात बाधित रहा। शहर में करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवायें चलीं और कई जगह खम्भे और पेड़ गिर गये। 

असम में बाढ़ और भूस्खलन, कम से कम 36 लोग मरे 

असम में बाढ़ से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई और 4 लाख से अधिक लोगों का जीवन प्रभावित हुआ। राज्य के 6 ज़िलों  – कछार, दिमा हासाओ, गोलापाड़ा, कामरूप, मोरीगांव और नगांव –  में काफी बर्बादी हुई। कछार में सबसे अधिक करीब 22 हज़ार लोगों को कैंप में पहुंचाया गया। वैसे ब्रह्मपुत्र नदी का पानी राज्य के कुछ 1,800 गांव में घुस गया है।  इस बाढ़ में डेढ़ लाख से अधिक मवेशी भी डूब या बह गये। इससे उन लोगों की जीविका पर असर पड़ेगा जो पशुधन पर आधारित है।  

बाढ़ और तूफान से पिछले साल 49 लाख हुये बेघर 

भारत में 2021 में बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं ने 49 लाख से अधिक लोगों को बेघर किया। जेनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) के आंकड़ों के मुताबिक 25 लाख लोग तूफान और 24 लाख लोग बाढ़ से विस्थापित हुये। भारत उन देशों में है जहां इन आपदाओं का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। 

एल्प्स की बर्फीली चोटियों की जगह अब दिख रही हरियाली 

यूरोप में एल्प्स की बर्फीली चोटियों की जगह अब हरियाली बढ़ती जा रही है। इस प्रक्रिया को ‘ग्रीनिंग’ कहते हैं। जानकारों के मुताबिक यह ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव है और पहले जो चीज़ आर्कटिक में दिखती थी वह अब ऊंचे पहाड़ों पर दिख रही है। पिछले 38 साल के सैटेलाइट डाटा का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से इस बदलाव में तेज़ी देखी है। इस अध्ययन को करने वाले रिसर्चर कहते हैं कि उन्होंने 1,700 मीटर से अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों का अध्ययन किया ताकि किसी भी कृषि क्षेत्र को इससे बाहर रखा जाये। साथ ही वनों और ग्लेशियरों को भी इस अध्ययन से बाहर रखा फिर भी यह पाया कि एल्प्स में 10 प्रतिशत जगह ऐसी हैं जहां गर्मियों में अब कोई बर्फ नहीं होती। 

चार गुना तेज़ी से हो रहा कई प्रजातियों का विकास  

धरती में जहां एक ओर जन्तुओं और वनस्पतियों की कई प्रजातियां तेज़ी से विलुप्त हो रही है वहीं कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जिनका विकास अनुमान से चार गुना अधिक रफ्तार से हो रहा है। प्रजातियों के आनुवंशिक विभिन्नताओं के विश्लेषण में यह बात सामने आई है। शोधकर्ता कहते हैं कि यह बदलाव डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से मेल नहीं खाता है। वैज्ञानिकों की पत्रिका साइंस में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि कुल 19 प्रजातियों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया जिनमें विकास के लिये ज़रूरी घटक अनुमानों की तुलना में कहीं अधिक प्रचुर मात्रा में पाये गये। 

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