सरकार ने सात साल के विचार-विमर्श के बाद ईंट भट्टों के लिए नए मानदंड जारी किए हैं, जिसके अंतर्गत अब ज़िग-ज़ैग तकनीक या वर्टिकल शाफ्ट या ईंट बनाने की प्रक्रिया में ईंधन के रूप में पाइप्ड नैचुरल गैस (पीएनजी) का उपयोग अनिवार्य है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार कई गैर-प्राप्ति शहरों में ईंट भट्टे वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। नई अधिसूचना में पीएम उत्सर्जन का मानक 250 मिलीग्राम प्रति सामान्य घन मीटर (mg/nM3) निर्धारित किया गया है।
स्वीकृत ईंधनों में पीएनजी, कोयला, जलाऊ लकड़ी और/या कृषि अवशेष शामिल हैं। पेट कोक, टायर, प्लास्टिक, खतरनाक कचरे के उपयोग की अनुमति नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मानदंडों के अनुसार पोर्ट होल और प्लेटफॉर्म के लिए एक स्थायी सुविधा होना अनिवार्य है।
ईट भट्टों को धूल-मिट्टी के आशुलोपी उत्सर्जन नियंत्रण (फ्यूजिटिव डस्ट इमीशन) के लिये राज्य के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा और मालिकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कच्चे माल या ईंटों के परिवहन के लिए उपयोग की जाने वाली सड़कें पक्की हों।
गैर-अनुपालन पर दिसंबर 2021 से 392 इकाइयां बंद कर चुका है वायु गुणवत्ता आयोग
भारत के वायु गुणवत्ता पैनल वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने एनसीआर और आस-पास के क्षेत्रों में दिसंबर 2021 से 4,800 साइटों का निरीक्षण किया है। आउटलुक ने बताया कि उड़ाका दलों (फ्लाइंग स्कॉवॉड) ने 407 साइटों को बंद करने के नोटिस जारी किए हैं, जिनमें से 392 साइटों को बंद करने की पुष्टि की गई है। कुल बंद साइटों में से 264 उद्योग, 99 निर्माण और विध्वंस स्थल और 44 डीजी सेट हैं। जिन 407 साइटों के लिए क्लोजर नोटिस जारी किए गए हैं उनमें 94 दिल्ली में, 92 हरियाणा के एनसीआर में, 173 साइटें यूपी में और 48 साइटें एनसीआर क्षेत्र राजस्थान में हैं।
वायु प्रदूषण, गर्मी से कम होती है संज्ञानात्मक क्षमता; ग्रामीण भारत, चीन में बुरा प्रभाव: अध्ययन
एक नए अध्ययन के अनुसार, प्रदूषित हवा और अत्यधिक गर्मी का प्रभाव बचपन के दौरान केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में होने वाली प्राकृतिक विकास प्रक्रियाओं पर होता है। यह प्रभाव बाद के जीवन में संज्ञानात्मक क्षमता पर भी दिखाई देता है। ऐसा आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के एक शोध पत्र में कहा गया है। ओईसीडी एक अंतर सरकारी एजेंसी है जो मूल रूप से अमेरिकी और कनाडाई सहायता की व्यवस्था के लिए बनाई गई थी।
अध्ययन में कहा गया है कि उच्च तापमान का प्रभाव चीन और भारत के गांवों में अधिक है, खासकर उन गांवों में जहां गर्मी-प्रतिरोधक फसलें नहीं होती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन और भारत में पर्यावरणीय जोखिमों के कारण संज्ञानात्मक क्षमता को नुकसान अधिक होता है, जो आंशिक रूप से आय प्रभाव के माध्यम से होता है। यह गरीब किसान परिवारों को ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ करता है।
अध्ययन: चीन में CO2 उत्सर्जन के पहले ही चरम पर पहुंचने से वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में आ सकती है पांच लाख से अधिक की कमी
साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने अनुमान लगाया है कि चीन में कार्बन उत्सर्जन 2030 से पहले ही चरम पर पहुंचने की संभावना है। और 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के अनुरूप 2030 से पहले शिखर पर पहुंचने से शेयर्ड सोशियोइकोनॉमिक पाथवे 1 के अंतर्गत, क्रमशः 2030 और 2050 में PM2.5 के कारण होने वाली ~ 118,000 और ~ 614,000 मौतों से बचा जा सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों के परिणामस्वरूप इसी तरह के लाभ अन्य देशों में भी हो सकते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि 2 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के तहत, 2050 में होने वाले स्वास्थ्य लाभ कार्बन शमन की लागत से कहीं अधिक हो सकते हैं, जिससे $393- $ 3,017 बिलियन (2017 के विनिमय दरों पर) का शुद्ध लाभ होगा।
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