जलवायु परिवर्तन प्रभावों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और भारत सर्वाधिक प्रभावित देशों में है।
धरती के बढ़ते तापमान और मानव जनित जलवायु परिवर्तन का असर इंसान के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में यह बात कही गई है। आईपीसीसी के वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट में क्लाइमेट के “व्यापक विपरीत प्रभावों और इस कारण संभावित विनाशलीला” की चेतावनी दी है। गैरबराबरी और “उपनिवेशवाद” के प्रभाव को रेखांकित करती यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे इस वजह से विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन प्रभावों से लड़ने की क्षमता बाधित हुई।
आईपीसीसी इस समय अपनी छठी आकलन रिपोर्ट तैयार कर रही है जिसके लिये पहले तीन महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स तैयार की जाती हैं। इस सिलसिले में पहली रिपोर्ट पिछली साल रिलीज़ की गई जो जलवायु परिवर्तन से जुड़ी भौतिक विज्ञान पर थी। दूसरी रिपोर्ट जो कि – जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, अनुकूलन और ख़तरों पर है – अब रिलीज़ हुई है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर तीसरी रिपोर्ट अप्रैल में आयेगी।
ख़तरे की लक्ष्मण रेखा पार
दुनिया के 195 देशों ने रविवार को इस रिपोर्ट का अनुमोदन किया जो कहती है कि “एक्सट्रीम वेदर और क्लाइमेट के कारण अपरिवर्तनीय प्रभाव” हो रहे हैं क्योंकि प्रकृति और मानव दोनों अब उस सीमा पर हैं जहां वह तालमेल नहीं बिठा सकते। रिपोर्ट हालांकि इस बात को स्वीकार करती है कि कुछ उपायों के कारण ख़तरे घटे भी हैं।
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण कुछ क्षेत्र – जहां बहुत घनी आबादी है – इतने असुरक्षित हो जायेंगे कि वहां रहना संभव नहीं होगा। सदी के अन्त तक इन ख़तरों के कारण कई द्वीप डूब जायेंगे। अगर धरती का तापमान इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो 2040 तक जलवायु परिवर्तन प्रकृति और इंसान के लिये कई ख़तरे खड़े कर देगा। वैज्ञानिकों ने ऐसे 127 ख़तरों की पहचान की है जिनके लघु और दीर्घकालिक प्रभाव अभी दिख रहे प्रभावों से कई गुना अधिक होंगे।
बड़े संकट में भारत
आईपीसीसी का अनुमान है कि दुनिया के 330 से 360 करोड़ लोग क्लाइमेट चेंज के अत्यधिक प्रभाव क्षेत्र में हैं। ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों, तटीय इलाकों और शहरों पर जलवायु परिवर्तन प्रभाव का सबसे अधिक खतरा है। इस रिपोर्ट की भारत के लिये काफी अहमियत है क्योंकि यहां हिमालयी क्षेत्र में करीब 10,000 छोटे बड़े ग्लेशियर हैं, कई एग्रो-क्लाइमेटिक ज़ोन हैं और 7500 किलोमीटर लम्बी समुद्र तट रेखा है जिस पर 20 करोड़ से अधिक लोग रोज़गार के लिये प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निर्भर हैं।
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