विरोधाभास: लॉकडाउन की वजह से भारत के तमाम प्रदूषित शहरों के PM लेवल में भारी कमी आई है। Photo: CarbonCopy/Null School

कोरोना लॉकडाउन: 115 शहरों में हवा 80% तक साफ

कोरोना लॉकडाउन के दौरान देश के 115 में से 80% शहरों की हवा ‘अच्छे’ और ‘संतोषजनक’ स्तर पर रही है। जबकि लॉकडाउन की घोषणा सिर्फ 44% शहरों की हवा इस स्तर पर थी। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड यानी CPCB ने 16 मार्च से 15 अप्रैल तक के आंकड़ों के आधार पर यह बात कही है। लॉकडाउन के बाद पार्टिकुलेट मैटर कम हुआ और हवा में SO2 और NO2 का स्तर तेज़ी से घटा है। यह वाहनों के थमने, इंडस्ट्री और व्यवसायिक गतिविधियों के बन्द होने का असर है। इस दौरान किसी भी शहर में ‘बहुत ख़राब’ एयर क्वालिटी दर्ज नहीं हुई। फेफड़ों और दिल के लिये घातक ऐरोसॉल की मात्रा अप्रैल की शुरुआत में ही 20 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गई। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की सैटेलाइट तस्वीरों से यह जानकारी मिली है।

लॉकडाउन में भी दिल्ली और मुंबई दुनिया से सबसे प्रदूषित शहरों में

दिल्ली और मुंबई लॉकडाउन के दौरान दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे। यह बात स्विटज़रलैंड स्थित एयर क्वॉलिटी रिसर्च बॉडी IQAir ने कही है। सबसे प्रदूषित शहर चीन का वुहान रहा जहां से कोरोना वाइरस फैला है। इस रिसर्च में तीन हफ्ते के लॉकडाउन के दौरान  रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशनों से PM 2.5 का स्तर नापा गया।  अगर मार्च 23 और अप्रैल 13 के बीच आंकड़ों की तुलना करें तो मुंबई का PM 2.5 स्तर पिछले चार सालों की तुलना में 42% कम नापा गया। मुंबई का PM 2.5 लेवल लॉकडाउन के दौरान 28.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा जबकि वुहान में यह 35.1 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर नापा गया।  दूसरे नंबर पर सबसे दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली रहा जहां PM 2.5 का स्तर 32.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया।

प्रदूषित वायु कणों से फैलता है कोरोना?

इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ बोलोनिया के प्राथमिक वैज्ञानिक शोध में इस बात के कुछ सुबूत मिले हैं कि प्रदूषित हवा के कण कोरोना वाइरस  के वाहक बन सकते हैं। वैज्ञानिकों ने इसके लिये शहरी इलाकों और कुछ औद्योगिक क्षेत्रों सैंपल लिये। कोविड-19 से मिलते जुलते जीन की मौजूदगी हवा में लटके प्रदूषण के कणों में पाई गई। इस अध्ययन को अभी दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा जांचा जायेगा और यह पता किया जायेगा कि वाइरस के कितने दूर तक जाने और कितनी देर तक हवा में रहने की संभावना है।

यूरोप: कोरोना से हुई 80% मौतें सबसे प्रदूषित इलाकों में

एक ताज़ा रिसर्च से पता चला है कि यूरोप में कोरोना से हुई मौतों में वायु प्रदूषण का काफी अहम रोल रहा। फ्रांस, स्पेन, इटली और जर्मनी में कोरोना से मरने वाले करीब 80% लोग उन इलाकों में थे जहां वायु प्रदूषण सबसे ख़राब स्तर पर था। इस शोध में NO2 के स्तर और उन मौसमी स्थितियों का अध्ययन किया गया जो प्रदूषण को बिखरने से रोकते हैं। NO2 फेफड़ों को बीमार कर देता है और कोरोना होने पर जान जाने का ख़तरा बढ़ जाता है।  कोरोना महामारी के फैलने के साथ ही जानकारों ने यह चेतावनी दे दी थी कि घने प्रदूषण में रह रहे लोगों के लिये यह वायरस ज्यादा ख़तरनाक होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.