ऐतिहासिक पेरिस समझौते की पांचवी वर्षगाँठ पर आज यूरोपीय संघ ने इस यादगार और अति महत्वपूर्ण जलवायु समझौते के सम्मान में इस संदर्भ में अपने तय लक्ष्यों को न सिर्फ़ संशोधित किया, बल्कि उन्हें और बेहतर कर नये लक्ष्यों की घोषणा कर दी है।
यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने यूरोपीय संघ के लिए 2030 जलवायु लक्ष्य में संशोधन की घोषणा करते हुए बताया कि अब यूरोपीय संघ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 40% की कटौती की जगह कम से कम 55% की कोशिश करेगा। यह घोषणा महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि ऐसा कुछ पहली बार हो रहा है।
इससे पहले ब्रिटेन की ताज़ा जलवायु नीति ने पहले ही तमाम देशों पर अपने जलवायु लक्ष्यों के पुनर्वालोकन का दबाव बनाया हुआ है। ब्रिटेन के फैसले से उम्मीद है कि इससे अन्य देशों को भी वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही रखने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरणा मिलेगी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती करने के ब्रिटेन के 2030 तक के लक्ष्य में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी करेंगे, ताकि अगले दशक में कार्बन मुक्ति के प्रयासों को तेज किया जा सके और अगले साल ग्लासगो में आयोजित होने जा रही सीओपी26 में जलवायु परिवर्तन से निपटने की दौड़ की वैश्विक अगुवाई को और मजबूत किया जा सके।
ब्रिटेन के पास 1990 के स्तरों के मुकाबले वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 61% तक की कटौती करने का लक्ष्य है और सरकार ने आज एक मीडिया ब्रीफिंग में पत्रकारों से कहा कि इस लक्ष्य को कम से कम 68% तक बढ़ाया जाएगा। इसके लिए अगले एक दशक में डीकार्बोनाइजेशन की दर में कम से कम 50% का इजाफा करना होगा।
अगले साल ग्लासगो में आयोजित होने वाली संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर बैठक का मेजबान होने के नाते ब्रिटेन पर यह दबाव है कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने की नवीनतम योजना के तहत वर्ष 2030 तक प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने का और अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य दुनिया के सामने रखे। या फिर वह पेरिस समझौते के समर्थन में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) की संकल्पबद्धता जताए।
इन देशों ने बनाए शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य
• स्वीडन – 2045 तक
• यूनाइटेड किंगडम – 2045 तक
• फ्रांस – 2050 तक
• डेनमार्क – 2050 तक
• न्यूजीलैंड – 2050 तक
• हंगरी – 2050 तक
• जापान – 2050 तक
• दक्षिण कोरिया – 2050 तक
• चीन – 2060 तक
बात पूर्वी एशिया की करें तो यहाँ के तीन सबसे बड़े उत्सर्जनकर्ता, चीन, जापान, और कोरिया, कुल वैश्विक उत्सर्जन के 30 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। विश्व बैंक के अनुसार 2019 में कोरिया को दुनिया की 12 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का पद दिया गया। दक्षिण कोरिया के अपने नेट ज़ीरो लक्ष्य के पहले, एक स्वागत योग्य कदम में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और कार्बनडाईऑक्साइड के पांचवे सबसे बड़े उत्सर्जक जापान के नए प्रधान मंत्री, योशीहिदे सुगा, ने जापान को नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 2050 का लक्ष्य रखा। जापान का यह फैसला न सिर्फ़ घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, बल्कि जापान के साथ अन्य देशों के रिश्तों पर भी इसका असर पड़ेगा। ख़ास तौर से ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया जैसे देश इस फैसले का सबसे ज़्यादा असर महसूस करेंगे क्योंकि यह दोनों ही देश जापान के सबसे बड़े कोयला निर्यातक हैं।
वहीँ दूसरी ओर जापान के पास 1120 GW की अपतटीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है जो यूरोपीय देशों के लिए काफ़ी आकर्षक साबित होगा।
संस्थागत निवेशकों की एक विशाल संख्या पेरिस समझौते के लक्ष्यों का और 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का समर्थन भी करती है। पूर्वी एशिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अब मध्य-शताब्दी या उसके आस-पास नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धताएं हैं। यह एक शक्तिशाली बाजार संकेत है जो अन्य एशियाई देशों को अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद करेगा। चीन और जापान जैसी पूर्वी एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के शून्य उत्सर्जन स्तर पर आने के फैसले के बाद अब नज़रें भारत पर टिकती हैं।
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