भारत के दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम और मध्य इलाकों में जहां मॉनसून जून के शुरुआत से कम-ज़्यादा हो रहा है वहीं उत्तर पूर्व में लगातार बरसात से बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। असम के तकरीबन सभी ज़िले बाढ़ की मार झेल रहे हैं। जून के आखिर तक असम के 28 ज़िले बाढ़ में डूबे हुये थे और कुल 24 लाख लोग इससे प्रभावित हो चुके थे और 122 लोगों की मौत हो गई है। बाढ़ से हुये भूस्खलन से भी कम से कम 17 लोग मारे गये हैं। काज़ीरंगा पार्क का 15 प्रतिशत हिस्सा जलमग्न हो गया है और राज्य में करीब 60,000 मवेशी बाढ़ में बह गये हैं।
अरुणाचल में भी बाढ़ का बड़ा असर पड़ा है और यहां अब तक कम से कम 15 लोगों की मौत हो चुकी है। मेघालय में भी बाढ़ का भारी असर है और इससे 12 लोगों की मौत हो चुकी है।
मणिपुर में भूस्खलन, 50 की मौत
उधर मणिपुर में हुये भूस्खलन में मरने वालों की संख्या 48 से अधिक हो गई और बुधवार तक 14 शव नहीं मिल पाये। हालांकि डाउन ट अर्थ की रिपोर्ट में कुल 79 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस आपदा कि लिये मिट्टी की कमज़ोर पकड़, इलाके में पेड़ों और वनस्पतियों का अभाव और लगातार हो रही तेज़ बारिश के अलावा क्षेत्र में बढ़ रही मानव बसावट ज़िम्मेदार है। यह आपदा राज्य के नोने ज़िले में आई जहां जून में रिकॉर्ड बारिश हुई है।
पिछले 3 दशकों में उत्तर-पूर्व में मॉनसून घटने का पैटर्न: मौसम विभाग
जहां उत्तर-पूर्व के राज्यों में बाढ़ से विकट समस्या बनी हुई है वहीं मौसम विभाग का विश्लेषण बताता है कि असम में जून और सितंबर के बीच सभी मॉनसून महीनों में कुल बरसात में कमी का ट्रेन्ड दिख रहा है। मौसम विभाग ने असम के 1989 से 2018 के आंकड़ों का अध्ययन किया है और पाया है कि कुल बरसात में कमी हो रही है। मौसम विभाग के मुताबिक इसका मतलब है कि राज्य में स्थानीय और अचानक बहुत बारिश की घटनायें बढ़ रही है जिसके कारण आपदायें और रही हैं। असमें ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों कई विशाल नदियों का जाल है कि अचानक थोड़े समय में अधिक बारिश से बड़ी तबाही हो जाती है। असम और मेघालय के अलावा उत्तर-पूर्व के बाकी राज्यों में भी बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। इस साल मॉनसून के पहले 15 दिनों में (एक जून से पंद्रह जून तक) पूरे देश में बारिश 32% कम दर्ज की गई।
बाढ़ से दुनिया की एक चौथाई आबादी को ख़तरा
दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी भारी बाढ़ के खतरे में है, और गरीब देशों में रहने वाले लोग इसके कारण सबसे अधिक असुरक्षित हैं। यह बात एक नये अध्ययन में पता चली है। डाउन टु अर्थ में छपी रिपोर्ट बताती है कि भारी वर्षा और तूफान के कारण आने वाली बाढ़ से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। घरों, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्थाओं को अरबों डॉलर का नुकसान होता है।
बाढ़ के खतरे बढ़ रहे हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वर्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है, इसके चपेट में आने वाली आबादी लगातार बढ़ रही है। भारत में पिछले कई सालों से पूर्वी राज्यों के साथ पश्चिमी तट पर स्थित राज्यों में पानी भरने की घटनायें बढ़ रही हैं जिसका असर लोगों के जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
हीटवेव से मेंथा की उत्पादकता घटी
देश में इस साल मार्च से चली प्रचंड हीटवेव ने फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। यूपी के किसान शिकायत कर रहे हैं कि इस साल असामान्य गर्मी के कारण उनकी मेंथा की फसल बर्बाद हो गई और मेंथा से 60 से 70 प्रतिशत कम तेल निकला है। पिछले साल प्रति एकड़ 40 से 50 किलो उगाने वाले किसानों का कहना है कि इस साल फसल 15 से 20 किलो प्रति एकड़ ही हो पाई। इससे पहले गेहूं की फसल पर भी तेज़ गर्मी की मार पड़ी।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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