पूर्वी एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के शून्य उत्सर्जन स्तर पर आने के फैसले के बाद अब नज़रें भारत पर टिकती हैं
जुलाई 2020 में, भारतीय रेलवे ने 2030 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की योजना की घोषणा की थी। उस फैसले के बाद नज़रें अब भारत सरकार पर हैं कि एक सम्पूर्ण देश और अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत कब तक नेट ज़ीरो होने का लक्ष्य सार्वजनिक करता है।
वहीँ बात अगर पूर्वी एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की करें तो पहले पड़ोसी चीन, फिर जापान, और अब कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने घोषणा कर दी है कि उनकी सरकार 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के स्तर पर पहुँच जाएगी।
क्योंकि भारत दुनिया में चौथा सबसे बड़ा GHG एमिटर है, इसलिए चीन, जापान, और कोरिया की घोषणा के बाद भारत पर पूरी दुनिया का ध्यान आना लाज़मी है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो भारत के लिए ऐसा कुछ कर पाना फ़िलहाल दूर की कौड़ी सा है।
चीन के फ़ैसले के परिपेक्ष्य में द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट(TERI) के महानिदेशक अजय माथुर ने एक लेख के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि “भारत आर्थिक रूप से चीन से बहुत पीछे है। हमारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) चीन का लगभग 40% ही है। चीन की तुलना में भारत में शहरीकरण और औद्योगीकरण बेहद कम है। हर तरह से, भारत अभी भी ऊर्जा और आर्थिक परिवर्तन के शुरुआती चरण में ही है। चीन, भारत की तुलना में, चार गुना अधिक बिजली की खपत करता है। ऐसी और भी तमाम विषमतायें हैं। इसलिए, फ़िलहाल भारत के लिए चीन की तरह प्रतिबद्धता दिखाना इतना सरल नहीं।
बात अब कोरिया की करें, तो विश्व बैंक के अनुसार, 2019 में, कोरिया को दुनिया की 12 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का पद दिया गया। 2019 से, यह दुनिया का 7वां सबसे बड़ा उत्सर्जक भी है। पूर्वी एशिया के तीन सबसे बड़े उत्सर्जनकर्ता कुल वैश्विक उत्सर्जन के 30 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। यह पहली बार है कि कोरियाई सरकार ने आधिकारिक तौर पर 2050 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाने का संकल्प लिया है। और कोरिया के पहले, अभी हाल ही में एक स्वागत योग्य कदम में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और कार्बनडाईऑक्साइड के पांचवे सबसे बड़े उत्सर्जक जापान के नए प्रधान मंत्री, योशीहिदे सुगा, ने संसद के उद्घाटन सत्र में अपने भाषण में जापान को नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 2050 का लक्ष्य रखा।
जापान का यह फैसला न सिर्फ़ घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, बल्कि जापान के साथ अन्य देशों के रिश्तों पर भी इसका असर पड़ेगा। ख़ास तौर से ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया जैसे देश इस फैसले का सबसे ज़्यादा असर महसूस करेंगे क्योंकि यह दोनों ही देश जापान के सबसे बड़े कोयला निर्यातक हैं।
वहीँ दूसरी ओर जापान के पास 1120 GW की अपतटीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है जो यूरोपीय देशों के लिए काफ़ी आकर्षक साबित होगा।
वैसे कोरिया का यह फ़ैसला देश की जलवायु कार्रवाई की कमी पर बढ़ती आलोचना के बाद आयी है। दरअसल कोरिया दुनिया के तीन सबसे बड़े कोयला फाइनेंसरों में से एक है।
कोरिया की इस ताज़ा पहल पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एशिया इन्वेस्टर ग्रुप इन क्लीमट चेंज (जलवायु परिवर्तन में एशिया निवेशक समूह) (AIGCC) के कार्यकारी निदेशक, रेबेका मिकुला-राइट ने कहा, “राष्ट्रपति मून से इस औपचारिक पुष्टि का उन निवेशकों द्वारा स्वागत किया जाएगा जो तेजी से निजी पूंजी को उन बाजारों में लगाना चाहते हैं जो जलवायु जोखिम को कम कर रहे हैं और स्वच्छ प्रौद्योगिकी परिनियोजन के लिए अवसरों को बढ़ा रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “अब पूर्वी एशिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मध्य-शताब्दी या उसके आस-पास नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धताएं हैं। यह एक शक्तिशाली बाजार संकेत है जो अन्य एशियाई देशों को अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद करेगा।”
लेकिन कोरिया की इस पहल पर Youth4ClimateAction से, 16 वर्षीय कार्यकर्ता डो-ह्यून किम कुछ आशंकाएं व्यक्त करते हुए कहते हैं, “हम उनकी नेट ज़ीरो प्रतिज्ञा का स्वागत तो करते हैं, लेकिन आशा है कि यह केवल “खोखले शब्द” नहीं होंगे। हमें लगता है कि 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होना रातोंरात हासिल नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्होंने आज जो भी कहा उसके लिए उन्हें जिम्मेदार रहना चाहिए और ठोस योजनाओं के साथ कदम उठाना चाहिए।”
लेकिन जापान में हुए फैसले पर फ़िलहाल किसी को कोई शंका नहीं दिखती। वहां के प्रधान मंत्री ने अपने भाषण कहा कि उनका लक्ष्य 2050 तक जापान को एक कार्बन मुक्त समाज बनाना है जो GHG (जीएचजी) उत्सर्जन को समग्र रूप से शून्य तक कम कर देगा।
जापान के प्रधान मंत्री की इस बात पर प्रतिक्रिया देते हुए क्लाइमेट रियल इम्पैक्ट सॉल्यूशंस के सह-संस्थापक और सीईओ, और JERA के निदेशक डेविड क्रेन ने कहा, “प्रधानमंत्री सुगा को उनकी शून्य कार्बन प्रतिज्ञा के लिए बधाई। जापान की ओर से उनका साहसिक नेतृत्व, अन्य राष्ट्रों को प्रेरणा देगा और ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई में जापानी उद्योग की तकनीकी विशेषज्ञता और विनिर्माण की पूरी ताकत लाने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा।”
आगे इस मुद्दे पर काहोरी मियाके, सह-अध्यक्ष, जापान क्लाइमेट लीडर्स पार्टनरशिप (JCLP), कार्यकारी अधिकारी, CSR और संचार, AEON ने कहा, “तीन साल पहले, बॉन, जर्मनी में, जहां 2017 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP23) आयोजित किया गया था, मुझे एहसास हुआ कि जापान अन्य देशों के पीछे था और विपरीत दिशा में जा रहा है। आज की घोषणा से जापान को स्थिति को बदलने का मौका मिलेगा।”
और प्रधान मंत्री के इस फैसले पर तोशीहीरो कावाकामी, सह-अध्यक्ष, जापान क्लाइमेट लीडर्स पार्टनरशिप (JCLP), प्रमुख, पर्यावरण प्रबंधन विभाग, लिक्सिल कारपोरेशन, कहते हैं, “डीकार्बोनाइज्ड समाज बनाने की दिशा में यह घोषणा एक बदलाव का प्रतीक है।” भले ही भारत की स्तिथि वैसी न हो जैसी चीन, जापान, और कोरिया की हैं, लेकिन एशिया की इन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेट ज़ीरो होने के फैसले के बाद अब नज़रें भारत पर हैं कि आखिर कब वो अपने नेट ज़ीरो स्तर पर आने की घोषणा करेगा। वैसे इच्छाशक्ति अगर हो तो सही रणनीति से भारत भी नेट ज़ीरो होने की दिशा में मज़बूत कदम ले सकता है।
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