बुधवार को जहां राजधानी दिल्ली में तापमान 47 डिग्री के पार चला गया वहीं राजस्थान के चुरू में पारा 50 डिग्री तक पहुंच गया। भारत इस वक्त दुनिया का सबसे गर्म क्षेत्र है। आपदाओं के मौसम में कुदरत की मार किसी कोने से पीछा नहीं छोड़ रही। उत्तराखंड के जंगल फिर से जलने लगे हैं। हालांकि राज्य सरकार के प्रेस विभाग ने ट्वीट करके कहा कि जंगलों में आग की पुरानी तस्वीरें दिखाई जा रही हैं और हालात नियंत्रण में हैं लेकिन फिर भी 40 से अधिक आग की घटनाओं की ख़बर आ रही है और कहा जा रहा है कि 50 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्रफल इस वक्त जल रहा है। गर्मी और खुष्क मौसम आग को बढ़ाने में घी का काम करता है और अग्नि प्रबंधन पर सवाल खड़े होते रहे हैं। पिछले साल भी उत्तराखंड में आग की करीब 1,500 घटनायें हुईं जिसमें करीब 2000 हेक्टेयर वन भूमि तबाह हो गई थी।
उधर टिड्डियों के झुंड ने एक बार फिर से धावा बोल दिया। राजस्थान में तो टिड्डियों के झुंड छाये ही रहे 27 साल में पहली बार यूपी और मध्यप्रदेश में भी इनका प्रकोप दिखा। फिलहाल इनसे 8,000 करोड़ की दालों के अलावा दूसरी फसलों के तबाह होने का ख़तरा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और संगठन (एफएओ) का मानना है कि बरसात के बाद टिड्डियों के हमले और तेज़ होंगे और भारत के इसे रोकने के लिये पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों के साथ बात करनी चाहिये क्योंकि यह झुंड वहीं से आते हैं। डीडब्लू हिन्दी में छपी एक ख़बर में बताया गया है कि किस तरह कोरोना संकट इन टिड्डियों के हमले के पीछे एक कारण है। इसके अलावा पूर्वी तट पर आये अम्फन तूफान से कोरोना महामारी के और बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। लाखों की संख्या में लोगों को अपना घर छोड़कर राहत कैंपों में आना पड़ा जहां सामाजिक दूरी के नियमों का पालन आसान नहीं है।
अब चाहे चक्रवाती तूफान हो या टिड्डियों का हमला, ऐसे हालात पैदा होने और इन विकट परिस्थितियों के पीछे वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन को एक बड़ा कारण बता रहे हैं। जहां आईपीसीसी जानकार पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग चक्रवाती तूफानों की संख्या और मारक क्षमता बढ़ायेगी वहीं एफएओ की रिपोर्ट कहती है कि बदलते क्लाइमेट के कारण टिड्डियों का प्रजनन सामान्य से 400 गुना अधिक हो रहा है। ऐसे में एक बार फिर साफ ऊर्जा की ओर बढ़ने और सादगी भरे लाइफ स्टाइल को अपनाने की ज़रूरत समझने की ज़रूरत है।
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