संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण CO2 उत्सर्जन के ग्राफ में कमी के बावजूद धरती सदी के अंत तक 3 डिग्री तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (UNEP) की यह रिपोर्ट पेरिस संधि के तहत किये गये वादे को पूरा करने के लिये अधिकतम इमीशन और वास्तविक इमीशन के बीच के अंतर का विश्लेषण करती है और इसे इमीशन गैप रिपोर्ट कहा जाता है। वर्तमान रिपोर्ट इमीशन गैप रिपोर्ट – 2020 है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में कुल ग्रीन हाउस गैस इमीशन (लैंड यूज़ बदलाव को शामिल करके) नये रिकॉर्ड स्तर पर 59.1 गीगाटन CO2 के बराबर रहा। ग्लोबल ग्रीन हाउस गैस इमीशन 2010 से औसतन 1.4% सालाना बढ़ रहा है। पिछले साल जंगलों में भयानक आग के कारण इमीशन में वृद्धि 2.6% रही।
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी के कुछ वक्त बाद इमीशन में फिर से उछाल आ गया है। महामारी के बाद अगर विकास योजनाओं को उत्सर्जन में ध्यान रखकर संचालित किया जाये – यानी अगर साफ ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़े और ग्रीन सेक्टर में अधिक नौकरियों का सृजन हो – तो 2030 तक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को 25% तक कम किया जा सकता है। महत्वपूर्ण है कि 80% इमीशन के लिये दुनिया के 20 बड़े देश (G-20) ज़िम्मेदार हैं और उन्हें इस दिशा में बदलाव के लिये पहले करनी होगी।
जीवाश्म ईंधन का उत्पादन बढ़ने से राह मुश्किल
दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तैयारी या अनुमान के मुताबिक अगले कुछ सालों में उनके जीवाश्म ईंधन उत्पादन में 2% की बढ़त होगी जबकि उन्हें धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री के नीचे रखने के लिये अगले दस सालों तक इसे सालाना 6% घटाने की ज़रूरत है। यह बात अग्रणी रिसर्च संस्थाओं द्वारा तैयार प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट के विशेष अंक में कही गई है। इस रिपोर्ट में पेरिस संधि के तहत तय किये गये लक्ष्य और तमाम देशों के उत्पादन में अंतर की गणना की गई है। रिपोर्ट कहती है कि पेरिस संधि के तहत तय लक्ष्य हासिल करने के लिये वैश्विक स्तर पर कोयले, कच्चे तेल और गैस के उत्पादन में क्रमश: 11%, 4% और 3% वार्षिक कमी होनी चाहिये। कोरोना महामारी के कारण कुछ वक्त के लिये ईंधन का उत्पादन ज़रूर घटा लेकिन अब प्रोडक्शन में फिर उछाल वांछित और वास्तवित उत्पादन स्तर में अंतर बढ़ा रहा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने NHAI को फटकारा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने पर्यावरण संरक्षण के लिये लापरवाह रुख अपनाने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिये हाइवे के दोनों ओर पेड़ लगाना बेहद अनिवार्य है। एनजीटी ने कहा कि प्राधिकरण की यह दलील बिल्कुल स्वीकार योग्य नहीं है कि सड़क प्राइवेट कंपनियां (ठेकेदार) बनाती हैं और यह उनका काम है। कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण भले ही हाइवे निर्माण के लिये काम दूसरी एजेंसियों को दे लेकिन इससे उसकी (प्राधिकरण की) ज़िम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। एनजीटी प्रमुख आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह बात कही। महत्वपूर्ण है कि एनजीटी पहले भी अथॉरिटी को अपने ढुलमुल रवैये के लिये लताड़ लगा चुका है।
कोरोना ने ऊर्जा इस्तेमाल का ग्राफ बदला: IEA
कोरोना ने लाइफ स्टाइल में जो बदलाव किये हैं उससे व्यवसायिक और रिहायशी भवनों में बिजली इस्तेमाल का ढर्रा तो बदला ही है बल्कि यात्रा के पैटर्न में भी बदलाव आया है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की ताज़ा रिपोर्ट (एनर्जी एफिशेंसी – 2020) में कहा गया है कि इसके कारण साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में तरक्की धीमी होगी और जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और बिजली की मांग की दिशा में किये जा रहे प्रयासों पर चोट पहुंच सकती है।
रिपोर्ट कहती है कि निर्माण क्षेत्र में व्यवसायिक के बजाय रिहायशी इमारतों के लिये अधिक बिजली इस्तेमाल हो रही है क्योंकि कोविड के कारण लोग घरों से अधिक काम करने लगे हैं। इसी तरह घरों में बिजली की खपत 20% तक बढ़ी है। उधर कोविड के कारण लोगों के यात्रा के ज़रिये बदले हैं। किसी भी मोड से लम्बी यात्रायें बहुत कम हो गई हैं और माना जा रहा है कि साल 2020 में कमर्शियल एविएशन में 60% और रेल यात्रा में कुल 30% की कमी दर्ज होगी।
न्यूज़ीलैंड में क्लाइमेट इमरजेंसी, कार्बन न्यूट्रल बनने की शपथ
न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंडा एडर्न ने देश में क्लाइमेट इमरजेंसी की घोषणा कर दी है और कहा है कि सरकारी क्षेत्र साल 2025 तक क्लाइमेट न्यूट्रल हो जायेंगे। हालांकि जानकार इस कदम को ‘सांकेतिक’ बता रहे हैं और उनका कहना है कि न्यूज़ीलैंड के इमीशन कट करने के लिये सरकार को बहुत कुछ करना होगा। न्यूज़ीलैंड यूके, जापान, कनाडा और फ्रांस के साथ उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जिन्होंने क्लाइमेट चेंज के ख़तरे को देखते हुए आपातकाल की घोषणा की है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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