बाढ़ और सूखे की मार काफी हद तक मरुस्थलीकरण के लिये ज़िम्मेदार है | Photo: RachelB

आसान नहीं मरुस्थल से जंग

आज दुनिया भर में ज़मीन तेज़ी से बंजर हो रही है और मरुस्थल में बदल रही है। इस विनाशकारी बदलाव की कई वजहें हैं लेकिन पहले यह समझिये कि ये समस्या है कितनी बड़ी।

पूरी दुनिया में करीब 13200 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन है जिसमें से लगभग एक तिहाई (400 करोड़ हेक्टेयर) ज़मीन मरुस्थलीय हो चुकी है।

अब भारत पर नज़र डालिये।

हमारे देश में कुल उपलब्ध क्षेत्रफल है लगभग 33 करोड़ हेक्टेयर। इसमें से लगभग 10 करोड़ हेक्टयेर ज़मीन मरुस्थल या बंजर हो चुकी है। इस ज़मीन को कृषि या बागवानी के लिये इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

ज़मीन के अति दोहन, कीटनाशकों के इस्तेमाल और बाढ़ और तेज़ आंधियों के अलावा सूखे और जंगलों के कटान से ज़मीन ख़राब होती है। इसे उपजाऊ बनाने के लिये जैविक खेती को अपनाने और बेहतर जल प्रबंधन के साथ पेड़ लगाने जैसे कदम कारगर हो सकते हैं। 

भारत सरकार ने यह वादा किया है  वह अगले 10 सालों में 50 लाख हेक्टेयर ज़मीन को उपजाऊ बनायेगी। महात्मा गांधी की जन्मशती के 150 वें साल में सरकार कह रही है कि वह गांधी के जन्मस्थल पोरबंदर से दिल्ली तक एक हरित पथ बनायेगी।

यह बात ध्यान देने की है कि सरकार ने 2015 में कहा था कि वह 130 लाख हेक्टेयर ज़मीन 2020 तक उपजाऊ बनायेगी और अगले 10 साल में यानी 2030 तक 80 हेक्टेयर ज़मीन और सुधारेगी। दिल्ली में सोमवार से मरुस्थलीकरण से लड़ने के लिये संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन शुरु हुआ है जिसकी अध्यक्षता भारत कर रहा है। माना जा रहा है कि भारत इस सम्मेलन में बंजर और मरुस्थल से लड़ने के लिये और अधिक ऊंचे इरादे ज़ाहिर करेगा। अब यह देखना होगा कि नई घोषणा चुनावी जुमला रहती है या फिर कुछ देखने को मिलता है।

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