दुनिया के बड़े जलवायु विशेषज्ञ और नेता अब मान रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा निश्चित रूप से पार होने वाली है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कॉप30 में बताया कि इस सीमा का ‘ओवरशूट’ रोकना अब लगभग असंभव है। यह साल भी इतिहास का दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल बनने की राह पर है।
लेकिन यह केवल विज्ञान का मुद्दा नहीं है — देशों के बीच राजनीतिक बहस भी तेज है। यूरोपीय संघ चाहता है कि कॉप30 के आधिकारिक दस्तावेज़ में 1.5 डिग्री सेल्सियस की चेतावनी साफ-साफ लिखी जाए। वहीं, अरब समूह और भारत का कहना है कि ‘डराने वाली भाषा’ वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है और इससे विकासशील देशों पर अनुचित दबाव पड़ेगा।
नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और लघुद्वीपीय देश कहते हैं कि उनके लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य ‘जीवित रहने’ का सवाल है। वे 2035 की जलवायु योजनाओं को मजबूत करने और अधिक वित्तीय सहायता की मांग कर रहे हैं।
नए वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार स्थिति और गंभीर है। ग्लोबल कार्बन बजट 2025 रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का कार्बन उत्सर्जन अगले वर्ष 1.1% बढ़ेगा और 1.5 डिग्री सेल्सियस का बचा हुआ कार्बन बजट 2030 से पहले खत्म हो जाएगा। अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन और भारत — सभी के उत्सर्जन 2025 में बढ़ने का अनुमान है।
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि जितनी देर दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहेगी, खतरा उतना बढ़ेगा — लेकिन तेजी से उत्सर्जन कटौती की जाए तो लंबे समय में स्थिति सुधर सकती है।
दक्षिण भारत में बारिश, मध्य और उत्तर भारत में सर्दी ने दी दस्तक
इस सप्ताह देश में मौसम दो हिस्सों में बंटा दिखा। दक्षिण भारत में गरज-चमक के साथ तेज बारिश जारी रही। तमिलनाडु, केरल, तटीय आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में 18 नवंबर तक भारी बारिश की संभावना है। वहीं मध्य और उत्तर भारत में समय से पहले ठंड बढ़ गई। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तापमान सामान्य से नीचे चला गया। मुंबई में भी ठंड महसूस हुई और प्रदूषण बढ़ा। पूर्वोत्तर में हल्का कोहरा छाया रहा, जबकि बाकी इलाकों में मौसम सामान्य रहा।
2025 भी रहेगा बेहद गर्म साल: यूएन
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि 2025 इतिहास के सबसे गर्म सालों में शामिल हो सकता है। हालांकि यह 2024 को पार नहीं करेगा, लेकिन दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल बनने की संभावना है। डब्ल्यूएमओ के अनुसार, 2025 के पहले आठ महीनों का तापमान औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 1.42 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज कदम उठाकर सदी के अंत तक तापमान कम किया जा सकता है। आर्कटिक और अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ तेजी से घट रही है और चरम मौसम बढ़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन और खाद के गलत उपयोग से घट रही मिट्टी की कार्बन मात्रा: शोध
आईसीएआर ने एक अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन और खाद के गलत उपयोग से भारत की कृषि भूमि में मिट्टी की कार्बन मात्रा कम हो रही है। छह साल तक चले इस अध्ययन में 620 जिलों के ढाई लाख से ज्यादा नमूनों की जांच हुई। रिपोर्ट बताती है कि तापमान, बारिश और ऊँचाई का कार्बन स्तर पर बड़ा असर पड़ता है। राजस्थान और तेलंगाना जैसे गर्म राज्यों में मिट्टी में कार्बन कम मिला, जबकि पहाड़ी इलाकों में ज्यादा। धान और दाल वाले क्षेत्रों में कार्बन अधिक रहा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में असंतुलित खाद उपयोग के कारण गिरावट ज्यादा दिखी।
गोवा में अब पूरे साल खतरा बना हुआ है डेंगू
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि गोवा में डेंगू अब सिर्फ बरसात तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरे साल फैल रहा है। कारण है जलवायु परिवर्तन से होने वाली बे-समय बारिश, साथ ही पर्यटकों और कामगारों की लगातार आवाजाही। अधिकारियों ने स्वास्थ्य केंद्रों को निर्माण स्थलों और मजदूर बस्तियों पर विशेष नजर रखने के निर्देश दिए हैं, क्योंकि एडीज मच्छर राज्य में पहले से मौजूद है। लोगों से कहा गया है कि कहीं भी पानी जमा न होने दें और बुखार होने पर तुरंत जांच करवाएँ। गोवा में अक्टूबर में 11 और इस साल कुल 84 मामले दर्ज हुए, जो पिछले साल के 511 मामलों से काफी कम हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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