जैसे ही आप पश्चिम बंगाल के इस गांव की चौड़ी और टूटी-फूटी हुई सड़क पर चलते हैं, यह साफ हो जाता है कि यहां कुछ विनाशकारी हुआ है। चारों ओर टूटे-फूटे मकान हैं। इन्हीं में से एक घर तपन पाल का है। उनके घर की दो मंजिला इमारत का एक हिस्सा जुलाई 2020 की रात में भरभराकर गिर गया था। इसकी ईंटें यहां-वहां बिखरी पड़ी हैं।
आगे चलने पर आपको सभी घरों में कुछ न कुछ दिक्कतें नजर आएंगी।
खपरैल वाली छतें, टूटी दीवारें, टूटी खिड़कियां। ज्यादातर घरों को छोड़कर लोग जा चुके हैं। वह वीरान पड़े हुए हैं। आखिर कौन इन टिक-टिक करते टाइम बमों के अंदर रहना चाहेगा?
यह भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान जिले के अंडाल ब्लॉक का एक गांव हरीशपुर है।
जुलाई 2020 में, केंद्रीय स्वामित्व वाली कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) ने कथित तौर पर हरीशपुर में दो अवैध ओपन-कास्ट खनन कार्य किए थे। पहला 14 जुलाई, 2020 को और दूसरा 20 जुलाई, 2020 को किया गया था। स्थानीय लोगों का आरोप है कि ईसीएल के पास रिहायशी इलाके के इतने नजदीक खनन कार्य करने के लिए न तो आवश्यक अनुमति थी और न ही उनके पास पर्यावरणीय मंजूरी थी। उनका कहना है कि ईसीएल के अवैध खनन के कारण जमीन के धंसने और भूमिगत आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं।
तपन पाल के घर का ढहना खनन के बाद हुई जमीन धंसने की घटनाओं का जीता जागता नमूना है। जुलाई 2020 में धंसाव के कारण 25 से अधिक घर गिर गए और 1,000 से ज्यादा परिवार घर खाली करके कहीं और रहने के लिए वहां से चले गए। हरीशपुर में अब कोयला खनन नहीं हो रहा है।
हरीशपुर को एक जनगणना शहर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जनगणना शहर का मतलब ऐसे क्षेत्रों से है जिन्हें राज्य सरकारों ने शहर के रूप में परिभाषित नहीं किया है, लेकिन वह अपनी जनसंख्या के आकार और अन्य विशेषताओं के कारण शहरी विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, हरीशपुर की कुल जनसंख्या 8,980 थी।
लेकिन लगातार जमीन धंसने और घरों के ढहने की घटनाओं ने लोगों को अपने घर छोड़कर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है। 37 साल के अरिजीत घोष कहते हैं, “जब सड़क लगभग पांच फीट नीचे धंस गई तो हमें पता चल गया था कि एक आपदा हमारे पास आ रही है और हमने यहां से निकलने की तैयारी शुरू कर दी।” हरीशपुर में अब तकरीबन 500 लोग बचे हैं क्योंकि बहुत से लोग डर के कारण गांव से बाहर चले गए हैं।
मकान गिरे हुए तीन साल हो चुके हैं। लेकिन इतना लंबा समय बीतने के बावजूद, प्रभावित लोगों के पुनर्वास के संबंध में अधिकारियों की ओर से अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।
सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआई) के जनसंपर्क प्रमुख संजय कुमार दुबे से लिखित रूप में स्थिति के बारे में पूछा गया था। लेकिन उनकी तरफ से अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। वहीं ईसीएल के अन्य अधिकारियों ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। दुबे से पूछे गए सवालों में से एक सवाल हरीशपुर में जमीन धंसने से प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास के उपायों की स्थिति से जुड़ा था।
वहीं दूसरा सवाल था कि क्या सीएमपीडीआई ने जुलाई 2020 में ईसीएल द्वारा किए गए खनन कार्यों के लिए पर्यावरण मंजूरी जारी की थी।
हरीशपुर में रहने वाले 35 साल के दीपक अटुरिया कहते हैं। “हम वापस आ गए। क्योंकि हम जहां रह रहे थे वहां 2021 की बाढ़ के दौरान पूरे हिस्से में पानी घुस गया था। वहां रहने की तुलना में यहां रहना ज्यादा सुरक्षित है। क्योंकि वहां पानी सूख गया, तो फिर से आग लग जाएगी।”
कोई नौकरी, पानी या बुनियादी सुविधाएं नहीं
भारत में कोयला खनन का जन्मस्थान रानीगंज कोयला क्षेत्र (आरसीएफ) पश्चिम बंगाल के पूरे आसनसोल-दुर्गापुर क्षेत्र को कवर करता है। आरसीएफ भारत का दूसरा सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है, जिसमें 49.17 बिलियन टन कोयला भंडार है, जो पश्चिम बंगाल और पड़ोसी राज्य झारखंड में फैला हुआ है। इस औद्योगिक गलियारे में कोयला खनन एक महत्वपूर्ण विकास गतिविधि है, जिसकी वजह से प्रवासी मजदूर इस तरफ रुख कर लेते हैं।
कोलकाता स्थित अनुसंधान संगठन एमसीआरजी के 2021 की रिसर्च के अनुसार, ‘कोयला खनन विकास के चलते भूमि अधिग्रहण और विस्थापन, इन इलाकों में काम करने से होने वाली बीमारियां, काम करने के लिए सुरक्षित माहौल का न होना, आवास और पुनर्वास जैसी समस्याएं पैदा हुई हैं।’
इसके अलावा, खासतौर पर अवैध खनन के मामले के चलते जमीन धंसने की घटनाओं ने खतरों को काफी बढ़ा दिया है। इसका एक बड़ा उदाहरण जुलाई 2020 में हरीशपुर में हुई घटना है। पर्यावरण को होने वाले नुकसान और पुनर्वास की चुनौतियों में से एक पानी की उपलब्धता से संबंधित है। जुलाई 2020 के बाद एक कुआं बर्बाद हो गया और दूसरा सूख गया। पाइप लाइन टूट गईं, जिससे पीने के पानी की सप्लाई बंद हो गई। लगभग 50 साल की अंजू चौधरी ने बांग्ला में कहा, “हम बोरवेल के जरिए किसी तरह से काम चला रहे हैं। लेकिन भूजल स्थानांतरित हो गया है। बहुत कम बोरवेल काम करते हैं। हमारे पास नल तो हैं लेकिन पानी नहीं है।” अटुरिया हिंदी में फिर से इसी बात को दोहराते हैं, “नल है मगर उसमें पानी नहीं है।”
अटुरिया बताते हैं कि जुलाई 2020 की दुर्घटनाओं के कारण क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ गई है। मुख्य सड़क पर एक चाय की दुकान बंद हो गई क्योंकि झोपड़ी की हालत खराब थी और वह कभी भी ढह सकती थी। 45 साल के दयामोय चौधरी की आय का मुख्य जरिया थी। बहुत से लोगों को भी नौकरियों के नुकसान का सामना करना पड़ा। 42 वर्षीय दिवाकर गोप अपने गैराज की छत गिरने के बाद से बेरोजगार हैं। उनके गैराज की कई वैन क्षतिग्रस्त हो गईं थीं।
अटुरिया कहते हैं, “खनन की घटना के बाद एक चार पहिया वाहन और एक कुआं दोनों जमीन में धंस गए। हमने उन्हें इसे रेत से ढक दिया।” उन्होंने दावा किया कि गांव में सभी छोटे व्यवसाय, जैसे किराना स्टोर, आटा मिल, दर्जी की दुकानें आदि, 2020 से बंद हैं। इस वजह से स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
एक निष्क्रिय मास्टर प्लान, तुच्छ राजनीति और नामुमकिन नजर आता पुनर्वास
2009 में, भारत सरकार ने आरसीएफ क्षेत्र में 180,000 से ज्यादा लोगों के पुनर्वास के लिए एक मास्टर प्लान को मंजूरी दी थी। इसके लिए 2600 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट सौंपा गया था। मास्टर प्लान के अनुसार, ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड ‘धंसने वाली जमीन’ और ‘कमजोर’ क्षेत्रों की पहचान करने का काम करेगा।
कोयला उत्पादक को उन क्षेत्रों में पुनर्वास करने का भी काम सौंपा गया है जो उसके और उसकी सहायक कंपनी, भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के दायरे में आते हैं। आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकरण (एडीडीए) को उन क्षेत्रों में पुनर्वास का काम सौंपा गया है जो ईसीएल या बीसीसीएल के दायरे में नहीं आते हैं।
इसके बावजूद, इस मास्टर प्लान को मंजूरी मिलने के 14 साल बाद भी, पश्चिम बंगाल के धंसते शहर में रहने वालों की शिकायतें जस की तस बनी हुई है।
हरीशपुर के निवासी पुनर्वास के इंतजार में हैं, लेकिन, जुलाई 2020 में लगातार जमीनों के धंसने की दो घटनाओं और उसके बाद के राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के खेल में फंस कर रह गए। दीपक अटुरिया कहते हैं, “कई बैठकों के बावजूद, हमारी समस्याओं का कोई समाधान नहीं निकला है। राज्य सरकार का कहना है कि उन्हें केंद्र सरकार से पैसा नहीं मिला है और आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकरण का कहना है कि उन्हें राज्य से कोई फंड नहीं मिला है।”
अटुरिया और घोष आगे याद करते हैं कि एडीडीए अधिकारियों ने उन्हें जमीन धंसने के बाद छह महीने तक तंबू में रहने के लिए कहा था और कहा था कि वे बाद में उनका पुनर्वास करेंगे। लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्हें प्लॉट और घर देने का वादा किया गया था, लेकिन इसके बदले उन्हें काफी समय से वीरान पड़े ईसीएल क्वार्टर की पेशकश की गई। 36 वर्षीय निवासी लालू गोप कहते हैं कि वे क्वार्टर रहने लायक नहीं हैं। गोप ने बताया, “यह सिर्फ 10×10 फीट का कमरा है।”
अटुरिया एक घर की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि जुलाई 2020 की घटना के बाद यह सबसे पहले प्रभावित हुआ था। यह घर उत्पल चौधरी का है, जो अब ईसीएल क्वार्टर में रहते हैं। अटुरिया कहते हैं, “ईसीएल ने सिर्फ अपना सम्मान बचाने के लिए हमें क्वार्टर की पेशकश की थी।”
मकान गिरने के अगले दिन, हरीशपुर के निवासियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग -2 को अवरुद्ध कर दिया और पुनर्वास की मांग की। लेकिन पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) ने विरोध को वहीं रोक दिया था। बाद में उन्होंने काजोरा क्षेत्र में ईसीएल के महाप्रबंधक के कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने 45 दिनों तक भूख हड़ताल की, लेकिन इससे भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ।
अटुरिया कहते हैं, “ईसीएल हमसे एक गिलास पानी और हमारे रहने की स्थिति के बारे में पूछने तक नहीं आया था।”
ईसीएल या एडीडीए से पुनर्वास पर कोई आश्वासन नहीं मिलने के बाद हरीशपुर के निवासियों ने एक समिति बनाई और ब्लॉक विकास अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट (डीएम), पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राज्य के मुख्यमंत्री के कार्यालय के दरवाजे खटखटाए।
हालांकि, राजनीतिक दलों ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान अपने फायदे के लिए उनकी दुर्दशा का मुद्दा उठाया था। लेकिन हरीशपुर ने मतदान का बहिष्कार किया और जनगणना शहर से एक भी वोट नहीं डाला गया।
रिपोर्टों के अनुसार, ईसीएल आखिरकार अप्रैल 2022 में हरीशपुर के लोगों के पुनर्वास के लिए सहमत हो गया। ईसीएल-काजोरा क्षेत्र के महाप्रबंधक ने कथित तौर पर एक डिजिटल समाचार मंच को बताया कि हरीशपुर के लिए पुनर्वास परियोजना चल रही है। उन्हें न सिर्फ जमीन और मकान का मुआवजा दिया जाएगा, बल्कि प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी।
हरीशपुर में जुलाई 2020 की जमीन धंसने की त्रासदी को तीन साल हो गए हैं। पिछले साल किए गए वादे अभी तक पूरे नहीं किए गए हैं। अटुरिया कहते हैं, “2020 में लॉकडाउन के बाद से हम बेकार बैठे हैं। हम छोटे व्यवसाय और दुकानें चलाते थे, लेकिन अब सब कुछ बंद है। ईसीएल हमें पुनर्वासित करेगा, इस उम्मीद में हमें कब तक बैठना होगा?”
और फिर वह धंसी हुई सड़क के किनारे दुकानों के बंद और जंग लगे शटर की ओर इशारा करने लगते हैं।
(यह स्टोरी मोंगाबे हिंदी से साभार ली गई है।)