वैज्ञानिकों ने कहा है कि दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नमी वाले क्षेत्रों में बारिश में काफी बदलाव देखने को मिलेगा
भारत में मानसूनी बारिश में काफी बदलाव देखा जा रहा है। जहां एक ओर कुछ राज्यों में अभी तक अनुमान से अधिक बारिश हुई है, वहीं दूसरी ओर बारिश में काफी कमी दिखाई दे रही है। एक नए अध्ययन के मुताबिक वैज्ञानिकों की एक टीम ने जलवायु मॉडल का उपयोग करके बारिश में हो रहे बदलावों के बारे में पूर्वानुमान लगाया है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नमी वाले क्षेत्रों में बारिश में काफी बदलाव देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा की सतही हवा के तापमान में 1 से 3 फीसदी प्रति डिग्री की वृद्धि हो रही हैं। जिससे शुष्क और नमी वाली स्थितियों के बीच काफी उतार-चढ़ाव आएंगे। यह अध्ययन चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के अगुवाई में किया गया है।
यह सर्वविदित है कि अधिक बारिश होने से बाढ़ आती है और कम होने से सूखा पड़ता है। शोधकर्ताओं ने दशकों पहले यह पता लगा लिया था कि ग्लोबल वार्मिंग ने औसतन बारिश में वृद्धि की है। यह वृद्धि एक निश्चित समय पर कैसे होती है यह बहुत मायने रखता है। साल भर में समान रूप से होने वाली वार्षिक बारिश में 2 से 3 प्रतिशत की वृद्धि से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन अगर यह एक सप्ताह या एक दिन में होती है, तो यह तबाही मचा सकती है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होंने इस अध्ययन में अत्याधुनिक जलवायु मॉडल सिमुलेशन का उपयोग किया है। जो हर रोज से लेकर कई वर्षों तक के समय के पैमाने पर बारिश में होने वाले बदलाव की वृद्धि पर प्रकाश डालता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि भविष्य में दुनिया भर में तापमान बढ़ेगा, जलवायु संबंधी नमी वाले इलाके – उष्णकटिबंधीय, मानसूनी इलाकों और मध्य से उच्च अक्षांशों सहित न केवल बहुत नमी वाले हो जाएंगे, बल्कि नमी और सूखे वाली स्थितियों में भी काफी बदलाव होगा।
अध्ययनकर्ता झोउ तियानजुन ने कहा जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती है, नमी वाले इलाके आमतौर पर अधिक नमी वाले हो जाते हैं और शुष्क क्षेत्र सूख जाते हैं। औसत वर्षा परिवर्तन के इस तरह के वैश्विक पैटर्न को अक्सर नमी में लगातार बढ़ोतरी होने के रूप में वर्णित किया जाता है। वर्षा में हो रहे बदलाव के वैश्विक पैटर्न में नमी में लगातार बढ़ोतरी या वेट-गेट-मोर वैरिएबल का प्रतिमान होता है। इसके अलावा, बारिश में होने वाले बदलाव में वैश्विक औसत वृद्धि का अर्थ है औसत वर्षा में वृद्धि के दोगुने से अधिक तेज होना है।
पहले क्रम में बढ़ी हुई वर्षा में बदलाव, जलवायु के गर्म होने के चलते हवा में जल वाष्प में वृद्धि के कारण होती है। लेकिन आंशिक रूप से कमजोर प्रसार में बदलाव नहीं होता है। उत्तरार्द्ध के बारिश में होने वाले बदलाव क्षेत्रीय पैटर्न पर हावी होते है। यह अध्ययन साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ है।
औसत स्थिति और वर्षा में होने वाले बदलाव दोनों में परिवर्तन पर गौर करने से, भविष्य में किए जाने वाले शोधों के लिए वर्षा में होने वाले बदलावों को समझने के लिए एक नया परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। झांग वेन्क्सिया ने कहा लगभग दो-तिहाई भूमि अधिक नमी और जलवायु में अधिक बदलाव का सामना करेगी, जबकि शेष भूमि क्षेत्र सूखे के रूप में अधिक बदलावों का सामना करने का अनुमान है। यह अलग-अलग बारिश संबंधी बदलावों की व्यवस्थाओं का मूल्यवान है।
दुनिया भर में बारिश में होने वाले अधिक बदलाव के लिए ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेवार है जो हमारे जलवायु को और अधिक असमान बना रहा है। नमी और सूखी दोनों ही स्थितियों के तेजी से बढ़ने के आसार हैं। अधिक बारिश की अधिक बदलाव वाली घटनाएं आगे चलकर फसल की पैदावार और नदी के प्रवाह पर प्रभाव डाल सकती हैं। यह दोनों बुनियादी ढांचे, मानव समाज और पारिस्थितिकी तंत्र की मौजूदा जलवायु से निपटने को चुनौती देते हैं। यह जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन को और अधिक कठिन बना देता है।
ये स्टोरी डाउन टू अर्थ हिन्दी से साभार ली गई है।
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