अनुमान है कि एंथ्रोपोजेनिक सेकेंडरी ऑर्गेनिक एरोसोल के कारण उत्पन्न हो रहा वायु प्रदूषण हर साल 9 लाख लोगों की असमय जान ले रहा है
हमारी रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल होने वाले उत्पादों जैसे पेंट, कीटनाशकों, कोयला आदि के कारण होने वाला वायु प्रदूषण हर साल दुनिया भर में लाखों लोगों की जान ले रहा है। यह जानकारी हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर द्वारा किए एक शोध में सामने आई है, जोकि जर्नल एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन एंथ्रोपोजेनिक सेकेंडरी ऑर्गेनिक एरोसोल के कारण उत्पन्न हो रहा वायु प्रदूषण हर साल 9 लाख तक लोगों की असमय जान ले रहा है। गौरतलब है कि यह एंथ्रोपोजेनिक सेकेंडरी ऑर्गेनिक एरोसोल, वातावरण में मौजूद वो छोटे कण होते हैं जो मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित रसायनों से बनते हैं।
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता बेंजामिन नॉल्ट ने जानकारी दी है कि इन रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स और फ्यूल्स से पैदा होने वाला वायु प्रदूषण पहले के अनुमान के मुकाबले 10 गुना ज्यादा लोगों की जान ले सकता है।
नॉल्ट ने आगे बताया कि पहले लोगों का विचार था कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाली असमय मौतों की दर को कम करने के लिए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर ध्यान देना चाहिए। उनके अनुसार यह सही है कि इनसे होने वाले प्रदूषण की रोकथाम जरुरी है, पर इसके साथ ही साफ-सफाई, पेंटिंग और अन्य रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स पर भी ध्यान देना जरुरी है। यदि आप ऐसा नहीं करते तो इसका मतलब है कि आप इसके एक प्रमुख स्रोत पर नहीं पहुंच रहे हैं।
हर साल 30 से 40 लाख लोगों की जान ले रहा है पीएम 2.5
यह काफी पहले से ही ज्ञात है कि वातावरण में मौजूद प्रदूषकों के सूक्ष्म कण इतने छोटे हैं कि वो सांस के साथ लोगों के फेफड़ों में जाकर उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे मृत्युदर में इजाफा हो सकता है। अनुमान है कि सूक्ष्म प्रदूषण कण जिन्हें अक्सर पीएम 2.5 के नाम से जाना जाता है वो हर साल करीब 30 से 40 लाख या उससे भी ज्यादा लोगों की जान ले रहे हैं।
यही वजह है कि दुनिया के कई देशों में इन सूक्ष्म कणों को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। हम बिजली संयंत्रों और जीवाश्म ईंधन जैसे डीजल आदि से निकलने वाली कालिख को नियंत्रित करते हैं। यह कण प्रदूषण के प्रत्यक्ष स्रोत हैं। साथ ही हमने नाइट्रोजन और सल्फर जैसे प्रदूषकों को रोकने के लिए भी नियम बनाए हैं, जो वातावरण में प्रतिक्रिया करके सूक्ष्म कण बनाते हैं। जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण का कारण बनते हैं। लेकिन इस नए शोध में केमिकल्स के एक तीसरे वर्ग एंथ्रोपोजेनिक सेकेंडरी ऑर्गेनिक एरोसोल का अध्ययन किया है, जो प्रदूषण के इन महीन कणों का एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष स्रोत हैं।
सूक्ष्म कणों के कई स्रोतों के मृत्यु दर पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों में दुनिया भर के शहरों में किए 11 अध्ययनों और उनके आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसमें बीजिंग, लंदन और न्यूयॉर्क जैसे शहर शामिल थे। उन्होंने इन शहरों में केमिकल्स से हो रहे उत्सर्जन का एक व्यापक डेटाबेस बनाया है, जिसका वायु गुणवत्ता मॉडल की मदद से अध्ययन किया गया है जिसमें उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों का भी अध्ययन किया गया है।
उन्हें पता चला है कि इन 11 शहरों में मौजूद सेकेंडरी आर्गेनिक एयरोसोल का सम्बन्ध लोगों द्वारा रोजमर्रा के इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल्स के कारण उत्सर्जित होने वाले विशिष्ट कार्बनिक यौगिकों से था। उत्सर्जन के इन स्रोतों में वाहनों के टेलपाइप, खाना बनाने के ईंधन जैसे लकड़ी और कोयला के साथ औद्योगिक सॉल्वैंट्स, हाउस पेंट, सफाई उत्पादों और अन्य केमिकल्स की भूमिका भी सामने आई थी।
इससे पहले लॉस एंजिल्स में किए एक शोध में शोधकर्ताओं को पता चला था कि यह रासायनिक उत्पाद उतना ही योगदान करते हैं, जितना कि वाहनों से होने वाला वायु प्रदूषण होता है। एनओएए वैज्ञानिक और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता ब्रायन मैकडोनाल्ड ने बताया कि इस नए शोध से पता चला है कि यह उत्तरी अमेरिका, यूरोप और पूर्वी एशिया के शहरों की समस्या है।
सीयू बोल्डर और इस शोध से जुड़े जोस-लुइस जिमेनेज ने बताया कि वायु गुणवत्ता से जुड़े नियमों में आमतौर पर वाष्पित होने वाले उन केमिकल्स पर ध्यान दिया जाता है जो ओजोन उत्सर्जित करते हैं, जोकि एक खतरनाक वायु प्रदूषक है। लेकिन हाल ही में किए इस शोध से पता चला है कि वो केमिकल्स जो ओजोन निर्माण में बहुत कम योगदान देते हैं वो भी हानिकारक महीन कणों के निर्माण में योगदान दे सकते हैं।
उनके अनुसार इसके प्रभाव को बहुत कम करके आंका गया है यही वजह है कि इसके नियंत्रण पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन जब आप एटमोस्फेरिक केमिस्ट्री को ध्यान में रखते हैं और इसे मॉडल में डालते है तो पता चलता है कि यह स्रोत बहुत से लोगों की जान ले रहा है। ऐसे में इसपर भी ध्यान देना जरुरी हो जाता है।
ये स्टोरी डाउन टू अर्थ हिन्दी से साभार ली गई है।
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