जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें और शब्दकोश

क्या है जलवायु परिवर्तन? 

हमारी  जलवायु सूर्य, पृथ्वी और महासागरों, हवा, बारिश और बर्फ, तापमान, आर्द्रता,  वायुमंडलीय दबाव, समुद्र के तापमान, आदि से जुड़ी हुई प्रणाली है। इसमें विशेष रूप से औसत वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि , दुनिया के किसी हिस्से में बारिश के पैटर्न में आया दीर्घकालिक बदलाव और मौसम यानी सर्दी/ गर्मी के  ग्राफ में असामान्य परिवर्तन ही सरल शब्दों में जलवायु परिवर्तन है। उदाहरण के लिए, प्रशांत सागर का बढ़ता तापमान ऐसे टाइफून (चक्रवात) को जन्म देता है जो अधिक प्रभावी है और अधिक बारिश का कारण बनता है जिससे अधिक नुकसान पहुंचाता है, साथ ही यह अंटार्कटिका की बर्फ को पिघलाने वाली वैश्विक महासागरीय धाराओं को भी प्रभावित करता है। इससे धीरे-धीरे समुद्र स्तर इतना बढ़ सकता है कि न्यूयॉर्क जैसा शहर पानी में समा जाएगा। अब सवाल उठता है कि आखिर क्या  है “ग्लोबल वार्मिंग” ।

“ग्लोबल वार्मिंग” – ग्लोबल वार्मिंग औद्योगिक क्रांति के बाद से औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को दर्शाती है। कुछ गैसें, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन, पृथ्वी के वातावरण में सूरज की गर्मी को अपने अंदर रोकती हैं। ये ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से भी मौजूद हैं।

1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हो चुकी है। मानव विकास की तेज़ रफ़्तार ने पृथ्वी पर ग्रीन  हाउस गैसों की मात्रा और घनत्व को  तेज़ी से बढाया है जिसकी वजह से धरती गर्म हो रही है।  कम से कम पिछले दो हजार सालों में किसी अन्य पचास वर्ष के कालखंड में धरती का तापमान इतनी तेजी से नहीं बढ़ा, जितना कि यह 1970 के बाद से बढ़ा है । 

औद्योगिक क्रांति (1750) के बाद से जिस गति से वायुमंडलीय कार्बन डाऑक्साइड ( जो ग्रीन  हाउस गैस में से एक है ) वृद्धि हुई है, वह पिछले 8,00,000 वर्षों के दौरान किसी भी समय की तुलना में कम से कम दस गुना तेज है, और पिछले 5.6 करोड़ वर्षों की तुलना में चार से पांच गुना तेज है। 

अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। जवाब भी किसी से छिपा नहीं है और अक्सर लोगों की ज़बान पर होता है ‘ग्रीन हाउस इफेक्ट’।

क्या है ये ग्रीन हाउस इफेक्ट?

पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ग्रीन हाउस गैस प्रभाव को आसान भाषा में कहें तो इन गैसों के कारण धरती पर पहुंचने वाली सूरज की गर्मी वातावरण में फंसी रह जाती है और बाहर नहीं निकल पाती जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग होती है। जैसे बन्द कार को धूप में खड़ा कर दें तो उसके भीतर तापमान बहुत बढ़ जाता है। 

इसी लिये इसे ग्लास हाउस इफेक्ट भी कहा जाता है। ये गैसे वातावरण में जितना बढ़ेंगी उतनी ही ग्लोबल वॉर्मिंग होगी। 

क्या ये गर्मी ज़रूरी है?

सूरज की जो ऊर्जा पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है, उसके कारण पृथ्वी की सतह गर्म रहती है। अगर ये सतह नहीं होती तो धरती 30 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा ठंडी होती। मतलब साफ है कि अगर ग्रीनहाउस गैसें नहीं होतीं तो पृथ्वी पर जीवन नहीं होता। लेकिन किसी भी चीज़ की अधिकता बुरी है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसें वातावरण में छोड़ रहे हैं (जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं), उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही है। 

किस गैस से है सबसे ज़्यादा ख़तरा?

इनमें सबसे ख़तरनाक है कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना। कार्बन डाइऑक्साइड तब बनती है जब हम जीवाश्म ईंधन जलाते हैं. मसलन- कोयला, तेल या गैस। जंगलों की कटाई ने भी इस समस्या को और बढ़ाया है। जो कार्बन डाइऑक्साइड पेड़-पौधे सोखते थे, वो भी वातावरण में घुल रही है। मानवीय गतिविधियों से दूसरी ग्रीनहाउस गैसों मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ा है, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इनकी मात्रा बहुत कम है।

आपके लिए जानना ज़रूरी है कि पहली औद्योगिक क्रांति 1765  में शुरू होने के  लगभग एक सदी बाद 1870 में दुनिया दूसरी औद्योगिक क्रांति से गुजरी है।

 औद्योगिक क्रांति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। मीथेन का स्तर 140 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आठ लाख वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर है।

लेकिन तापमान बढ़ने के सबूत क्या हैं?

उन्नीसवीं सदी के तापमान के आंकड़ों पर एक नज़र डाली जाए तो साफ़ समझ आ जायेगा कि पिछले 100 सालों में पृथ्वी का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ा। इस तापमान का 0.6 डिग्री सेल्सियस तो पिछले तीन दशकों में ही बढ़ा है।

उपग्रह से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में समुद्र के जल स्तर में सालाना 3 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है। सालाना 4 प्रतिशत की रफ़्तार से ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

भविष्य में कितना बढ़ेगा तापमान?

2013 में जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरराष्ट्रीय समिति ने कंप्यूटर मॉडलिंग के आधार पर संभावित हालात का पूर्वानुमान लगाया था। उनमें से एक अनुमान सबसे अहम था कि वर्ष 1850 की तुलना में 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा।

यहाँ तक कि अगर हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अभी भारी कटौती कर भी लें तब भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखते रहेंगे, खासकर हिमखंडों और ग्लेशियर्स पर।

हालांकि अब नये शोध बता रहे हैं कि अब ग्लोबल इमीशन में तेज़ी से कटौती नहीं की गई तो 1.5 डिग्री का बैरियर इस सदी के मध्य तक ही टूट जायेगा।  विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि अगले पांच सालों में कोई एक साल हो सकता है जब धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री हो जाये। 

जलवायु परिवर्तन का हम पर क्या असर होगा?

असल में कितना असर होगा इस बारे में सीधे तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल है। लेकिन हम देख ही रहे हैं कि पीने के पानी की कमी बढ़ रही है, खाद्यान्न उत्पादन में भी कमी हो रही है, बाढ़, तूफ़ान, सूखा और गर्म हवाएं चलने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। और ये सब वक़्त के साथ बद से बदतर होता जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर ग़रीब मुल्कों पर पड़ रहा है क्योंकि उनके पास पहले से ही बुनियादी संसाधन नहीं है और अगर ऐसे में उन्हें प्राक्रतिक आपदाओं का सामना करना पड़े तो मुसीबत बढ़ेगी ही उनकी। इंसानों और जीव जंतुओं कि ज़िंदगी पर सीधा असर पड़ रहा है जलवायु परिवर्तन से। ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा।

शब्दकोश 

एडाप्टेशन/अनुकूलन 

वह गतिविधियां जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करती हैं। जैसे बढ़ते समुद्र स्तर से बचने के लिए बांध जैसी ऊंची दीवारों का निर्माण या उन फसलों को उगाना जो उच्च तापमान और सूखे को झेलने में सक्षम हों।

एडाप्टेशन फंड/अनुकूलन कोष 

यह परियोजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन लिए एक कोष है जो विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने में मदद करता है। इसे क्लीन डेव्लपमेंट मैकानिज़म जैसे उत्सर्जन में कमी के कार्यक्रमों से प्राप्त आय के एक हिस्से द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।

अनेक्स्शर 1 कंट्रीज़/अनुबंध I देश 

वह औद्योगिक देश जिन्होंने क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई थी। इनका कुल उत्सर्जन, 2008-2012 की अवधि के बीच 1990 के स्तर से औसतन 5.2% कम होना चाहिए।

अनेक्स्शर 2 कंट्रीज़/ अनुलग्न II देश 

वह देश जिन पर क्योटो प्रोटोकॉल के तहत विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का विशेष दायित्व है। यह समूह अनुबंध I देशों का एक उप-खंड है।

एंथ्रोपोजेनिक क्लाइमेट चेंज/मानवजनित जलवायु परिवर्तन 

प्राकृतिक प्रक्रियाओं के विपरीत मानव गतिविधि के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन को मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन कहते हैं।

एओसिस 

यह एलायंस ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स का लघु स्वरूप है। एलायंस ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स का मतलब हुआ छोटे द्वीपों का समूह। इसमें 42 द्वीप और तटीय राज्य शामिल हैं जो ज्यादातर प्रशांत और कैरिबियन में हैं। AOSIS के सदस्य कुछ ऐसे देश हैं जिनके ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित होने की संभावना है। मालदीव और कुछ बहामा जैसे निचले द्वीपों का अस्तित्व बढ़ते जल से खतरे में है।

एआर4 /आसेस्मेंट रिपोर्ट 4/चौथी आंकलन रिपोर्ट

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी), या जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल,  द्वारा 2007 में प्रकाशित चौथी आकलन रिपोर्ट ने दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की स्थिति का आकलन किया और उसका सारांश बताया। इस रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि इस बात की कम से कम 90% संभावना थी कि 20 वीं शताब्दी के मध्य से वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि मुख्य रूप से मनुष्य की गतिविधि के कारण हुई थी।

एआर5 /आसेस्मेंट रिपोर्ट5/पाँचवीं आंकलन रिपोर्ट

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 2013 और 2014 में प्रकाशित हुई पांचवीं आकलन रिपोर्ट कहती है कि वैज्ञानिक इस बात से 95% आश्वस्त हैं कि 1950 के दशक से अब तक मनुष्य ही ग्लोबल वार्मिंग का “प्रमुख कारण” हैं।

एटमोसफेरिक एरोसोल/वायुमंडलीय एरोसोल 

निचले वायुमंडल में तैरते वो सूक्ष्म कण जो सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करते हैं। ये आमतौर पर ग्रह पर शीतलन प्रभाव डालते हैं और ग्लोबल वार्मिंग को कम कर सकते हैं। वे वातावरण में बादलों, कोहरे, और वर्षा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बी

बाली एक्शन प्लान/बाली कार्य योजना 

यह दिसंबर 2007 में बाली में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में तैयार की गई वह योजना है जो बाली रोडमैप का हिस्सा है। इस कार्य योजना के अंतर्गत एक वर्किंग ग्रुप की स्थापना की गयी। इस वर्किंग ग्रुप की स्थापना का उद्देश्य था ग्रीनहाउस गैस इमीशन में कमी के लिए एक आने वाले समय में भी प्रासंगिक रहने वाले वैश्विक स्तर के लक्ष्य और साथ ही उसके शमन, अनुकूलन, वित्त, और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में लंबे समय की साझा कार्रवाई के लिए साझा दृष्टिकोण को परिभाषित करना।

बाली रोडमैप 

क्योटो प्रोटोकॉल के बाद ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के आगे के प्रयासों पर 2009 में कोपेनहेगन में एक समझौते का मार्ग प्रशस्त करने के लिए, दिसंबर 2007 में बाली में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में तैयार की गई एक योजना। इस रोडमैप ने दो वर्किंग ग्रुप्स को नतीजे दिखाने की समय सीमा दी। पहला था बाली एक्शन प्लान और दूसरा था 2012 के बाद अनुबंध I देशों द्वारा प्रस्तावित एमिशन में कटौती पर हो रही चर्चा का मुद्दा।

बेसलाइन कट्स/ कटौती का आधार साल

यह बेसलाइन वह वर्ष हुआ जिसके सापेक्ष देश उत्सर्जन में कमी के अपने लक्ष्य को मापते हैं। क्योटो प्रोटोकॉल 1990 का उपयोग करता है। कुछ देश बाद की आधार रेखा का उपयोग करना पसंद करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में जलवायु परिवर्तन कानून, उदाहरण के लिए, 2005 की आधार रेखा का उपयोग करता है।

बायो फ्युल/ जैव ईंधन 

वह ईंधन जो जैविक स्रोतों से प्राप्त हुआ हो। इसमें जिसमें मक्का और गन्ना जैसी फसलें और कुछ प्रकार के अपशिष्ट शामिल हैं।

ब्लैक कार्बन 

वह कालिख जो जीवाश्म ईंधन, जैव ईंधन और बायोमास (लकड़ी, पशु गोबर, आदि) के अधूरे दहन से उत्पन्न होती है। यह सबसे शक्तिशाली जलवायु-वार्मिंग एरोसोल है। ग्रीनहाउस गैसों के विपरीत ये कण सूर्य के प्रकाश की सभी तरंग दैर्ध्य या वेवलेंथ को सोख लेते हैं और फिर इस ऊर्जा को अवरक्त या इन्फ्रा रेड विकिरण के रूप में फिर से एमिट करते हैं।

बिज़नेस ऐज़ यूज़ुयल/जस का तस

यह भविष्य के इमिशन के अनुमानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक परिदृश्य है जिसमें यह माना जाता है कि समस्या को कम करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई या कोई नयी कार्यवाई नहीं हुई। 

सी

कैप एंड ट्रेड 

यहाँ कैप से आशय है सीमा। ट्रेड मतलब व्यापार। यह एक उत्सर्जन व्यापार योजना है जिसके तहत देश एक्सचेंज के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए भत्ते खरीद या बेच सकते हैं। जारी किए गए भत्तों की मात्रा कैप तय कर देती हैं।

कार्बन कैप्चर और स्टोरेज 

बिजली संयंत्रों जैसे बड़े एमिशन स्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड गैस का संग्रह और परिवहन को कार्बन कैप्चर और स्टोरेज कहते हैं । गैसों को फिर गहरे भूमिगत जलाशयों में भर दिया जाता है। 

कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) 

कार्बन डाईऑक्साइड पृथ्वी के वायुमंडल में पायी जाने वाली एक गैस है। यह प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होती  है और जीवाश्म ईंधन जलाने जैसी मानवीय गतिविधियों का उप-उत्पाद भी है। यह मानव गतिविधि द्वारा उत्पादित प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है।

कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) ईक्विवेलेंट/ कार्बन डाईऑक्साइड समकक्ष 

यह वो छह ग्रीनहाउस गैसें हैं जिन्हें क्योटो प्रोटोकॉल में चिन्हित किया गया इनकी ग्लोबल वार्मिंग क्षमता के लिए। गैसों के इस मिक्स्चर के कुल वार्मिंग प्रभाव को अक्सर कार्बन डाईऑक्साइड समकक्ष के रूप में बताया जाता है। 

कार्बन फुटप्रिंट 

यह एक निश्चित अवधि में किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा उत्सर्जित कार्बन की मात्रा या उत्पाद के निर्माण के दौरान उत्सर्जित कार्बन की मात्रा है।

कार्बन ईंटेंसिटी/ कार्बन तीव्रता 

यह माप की एक इकाई है। इसकी मदद से सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई के सापेक्ष किसी देश द्वारा उत्सर्जित कार्बन की मात्रा को नापा जाता है।

दूसरी भाषा में किसी देश के सारे उत्सर्जन को उसकी जीडीपी से विभाजित करने पर हमें कार्बन तीव्रता पता चलती है। 

कार्बन लीकेज/ कार्बन रिसाव 

यह उस परिस्थिति को कहते हैं जब कोई उद्योग उन देशों में स्थानांतरित हो जाता है जहां उत्सर्जन व्यवस्था कमजोर होती है, या अस्तित्वहीन होती है।

कार्बन न्यूट्रल/ कार्बन तटस्थता  

एक ऐसी प्रक्रिया या परिस्थिति है जिसमें CO2 का नेट इमिशन नहीं होता। मतलब जितना उत्सर्जन हो रहा है, उतना ही सोखा  जा रहा हो या निकलने से बचा जा रहा हो तो उस परिस्थिति को कार्बन न्यूट्रल होना कहेंगे।

कार्बन ऑफ़सेटिंग 

यह CO2 को वातावरण से बाहर निकालने के प्रयासों में हिस्सा लेकर या फंडिंग करके CO2 के एमिशन की भरपाई करने का एक तरीका है। ऑफसेटिंग में अक्सर आपकी गतिविधि द्वारा उत्पादित उत्सर्जन के बराबर उत्सर्जन को बचाने के लिए कहीं और की किसी अन्य संस्था को भुगतान करना शामिल होता है।

कार्बन सेक्वेस्ट्रेशन/ कार्बन भंडारण

यह भंडारण स्वाभाविक रूप से भी हो सकता है। जैसे बायोमास बनने से पहले पेड़ पौधे CO2 को सोख कर रखते हैं। 

कार्बन सिंक 

ऐसी कोई भी प्रक्रिया, गतिविधि या तंत्र जो वातावरण से कार्बन को सोख लेते है, उसे कार्बन का सिंक कहा जाता है। सबसे बड़े कार्बन सिंक दुनिया के महासागर और जंगल हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं।

सर्टिफाइड एमिशन रिडक्शन (सीईआर) 

यह यूएन क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म प्रोग्राम के तहत ग्रीन हाउस गैस ट्रेडिंग क्रेडिट का एक यूनिट है। प्रत्येक सीईआर एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर होता है। विकासशील देश  उत्सर्जन में कमी के कार्यक्रमों में भाग लेकर सीईआर हासिल कर सकते हैं।

सीएफ़सी 

यह क्लोरोफ्लोरोकार्बन का संक्षिप्त नाम है। यह ग्रीनहाउस गैसों का एक समूह है जिसने समताप मंडल  के ओजोन क्षरण में योगदान दिया है। 

क्लीन कोल टेक्नॉलॉजी/ स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी 

वह प्रौद्योगिकी जो CO2 एमिशन किए बिना कोयले को जलाने में सक्षम बनाती है। वर्तमान में विकसित की जा रही कुछ प्रणालियाँ दहन से पहले CO2 को हटाती हैं, अन्य इसे बाद में हटा देती हैं। इस प्रौद्योगिकी के कम से कम एक दशक तक व्यापक रूप से उपलब्ध होने की संभावना नहीं।

क्लीन डेव्लपमेंट मेकेनिज़्म (सीडीएम) 

यह एक कार्यक्रम है जिसके अंतर्गत विकसित देश या कंपनियां विकासशील देशों में ग्रीनहाउस गैस एमिशन में कमी या या उसे हटाने की परियोजनाओं में निवेश करके क्रेडिट हासिल कर सकती हैं। इन क्रेडिट का उपयोग उत्सर्जन को ऑफसेट करने और देश या कंपनी को अपने अनिवार्य लक्ष्य से नीचे लाने के लिए किया जा सकता है।

क्लाइमेट चेंज/ जलवायु परिवर्तन 

जलवायु एक लंबे समय में या कुछ सालों में किसी स्थान का औसत मौसम है और जलवायु परिवर्तन उन्हीं औसत परिस्थितियों में बदलाव है।

डी

डीफोरेस्टेशन

जब पेड़ों की कटाई स्थायी रूप से जंगलों को हटा दे, उसे डीफोरेस्टेशन कहते हैं।

एमिशन ट्रेडिंग स्कीम/ उत्सर्जन व्यापार योजना (ईटीएस) 

यह एक योजना है जिसके अंतर्गत ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने के लिए एक कैप और ट्रेड दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में व्यापार और/या देशों के बीच एमिशन परमिट के व्यापार की अनुमति होती है। सबसे अच्छा विकसित उदाहरण यूरोपीय संघ की व्यापार योजना है, जिसे 2005 में शुरू किया गया था।

ईयू बर्डन-शेयरिंग समझौता 

यह एक राजनीतिक समझौता है जो यूरोपीय संघ को क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करने के लिए किया गया था। 

एफ

फीडबैक लूप 

फीडबैक लूप में, पृथ्वी पर बढ़ते तापमान पर्यावरण को इस तरह से बदलते हैं जिससे वार्मिंग की दर प्रभावित होती है। फीडबैक लूप सकारात्मक  या नकारात्मक हो सकता है। आर्कटिक की बर्फ का पिघलना सकारात्मक प्रक्रिया का एक उदाहरण प्रदान करता है। जैसे ही आर्कटिक महासागर की सतह पर बर्फ पिघलती है, सूर्य की गर्मी को वापस अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित करने के लिए सफेद बर्फ का एक छोटा क्षेत्र होता है और इसे सोखने के लिए अधिक खुला, गहरा पानी होता है। जितनी कम बर्फ होती है, उतना ही पानी गर्म होता है, और शेष बर्फ उतनी ही तेजी से पिघलती है।

फ्लेकसिबल मेकेनिज़्म/ लचीले तंत्र 

यह वह तंत्र या साधन हुआ जिससे भुगतान कर तमाम देश और कंपनियां अपने एमिशन को कम करने के लक्ष्यों को दूसरे देशों और कंपनियों को भुगतान कर, उनसे एमिशन कम करा के हासिल करते हैं। एक लिहाज से यह तंत्र एमिशन का व्यापार है, जहां कंपनियां या देश प्रदूषित करने के लिए परमिट खरीदते और बेचते हैं। क्योटो प्रोटोकॉल दो लचीले तंत्र स्थापित करता है जो अमीर देशों को विकासशील देशों में उत्सर्जन में कमी परियोजनाओं को वित्त पोषित करने में सक्षम बनाता है – संयुक्त कार्यान्वयन (जेआई) और स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम)।

फोसिल फ़्यूल/ जीवाश्म ईंधन 

जिन प्राकृतिक संसाधनों, जैसे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस, जिसमें हाइड्रोकार्बन होते हैं, उन्हें फोसिल फ़्यूल या जीवाश्म ईंधन कहा जाता है। ये ईंधन लाखों वर्षों में पृथ्वी में बनते हैं और जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं।

जी

G77 

चीन के साथ संबद्ध विकासशील देशों के लिए मुख्य वार्ता गुट (G77+चीन)। G77 में 130 देश शामिल हैं, जिनमें भारत और ब्राजील, अधिकांश अफ्रीकी देश, छोटे द्वीप राज्यों का समूह (AOSIS), खाड़ी के राज्य और कई अन्य, अफगानिस्तान से लेकर जिम्बाब्वे तक शामिल हैं।

जियोलोजिकल सेक्वेस्ट्रेशन/ भूवैज्ञानिक भंडारण 

भूमिगत भूवैज्ञानिक संरचनाओं में कार्बन डाइऑक्साइड के भरने की प्रक्रिया को जियोलोजिकल सेक्वेस्ट्रेशन या भूवैज्ञानिक भंडारण कहते हैं। जब CO2 को घटते तेल क्षेत्रों में इंजेक्ट किया जाता है या भरा जाता है तो यह अधिक तेल निकालने में मदद कर सकता है।

ग्लोबल एव्रेज टेंपरेचर/ वैश्विक औसत तापमान 

यह पृथ्वी की सतह का तीन स्रोतों से लिया औसत तापमान है। यह तीन मुख्य स्रोत हैं: उपग्रह, 3,000 से अधिक सतह तापमान अवलोकन स्टेशनों के नेटवर्क से मिली मासिक रीडिंग, और व्यापारी और नौसैनिक जहाजों से लिए गए समुद्री सतह के तापमान।

ग्लोबल एनेर्जी बजट/ वैश्विक ऊर्जा बजट 

सूरज की रोशनी से पृथ्वी पर पहुंचने वाली और यहां से बाहर जाने वाली ऊर्जा के बीच के संतुलन को ग्लोबल एनेर्जी बजट कहते हैं। वर्तमान वैश्विक जलवायु प्रणाली को बढ़ते ग्रीनहाउस गैस स्तरों के अनुकूल होना चाहिए और, लंबी अवधि में, पृथ्वी को उसी दर से ऊर्जा से छुटकारा पाना चाहिए जिस दर से वह सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है।

ग्लोबल डिमिंग 

पृथ्वी की सतह पर सूर्य के प्रकाश में व्यापक कमी देखी गई है और इसे ग्लोबल डिमिंग कहते हैं। ग्लोबल डिमिंग का सबसे संभावित कारण मानव गतिविधियों से बने सूक्ष्म एयरोसोल कणों की वजह से सूर्य के प्रकाश को सही से पृथ्वी तक न पहुँचना है। 

ग्लोबल वार्मिंग 

हाल के दशकों में वैश्विक औसत तापमान में लगातार वृद्धि, जो विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्य रूप से मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण है, उसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। 

ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP)

एक ग्रीनहाउस गैस की एक निश्चित समय अवधि में गर्मी को सोखने और वातावरण को गर्म करने की क्षमता को ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल कहते हैं। इसे कार्बन डाइऑक्साइड के समान द्रव्यमान के सापेक्ष मापा जाता है, जिसका GWP 1.0 है। उदाहरण के लिए, मीथेन में 100 वर्षों में 25 का GWP है।

ग्रीनहाउस गैसें (जीएचजी) 

वह प्राकृतिक और औद्योगिक गैसें जो पृथ्वी से गर्मी को सोखती हैं और उसकी सतह को गर्म करती हैं। क्योटो प्रोटोकॉल छह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को प्रतिबंधित करता है: प्राकृतिक (कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन) और औद्योगिक (पेरफ्लूरोकार्बन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन और सल्फर हेक्साफ्लोराइड)।

ग्रीनहाउस इफेक्ट

वातावरण में कुछ गैसों का वो प्रभाव जिसके चलते सौर विकिरण पृथ्वी को गर्म करते हैं और फिर कुछ गर्मी को पृथ्वी के वातावरण से बाहर निकलने से रोकता है। 

एच

हॉकी स्टिक 

यह 1998 में प्रकाशित एक ग्राफ को दिया गया नाम है जो पिछले 1,000 वर्षों में उत्तरी गोलार्ध में औसत तापमान को दर्शाता है। यह रेखा पिछले 100 वर्षों तक लगभग सपाट रही मगर उसके बाद अचानक तेजी से ऊपर की ओर झुकती है। इस विचार का समर्थन करने के लिए ग्राफ को सबूत के रूप में उद्धृत किया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग एक मानव निर्मित घटना है, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक तापमान का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल किए गए डेटा और कार्यप्रणाली को चुनौती दी है। (इसके रचनाकारों, माइकल ई. मान, रेमंड एस. ब्रैडली और मैल्कम के. ह्यूजेस के नाम पर इसे MBH98 के नाम से भी जाना जाता है।)

आई

आईपीसीसी 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम संगठन द्वारा स्थापित एक वैज्ञानिक निकाय है। यह जलवायु परिवर्तन के लिए प्रासंगिक नवीनतम वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक कार्यों की समीक्षा और मूल्यांकन करता है, लेकिन अपना स्वयं का शोध नहीं करता है। आईपीसीसी को 2007 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

जे

जाइंट इम्प्लिमैनटेशन/ संयुक्त कार्यान्वयन (JI) 

यह दो पक्षों के बीच का एक समझौता है जिसके तहत वह पक्ष जो क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अपने उत्सर्जन में कमी को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है, उसे दूसरे पक्ष की उत्सर्जन हटाने की परियोजना से उत्सर्जन में कमी की इकाइयाँ मिल जाती हैं। यह विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित करते हुए क्योटो समझौतों को पूरा करने का एक लचीला और लागत प्रभावी तरीका है।

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क्योटो प्रोटोकॉल 

यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन से जुड़ा एक प्रोटोकॉल है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करता है। औद्योगिक देशों ने 2008-2012 की पांच साल की अवधि के दौरान अपने संयुक्त उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 5.2% कम करने पर सहमति व्यक्त की। 1997 में क्योटो, जापान में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सरकारों द्वारा यह सहमति व्यक्त की गई थी, लेकिन 2005 तक कानूनी रूप से लागू नहीं हुई थी। देशों के एक अलग समूह ने 2013 में दूसरी प्रतिबद्धता अवधि पर सहमति व्यक्त की जो 2020 तक चलेगी।

एल

एलडीसी 

लीस्ट डेव्लप्ड कंट्रीस या एलडीसी देश दुनिया के सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एलडीसी की वर्तमान सूची में 49 देश शामिल हैं – अफ्रीका में 33, एशिया और प्रशांत में 15 और लैटिन अमेरिका में एक।

एम

मेजर इकोनोमीज़ फोरम ऑन एनेर्जी अँड क्लाइमेट/ ऊर्जा और जलवायु पर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का फोरम 

यह 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा कोपेनहेगन में बातचीत किए जाने वाले समझौते के तत्वों पर चर्चा करने के लिए स्थापित एक मंच है। इसके सदस्य – ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, यूके और यूएस – कुल ग्रीनहाउस गैस एमिशन में 80% के लिए ज़िम्मेदार हैं। यह फोरम पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा शुरू की गई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की बैठक का एक संशोधन है, जिसे कुछ देशों ने संयुक्त राष्ट्र वार्ता को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा था।

मीथेन 

मीथेन दूसरी सबसे महत्वपूर्ण मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस है। इसके स्रोतों में प्राकृतिक दुनिया (आर्द्रभूमि, दीमक, जंगल की आग) और मानव गतिविधि (कृषि, अपशिष्ट डंप, कोयला खनन से रिसाव) दोनों शामिल हैं।

मिटिगेशन/ शमन 

यह वो कार्रवाई है जो मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन को कम करेगी। इसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों को सोखने की कार्रवाई शामिल है।

एन

नैचुरल ग्रीनहाउस एफेक्ट/ प्राकृतिक ग्रीनहाउस एफेक्ट या प्रभाव 

यह हमारे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का प्राकृतिक स्तर है, जो ग्रह को लगभग 30C अधिक गर्म रखता है जो कि जीवन के लिए आवश्यक है। जल वाष्प प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।

ओशन असीडीफिकेशन/ महासागरीय अम्लीकरण 

महासागर वातावरण से मानव निर्मित CO2 का लगभग एक-चौथाई सोख लेते हैं, जो प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन प्रभावों को कम करने में मदद करता है। हालाँकि, जब CO2 समुद्री जल में घुल जाती है, तो कार्बोनिक एसिड बनता है। औद्योगिक युग में कार्बन उत्सर्जन ने पहले ही समुद्री जल का पीएच 0.1 कम कर दिया है। महासागर के अम्लीकरण से समुद्री जीवों की उनके बाहरी आवरण और कंकाल संरचनाओं का निर्माण करने और प्रवाल भित्तियों को मारने की क्षमता कम हो सकती है, जो उन लोगों के लिए गंभीर प्रभाव डालते हैं जो मछली पकड़ने के मैदान के रूप में उन पर निर्भर हैं।

पी

पर केपिटा एमिशन/ प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 

किसी देश द्वारा जनसंख्या की एक इकाई के लिए उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैस की कुल मात्रा।

पीपीएम (350/450) प्रति मिलियन भागों के लिए एक संक्षिप्त नाम, आमतौर पर पीपीएमवी (वॉल्यूम द्वारा प्रति मिलियन भाग) के लिए संक्षिप्त रूप में उपयोग किया जाता है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने 2007 में सुझाव दिया था कि खतरनाक जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए दुनिया को ग्रीनहाउस गैस के स्तर को 450 पीपीएम सीओ2 के बराबर स्थिर करने का लक्ष्य रखना चाहिए। कुछ वैज्ञानिक, और कई देश जो जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं, तर्क देते हैं कि सुरक्षित ऊपरी सीमा 350ppm है। CO2 का वर्तमान स्तर केवल लगभग 380ppm है।

प्री इंडस्ट्रियल लेवेल्स ऑफ कार्बन डाइऑक्साइड/ कार्बन डाइऑक्साइड के पूर्व-औद्योगिक स्तर इसका आशय औद्योगिक 

क्रांति की शुरुआत से पहले वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर से है। यह स्तर लगभग 280 भाग प्रति मिलियन (मात्रा के अनुसार) होने का अनुमान है। वर्तमान स्तर लगभग 380ppm है।

आर

रिन्युबिल एनेर्जी

यह उन स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा है जिसमें उपयोग के बाद भी स्त्रोत की ऊर्जा उत्पादन क्षमता कम नहीं होती। सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले पांच नवीकरणीय या रिन्युबिल स्रोत हैं:, विंड, सोलर, माइक्रो हाइड्रो और भूतापीय/ जियोथर्मल  (पृथ्वी के भीतर से गर्मी) ।इनके अलावा जो पांचवां स्रोत है वह है  बायोमास यानी जैवपिंड को लेकर राये अलग अलग हैं कुछ इसे रिन्युबिल स्रोत नहीं मानते। 

रेड/ REDD 

वनों की कटाई और वन क्षरण से एमिशन को कम करने की एक अवधारणा जो विकासशील देशों को वनों को संरक्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करेगी।

एस

स्टर्न रिव्यू 

यह विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री लॉर्ड निकोलस स्टर्न के नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन के अर्थशास्त्र पर बनी एक रिपोर्ट का नाम है। इसे 30 अक्टूबर 2006 को प्रकाशित किया गया था और तर्क दिया गया था कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपटने की लागत अब समस्या को कम करने के लिए कार्रवाई करने से अधिक होगी।

टी

टेक्नॉलॉजी ट्रान्सफर/ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण 

वह प्रक्रिया जिसके द्वारा तकनीकी प्रगति विभिन्न देशों के बीच साझा की जाती है। विकसित देश, उदाहरण के लिए, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रयास में विकासशील देशों के साथ अप-टू-डेट रिन्युबिल  ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को साझा कर सकते हैं।

टिपिंग पॉइंट 

एक टिपिंग पॉइंट परिवर्तन के लिए एक दहलीज है, जहां पहुंचने पर एक ऐसी प्रक्रिया शुरू हो जाती है जहां से वापस पिछली स्थिति में आना मुश्किल होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अत्यावश्यक है कि नीति निर्माता अगले 50 वर्षों में वैश्विक कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को आधा कर दें या जोखिम वाले परिवर्तन जो अपरिवर्तनीय हो सकते हैं।

ट्वेंटी-ट्वेंटी-ट्वेंटी (20-20-20) 

यह यूरोपीय संघ द्वारा 2020 तक तीन लक्ष्यों तक पहुंचने की प्रतिज्ञा को संदर्भित करता है: (ए) 1990 के स्तर से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% की कमी; (बी) रिन्युबिल एनर्जी के उपयोग में खपत की गई कुल ऊर्जा के सापेक्ष 20% की वृद्धि; और (सी) ऊर्जा दक्षता में 20% की वृद्धि। 

यू

UNFCCC 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन 1992 के रियो डी जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अपनाए गए वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की एक श्रृंखला है। UNFCCC का उद्देश्य जलवायु प्रणाली के साथ “खतरनाक” मानवीय हस्तक्षेप को रोकना है। यह 21 मार्च 1994 को लागू हुआ और 192 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई।

डब्ल्यू  

वैदर/ मौसम 

तापमान, बादल, वर्षा, हवा और अन्य मौसम संबंधी स्थितियों के संबंध में वातावरण की मौजूदा स्थिति को मौसम कहते हैं। ध्यान रहे, जलवायु अधिक लंबी अवधि में औसत मौसम को कहते हैं।

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