बाढ़ का बढ़ता संकट: मौसम के बिगड़ते मिज़ाज की वजह से बाढ़ की ज़द में आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। फोटो: Network18

बारिश से होने वाली आपदा में हर साल जा रही हैं 2000 जानें

भारत में पिछले तीन साल में 6585 लोगों की जानें सिर्फ बारिश के कारण हुई आपदाओं में गई। यानी हर साल औसतन 2000 से अधिक लोग बरसात से मरे। सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। बिहार में इन तीन सालों में सबसे अधिक 970 लोग मरे जो कुल मौतों का 15% है। इसके बाद केरल में 756, पश्चिम बंगाल में 663, महाराष्ट्र में 522 और हिमाचल प्रदेश में 458 लोगों की जानें गईं।

चिन्ता की बात यह है कि 2040 तक भारत में बाढ़ की ज़द में रहने वाले लोगों की संख्या 6 गुना बढ़ जायेगी। जहां 1971 से 2004 के बीच ऐसे लोगों की संख्या करीब 37 लाख रही है वहीं 20 साल बाद यह संख्या 2.5 करोड़ होने की आशंका है।

जलवायु परिवर्तन: उत्तरी ध्रुव में भूख से 200 हिरनों की मौत

उत्तरी ध्रुव के एक द्वीप समूह में 200 से अधिक रेनडियर यानी हिरन मरे पाये गये। नॉर्वेजियन पोलर इंस्टिट्यूट के शोधकर्ताओं के मुताबिक पिछले जाड़ों में इन हिरनों की मौत भूख से हुई है। इस संस्थान के 3 रिसर्चर हिरनों की गिनती के लिये मिशन पर निकले थे और इन्हें 200 हिरन मरे मिले। इस टीम के प्रमुख एशिल्ड ऑनविक पीडरसन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से ध्रुवों पर होने वाली बरसात बढ़ गई है जो जाड़ों में वनस्पतियों के ऊपर आइस की एक परत जमा देती है। ज़ाहिर तौर पर इससे हिरनों के लिये जीन दुश्वार हो गया है।

एक दूसरे अध्ययन से पता चला है कि जीव जन्तु जलवायु परिवर्तन की रफ्तार से सामना नहीं कर पा रहे हैं। प्रभावित होने वाली प्रजातियों में गौरेया, हिरन और मैग्पाई चिड़िया शामिल है।

समुद्र सतह में बढ़ोतरी के बारे में बताना 2060 तक मुमकिन नहीं: शोध

इस सदी के अंत तक समुद्र सतह में कितनी बढ़ोतरी होगी इस पर कई लोगों का जीवन टिका है लेकिन न्यू ब्रन्सविक की रटगर्स यूनिवर्सिटी के एक शोध में कहा गया है कि इस सवाल का सही जवाब 2060 पता नहीं चलेगा क्योंकि दक्षिणी ध्रुव पर जमी बर्फ को लेकर अभी काफी अनिश्चितता है। शोधकर्ता साल 2100 तक समुद्र सतह को लेकर दो स्थितियों की भविष्यवाणी करते रहे हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग पर काबू रखा गया तो यह उछाल 2 फीट तक रोका जा सकता है वरना समुद्र सतह में वृद्धि 6 फीट की भी हो सकती है लेकिन यह अनुमान कई दशकों से समुद्री बर्फ को लेकर किये जा रहे अध्ययन पर आधारित है।  

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