आधुनिक पैमाने: IPCC ने ग्रीन हाउस गैस और ग्लोबल वॉर्मिंग को मापने के लिये नये आधुनिक पैमाने इस्तेमाल करने का फैसला किया है। फ़ोटो: Wikipedia

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन मापने के लिये संयुक्त राष्ट्र की नई गाइडलाइन

इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने कहा है कि पुराने हो चुके मानकों और तरीकों की जगह अब ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को मापने के लिये वैज्ञानिक शोध के आधार पर बने नये मानकों का प्रयोग होगा। अब तक इस्तेमाल हो रहे नियम 2006 की गाइडलाइंस पर आधारित थे।

नये मानक ऊर्जा के अलग अलग क्षेत्रों में उत्सर्जन के स्रोतों के अलावा औद्योगिक प्रक्रिया, कचरे, कृषि और जंगल से जुड़े हैं। इन नये नियमों पर चर्चा के लिये जापान के कोयोटो में 5 दिन की महासभा हुई। नई गाइडलाइंस से सभी देशों को ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरे का पता लगाने और उससे लड़ने में सुविधा होगी। 

लाखों प्रजातियों पर ख़तरे के पीछे “अंधाधुंध विकास दर” का पागलपन: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट

जैव विविधता पर शोध करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था IPBES का कहना है कि दुनिया में मौजूद जन्तुओं और वनस्पतियों की 80 लाख में से 10 लाख प्रजातियों पर ख़तरे के पीछे विकास की अंधी दौड़ है। अपनी ताज़ा रिपोर्ट में संस्था ने औद्योगिक कृषि और मछलीपालन को इस संकट के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार माना है और कहा है कि दुनिया की सरकारें और औद्योगिक कंपनियां “निहित स्वार्थ” के लिये कृषि, ऊर्जा और खनन जैसे क्षेत्रों में सुधारवादी कदम रोक रहे हैं। जैव विविधता को बचाने की कोशिशों के तहत अगले साल चीन में संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों की बैठक होगी।                                                                                               

जियो – इंजीनियरिंग से कम होगा धरती का तापमान!

कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वॉर्मिंग का सामना करने के लिये क्रांतिकारी प्रयोग करने की सोची है। वैज्ञानिक ध्रुवों पर पिघल रही बर्फ को फिर से जमाने और वातावरण में पिछले कई दशकों में इकट्ठा हो चुके कार्बन को हटाने के प्रयोग की तैयारी में हैं। इन प्रयोगों के तहत ध्रुवों के ऊपर बादलों में महीन नमक के कण प्रविष्ट कराने से लेकर कोल प्लांट्स ने निकल रही कार्बन को सोख कर उसे सिंथेटिक ईंधन में बदलने जैसे तरीके शामिल हैं। हालांकि कैंब्रिज के जानकार दावा कर रहे हैं कि अगले 10 सालों में होने वाले ये प्रयोग मानवता के आने वाले 10 हज़ार सालों की नियति तय करेंगे लेकिन विशेषज्ञों का एक धड़ा ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के ऐसे तरीकों को सही नहीं मानता है। 

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