रफ्तार पर ब्रेक: आयात शुल्क और कम बिक्री दरों ने निवेशकों की दिलचस्पी घटाई है लेकिन सरकार कहती है सौर ऊर्जा मिशन में तय लक्ष्य हासिल कर लिये जायेंगे। फोटो - IndiaTimes

सौर ऊर्जा की मुहिम को लगा झटका, फिर भी सरकार ने कहा – हौसले हैं बुलंद

इस साल के पहले क्वार्टर में (Q-1, 2019) में पिछले साल की पहली तिमाही (Q-1, 2018) के मुकाबले 49% कम क्षमता के सोलर पैनल लगे हैं। हालांकि पिछले साल की आखिरी तिमाही (Q-4, 2018) के मुकाबले 4% की मामूली बढ़ोतरी हुई। इस साल की शुरुआत में करीब 800 मेगावॉट की नीलामी रद्द करनी पड़ी क्योंकि कंपनियों को बिजली खरीद की सस्ती दरें मंज़ूर नहीं थी।

रूफटॉप सोलर में भी 33% की गिरावट दर्ज की गई है। भारत ने 2022 तक कुल 40 GW रूफ टॉप सोलर लगाने की बात कही है जिसमें अभी तक केवल 9 GW ही लग पाया है। हालांकि ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि भारत ने साल 2022 तक 175 GW साफ ऊर्जा के संयंत्र लगाने का जो वादा किया है वह पूरा कर लिया जायेगा।

सौर ऊर्जा: कीमत गिरने का सिलसिला जारी

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (IRENA) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि सोलर पावर लगातार सस्ती हो रही है और कोयला बिजलीघरों को टक्कर दे रही है। साल 2018 के हालात पर प्रकाशित रिपोर्ट कहती है कि साफ ऊर्जा के सभी संयंत्रों से मिलने वाली बिजली की कीमत गिरी है। पिछले साल जहां विश्व भर में सौर ऊर्जा की कीमत में 26 प्रतिशत की गिरावट आई वहीं बायोएनर्जी 14% सस्ती हुई। इसी तरह सोलर फोटो वोल्टिक (PV) और पवन ऊर्जा में 13% और हाइड्रोपावर की कीमत में 12% की कमी आई।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सोलर (पैनल या प्लांट) को लगाने की कीमत में 2010 और 2018 के बीच 80% प्रतिशत गिरावट आई। धीरे धीरे उद्योग जगत में इसका असर दिख रहा है। पिछले हफ्ते भारत में सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति ने ऐलान किया कि वह इसी वित्तीय वर्ष में अपने प्लांट्स में सोलर एनर्जी का इस्तेमाल शुरू कर देगी।

महाराष्ट्र: सरकार सूखा पीड़ित किसानों को देगी सोलर पम्प, CSE ने कहा – नीति है नाकाम

महाराष्ट्र सरकार सूखा पीड़ित विदर्भ में 3900 किसानों को सोलर पम्प देगी। इसके लिये करीब 40 हज़ार किसानों ने मांग की थी। सरकार 3 HP क्षमता का ये पम्प 16,560 रुपये में दे रही है। जबकि उसकी असल कीमत इसकी 10 गुना है। मुख्यमंत्री सौर कृषि पम्प योजना के तहत महाराष्ट्र सरकार ये सुविधा एक लाख किसानों तक चरणबद्ध तरीके से पहुंचाना चाहती है।

उधर दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट ने एक सर्वे के आधार पर कहा है कि पम्प योजना नाकाम रही है। पानी के लगातार गिरते स्तर की वजह से पम्प का समुचित इस्तेमाल नहीं हो पाया और सिंचाई के घंटे भी कम हुये हैं।

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