अब तक 84: एक तो नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) बहुत फिसड्डी है और उस पर भी 102 में 18 राज्य अब तक इसका कोई खाका केंद्र को जमा नहीं कर पाये हैं। फोटो - IndiaTimes

देश के 84 शहरों ने जमा किया वायु प्रदूषण से निबटने का खाका

देश के 102 शहरों को 2024 तक वायु प्रदूषण के स्तर में 20%-30% कमी करनी है और इनमें से 84 शहरों ने केंद्र सरकार को अपनी योजना का खाका दे दिया है। केंद्र सरकार के इस साल घोषित किये गये नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत ये कदम उठाये जाने हैं हालांकि जानकार NCAP को बहुत ही ढुलमुल और शक्तिहीन कार्यक्रम बता रहे हैं क्योंकि भारतीय शहरों के प्रदूषण के स्तर को देखते हुये 20%-30% की कटौती बहुत कम है। इसके अलावा NCAP में अथॉरिटीज़ के पास किसी तरह की कानूनी ताकत नहीं है जो कि प्रदूषण करने वाले को दंडित कर सके। 

क्या प्रदूषण फैलाने वाले बिजलीघरों से हर्जाना वसूला जायेगा?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने यूपी-एमपी सीमा पर बसे सिंगरौली और सोनभद्र ज़िलों के पावर प्लांट्स से हो रहे प्रदूषण पर एक समिति का गठन किया है। इस कमेटी में पर्यावरण मंत्रालय के अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलावा यूपी और एमपी के प्रदूषण बोर्डों के अधिकारी होंगे। कोर्ट “प्रदूषण करने वाला जुर्माना अदा करे” नियम के तहत यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि वहां हुये नुकसान की भरपाई के लिये क्या किया जा सकता है। सिंगरौली-सोनभद्र में दर्जनों पावर प्लांट्स की वजह से दोनों राज्यों में काफी वायु और जल प्रदूषण हो चुका है।

एक दूसरे मामले में कोर्ट ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से नरेला और बवाना इलाके में प्रदूषण फैला रही प्लास्टिक यूनिटों पर कार्रवाई रिपोर्ट जमा करने को कहा है। इन यूनिटों पर औद्योगिक कूड़ा फैलाने और जलाने का आरोप है। 

अधिक वायु प्रदूषण से पैदायशी विकार और मौत का ख़तरा

अमेरिका की टेक्सस स्थित A&M यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में पता चला है कि हवा में मौजूद महीन हानिकारक कणों (PM 2.5) की अधिकता से जन्मजात विकार (डिफेक्ट) हो सकते हैं। मादा चूहों पर प्रदूषित हवा के प्रभावों का अध्ययन किया गया जिससे पता चला कि गर्भवती मां और उसके बच्चे पर प्रदूषण का प्राणघातक असर होता है। भारत और चीन में जाड़ों के दिनों में तो यह प्रभाव खासतौर से अधिक है।
उधर दिल्ली स्थित CSE की रिपोर्ट में पता चला है कि हर साल वायु प्रदूषण की वजह से 5 साल से कम उम्र के 1 लाख बच्चों की मौत हो रही है।

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