उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ऑर्किड की वह दुर्लभ प्रजाति पाई गई है जो 124 साल पहले सिक्किम में दिखी थी। इस प्रजाति की पहचान “लिपरिस पाइग्मिया” के नाम से की गई है। बताया जा रहा है कि इससे पहले यह प्रजाति 1896 में देखी गई थी। ऑर्किड पहाड़ी इलाकों में जून-जुलाई के वक्त खिलाने वाला दुर्लभ फूल है जिसके वजूद पर संकट को देखते हुये इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने अपनी रेड लिस्ट यानी विलुप्ति के संकट से घिरी प्रजाति में रखा है। हिमालय जैव विविधता का अनमोल खज़ाना है और इस पर छाये संकट की वजह से ऑर्किड जैसी प्रजाति का महत्व अधिक बढ़ जाता है। उत्तराखंड वन विभाग के फॉरेस्ट रेंजर हरीश नेगी और जूनियर रिसर्च फेलो मनोज सिंह का कहना है उन्होंने यह पुष्प चमोली ज़िले में सप्तकुंड के रास्ते में 3800 मीटर दिखा और वहां भेजे गये सेंपल की पुष्टि पुणे स्थित बॉटिनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कर दी है। प्रतिष्ठित फ्रेंच साइंस जर्नल रिचर्डियाना में इसे प्रकाशित किया गया है।
पिछले 50 साल में 60% जन्तुओं का खात्मा: रिपोर्ट
इंसान ने पिछले 50 साल में धरती की कुल 60% जन्तु आबादी को मिटा दिया है। इस विनाश लीला का शिकार पक्षियों के साथ-साथ मछलियां, सरीसृप और स्तनधारी सभी हुए हैं। दुनिया के 59 जीव विज्ञानियों की मदद से तैयार की गई WWF की ताज़ा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट बताती है कि 1970 से अब तक वर्टीब्रेट (यानी रीढ़ की हड्डी वाले) जीवों की संख्या में 60% से अधिक कमी आ गई है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि धरती पर जितने भी जीव हैं उनमें कशेरुकी जीव 98% हैं। खत्म हो चुके है। मछली, मेढक, हाथी, शेर, चीता और सांप जैसे जन्तु वर्टीब्रेट जीवों में आते हैं।
अमेरिका: पश्चिमी तट पर विनाशकारी आग धधकना जारी
अमेरिका के पश्चिमी तट पर करीब 32 लाख एकड़ में फैली आग लगातार धधक रही है। इसने पिछले महीने 19 लोगों की जान ले ली थी। यह आग भारत के तटीय राज्य गोवा के मुकाबले तीन गुना बड़े क्षेत्रफल में फैली है। कैलिफोर्निया के गर्वनर इसे “क्लाइमेट-इमरजेंसी” बताया है और कहा है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है या नहीं इस पर कोई दो राय नहीं होनी चाहिये। उधर जलवायु परिवर्तन की दलीलों का मज़ाक उड़ाते रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ख़राब अग्नि प्रबंधन को इस हालात के लिये ज़िम्मेदार बताया है।
जलवायु परिवर्तन: अगले 30 साल में 120 करोड़ होंगे विस्थापित
क्लाइमेट चेंज के बढ़ते असर के साथ अगले 30 सालों में 120 करोड़ लोगों को अपना वर्तमान बसेरा छोड़कर पलायन करना होगा। यह बात एक थिंक टैंक इकॉनोमिक्स एंड पीस (IEP) के शोध में कही गई है। यह शोध बताता है कि कुल 31 देशों में जहां क्लाइमेट क्राइसिस से निबटने का सामर्थ्य नहीं है वहां यह समस्या विकराल रूप में दिखेगा। नाइजीरिया, अंगोल और यूगांडा जैसे देशों के नाम इसमें शामिल है। शोध बताता है कि भारत और चीन जैसे देशों को सबसे अधिक जल संकट का सामना करना पड़ेगा।
लॉकडाउन के बावजूद ग्रीन हाउस इमीशन रिकॉर्ड स्तर पर
दुनिया के तमाम देशों में कोरोना महामारी के कारण लगाये गये लॉकडाउन के बावजूद इस साल ग्रीनहाउस गैसों का इमीशन रिकॉर्ड स्तर पर रहा है। यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि CO2 के ग्राफ में एक जगह गिरावट ज़रूर दिखी पर यह गिरावट कार्बन डाई ऑक्साइड को नियंत्रित करने के लिये काफी नहीं हैं। आज CO2 इमीशन दुनिया के 30 लाख सालों के सर्वाधिक स्तर पर है। यूएन की यह रिपोर्ट बताती है कि इस साल जुलाई में CO2 का स्तर 414.38 पार्ट प्रति मिलियन रहा जबकि पिछले साल यह नंबर 411.74 पीपीएम था।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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