आंखमिचौली: इस साल मॉनसून सीज़न में दो “रुकावटों” के कारण पूरे देश में मॉनसून में कमी दर्ज की गई पर अचानक बहुत पानी बरसने से कुछ इलाके बाढ़ में डूबे फोटो - Unsplash

मॉनसून में दूसरी “रुकावट” के बाद अगस्त में बारिश 33% कम

इस महीने मॉनसून में आई “रुकावट” के बाद पूरे देश में बरसात में 33% की कमी रिकॉर्ड की गई है। मौसम विभाग के मुताबिक अगस्त के पहले पखवाड़े में मॉनसून “दबा हुआ” रहा है। इस कारण मध्य भारत में वर्षा में सबसे अधिक कमी (51%) है। इसके बाद प्रायद्वीप के हिस्सों में  (37.7%)  और फिर उत्तर पश्चिम भारत (22%) में बरसात में कमी रिकॉर्ड की गई। पूर्वी और उत्तर-पूर्व में यह कमी 5% है।  यह मॉनसून में दूसरा “ब्रेक” है। इससे पहले 29 जून से 11 जुलाई के बीच ऐसी रुकावट दर्ज हुई थी। जानकार कहते हैं कि इस दौरान हिमालय के भावर वाले इलाकों तक ही मॉनसून सीमित रहा है। वैसे 19 अगस्त को मॉनसून फिर से बहाल हुआ लेकिन मौसम विभाग कहता है कि 24 अगस्त के बाद यह फिर कमज़ोर हो जायेगा। 

नदियों से समुद्र में पहुंच रही हैं ज़हरीली भारी धातुयें: शोध  

दुनिया की बड़ी नदियां समुद्र में ज़हरीली भारी धातुयें पहुंचा रही हैं जिसका मानव स्वास्थ्य और समुद्री जीवों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। अमेरिका के येल स्कूल ऑफ इन्वायरेंमेंट के प्रोफेसर की अगुवाई में हुये शोध में पता चला है कि तटीय इलाकों में इसका प्रभाव सबसे अधिक है। पहले माना जाता था कि खुले समुद्र में मरकरी जैसी भारी धातुयें सीधे वायु मंडल से जाती हैं लेकिन अब यह शोध बताता है कि नदियां इन धातुओं को अधिकाधिक समुद्र में पहुंचा रही हैं। नदियों के पारे के लिये दुनिया में 10 नदियां सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं।  अमेरिका में अमेज़न, चीन में यांग्त्ज़ी और भारत-बांग्लादेश सीमा पर गंगा नदी पारे की भारी मात्रा समुद्र में ले जा रही हैं।

पारा एक भारी धातु है जो तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को प्रभावित करता है और दुनिया में इससे करीब 2.5 लाख लोगों में हर साल दिमागी बीमारियां होती हैं। प्रोफेसर पीटर रेमंड और उनकी टीम ने जो शोध किया उसमें पाया गया है हर साल अगस्त से सितंबर तक नदियों में पारे के स्तर सबसे अधिक है। 

भारत में बच्चों को क्लाइमेट प्रभावों का ख़तरा सबसे अधिक: यूनिसेफ 

यूनिसेफ की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में है जहां के बच्चों को जलवायु परिवर्तन संकट का सबसे अधिक ख़तरा झेलना पड़े रहा है। यह ख़तरा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़े तमाम आयामों को लेकर है। जलवायु संकट पर बच्चों के नज़रिये से संयुक्त राष्ट्र के किसी संगठन की यह पहली विस्तृत रिपोर्ट है। जिन चार दक्षिण एशियाई देशों में बच्चों को यह संकट सबसे अधिक है उनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान शामिल हैं। यूनिसेफ ने क्लाइमेट रिस्क रिडक्शन इंडेक्स (सीसीआरआई) पर इन खतरों को नापा गया है। 

भारत को जलवायु से जुड़े बहुत अधिक खतरे वाली श्रेणी – जिसे एक्सट्रीमली हाइ रिस्क कंट्रीज़ कहा जाता है – के दुनिया के उन 33 देशों में रखा गया है जहां महिलाओं और बच्चों के सामाजिक-आर्थिक हालात पर बाढ़ और वायु प्रदूषण जैसे खतरे बार बार चोट पहुंचा रहे हैं। दुनिया के 100 करोड़ बच्चे इन 33 देशों में रहते हैं। जहां वायु प्रदूषण के हिसाब से दुनिया के 30 में से 20 से ज़्यादा सर्वाधिक प्रदूषित शहर भारत के हैं वहीं विशेषज्ञ रिपोर्टों ने यह चेतावनी दी है कि भारत में आने वाले वर्षों में 60 करोड़ लोगों को घोर जल संकट का सामना करना पड़ेगा। ज़ाहिर है ये हालात बच्चों को लिये अच्छे नहीं हैं। 

अमेरिका में चक्रवाती तूफान की मार से बत्ती गुल 

अमेरिका के रोह्ड द्वीप के पास वेस्टर्ली में चक्रवाती तूफान हेनरी करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से टकराया  और उसने इस इलाके में बिजली सप्लाई को ठप कर दिया। अमेरिका के नेशनल हरिकेन सेंटर ने जानकारी दी कि देश पूर्वी हिस्सों और शहरों में चेतावनी जारी कर दी गई है। न्यूयॉर्क के पब्लिक सेफ्टी डिपार्टमेंट ने कहा है कि न्यू जर्सी में पानी में डूबे वाहनों में फंसे 86 लोगों को निकाल कर सुरक्षित जगहों में पहुंचाया गया। यह बाढ़ चक्रवात के कारण ही आई। 

चमोली ज़िले में बना देश का सबसे ऊंचा हर्बल पार्क

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में देश का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हर्बल पार्क  बनाया गया है। यह पार्क भारत-चीन सीमा पर स्थित माणा गांव में है जिसका उद्घाटन शनिवार को किया गया। माणा वन पंचायत की करीब चार एकड़ ज़मीन पर फैला यह पार्क समुद्र सतह से लगभग 11,000 फुट की ऊंचाई पर है। इस विशाल बगीचे को चार हिस्सों में बांटा गया है और इसमें उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली 40 बहुत दुर्लभ प्रजातियां लगाई गई हैं। उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च विंग ने पिछले 3 साल में इस हर्बल गार्डन को तैयार किया है जिसके लिये केंद्र के कैम्पा नीति के तहत दिये जाने वाले फंड का इस्तेमाल किया गया है।

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