संसद ने गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों जैसे बायोमास, इथेनॉल और ग्रीन हाइड्रोजन आदि के उपयोग को बढ़ावा देने और देश में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की अनुमति देने के लिए एक विधेयक पारित किया है।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 के तहत नियमों का पालन न करने वाली औद्योगिक इकाइयों या जहाजों के लिए दंड का प्रावधान है। किसी वाहन द्वारा ईंधन खपत मानदंडों का पालन करने में विफल रहने पर निर्माता के लिए भी दंड का प्रावधान है।
इन संशोधनों का उद्देश्य अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए घरेलू कार्बन बाजार का विकास करना भी है।
गैर-जीवाश्म स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य करने और कार्बन ट्रेडिंग जैसी नई व्यवस्थाएं लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकार्बनीकरण में तेजी आएगी और पेरिस समझौते के अनुरूप सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
इस विधेयक के पारित होने के साथ, भारत अपनी कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण योजनाओं को गति देने और ऊर्जा संरक्षण में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
नए नियमों से वाहनों के लिए ऊर्जा खपत मानकों को अनिवार्य करने और 100 किलोवाट या उससे अधिक की कनेक्टेड लोड वाली इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण कोड लागू करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
2023 के बजट में ऊर्जा संक्रमण पर होगा ज़ोर
नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण को सुगम बनाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट में कई पहलों का अनावरण कर सकती हैं। इन संभावित पहलों में प्रमुख हैं ग्रिड-स्केल बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (बीईएसएस) की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए 21,650 करोड़ रुपए की योजना, इन योजनाओं को व्यव्हार में लाने के लिए 3,765 करोड़ रुपए का अनुदान और बीईएसएस के निर्माण हेतु पुर्जों पर आयात शुल्क कम करना आदि।
इसके अलावा, सरकार नई ऊर्जा-दक्ष तकनीकों के लिए ब्याज में 5% की छूट और ऊर्जा-दक्ष तकनीकों को लागू करने वाले छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण राशि के 75% की क्रेडिट गारंटी या प्रति परियोजना 15 करोड़ रुपए के प्रावधान की घोषणा कर सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए जीवाश्म ईंधन से साफ़ ऊर्जा में संक्रमण महत्वपूर्ण है।
भारत में अक्षय ऊर्जा के लिए सब्सिडी हुई दोगुनी, 4 साल बाद बढ़ा आवंटन
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) के नए आंकड़ों के अनुसार, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी पिछले वित्त वर्ष में दोगुनी हो गई। वर्ष 2021-2022 में यह सब्सिडी 11,529 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। यह 2017 के बाद से इस क्षेत्र के लिए आवंटन में पहली वृद्धि है।
भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत “गैर-जीवाश्म स्रोतों” से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है, और स्वच्छ ऊर्जा की ओर इस संक्रमण में यह सब्सिडी बहुत महत्वपूर्ण है।
“2021 से 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी में यह वृद्धि सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) की स्थापना में 155 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के कारण हुई है,” आईआईएसडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, जिसका शीर्षक है ‘मैपिंग इंडियाज एनर्जी पॉलिसी 2022’।
यह रिपोर्ट पहले 31 मई को वित्तीय वर्ष 2020-21 तक के आंकड़ों के साथ प्रकाशित की गई थी। इसे इस महीने 2021-2022 वित्तीय वर्ष के आंकड़ों के साथ संशोधित किया गया है।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अगले साल $25 बिलियन से अधिक का निवेश संभावित
वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल के साथ दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के पटरी से उतरने का जोखिम बढ़ गया है। ऐसे में विश्व का ध्यान अब नवीकरणीय ऊर्जा पर केंद्रित हो रहा है। भारत में सौर, पवन और जल से ऊर्जा उपत्पादन करने में $25 बिलियन या 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किए जाने की संभावना है।
यूक्रेन युद्ध के बाद से आसमान छूती तेल और गैस की कीमतों के कारण भारत जैसे आयात पर निर्भर देशों की सरकारें विकल्पों की तलाश में थीं।
वहीं नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण को सिर्फ आयात के लिए ही नहीं, बल्कि कार्बन फुटप्रिंट में कटौती और नेट-जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के लिहाज़ से भी जरूरी माना जा रहा है। यही कारण है कि 2022 में सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को देखते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, सौर उपकरणों के निर्माण और ऊर्जा भंडारण पर अत्यधिक जोर दिया।
भारत को 2030 तक 500 गीगावाट का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लगातार आठ वर्षों तक हर साल कम से कम 25 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता बढ़ानी होगी।
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